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Sunday, June 2, 2019

सीढ़ी के बल्ब की वायरिंग एवं क्रियाविधि

सीढ़ी के बल्ब में 2 way , की 2 स्विच लगती है , हम किसी भी स्विच से बल्ब को on या off कर सकते हैं।

यदि 1 way स्विच का प्रयोग किया जाय तो बल्ब जला कर हम ऊपर जा सकते हैं परन्तु बल्ब को बंद करने के लिए हमे नीचे आना पड़ेगा , ऐसे में बल्ब का कोई उपयोग नही रह जायेगा।


2 way स्विच वाले बल्ब को हम नीचे वाली स्विच से बल्ब on कर के ऊपर जा कर ऊपर वाले स्विच से बल्ब को off कर सकते हैं।


वायरिंग - 

2, टू वे स्विच लेते हैं , इनमे 3 पिन लगे होते हैं , दोनो स्विच के किनारे किनारे वाले पिनो को आपस मे जोड़ देते हैं तथा एक स्विच के बीच वाले पिन को बल्ब से जोड़ देते है तथा दूसरी स्विच के बीच वाले पिन को supply ( फेज तार ) से जोड़ देते हैं ,

बल्ब एक पिन को सप्लाई के न्यूट्रल में जोड़ देते हैं ।






क्रिया विधि - 





Sunday, October 21, 2018

स्विच (switch)

स्विच-  यह एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा विद्युत धारा के प्रवाह को पूरे परिपथ में किया जाता है, अथवा रोका जाता है।


 यह फेज तार में लगाई जाती है। फेज तार के बीच इसे इस प्रकार से लगाया जाता है कि फेस तार के दोनों भाग को स्विच की सहायता से दोनों से संबंधित अथवा विच्छेद किए जा सकते हैं।

 स्विच प्रायः विद्युत रोधी पदार्थों की बनाई जाती हैं। जिससे इस को स्पर्श करने पर विद्युत धारा का संपर्क शरीर से ना हो सके।



स्विच कैसे कार्य करता हैं - स्विच को फेज तार में श्रेणी क्रमके जोड़ दिया जाता है इसमें दो पॉइन्ट होते हैं  एक पॉइंट में फेज लाइन को जोड़ दिया जाता है तथा दूसरे पॉइंट पर लोड का ( जिस उपकरण को चलाना हो ) तार जोड़ दिया जाता है। लोड का दूसरा तार पहले ही डायरेक्टर जुड़ा होता है। स्विच में एक ताँवे की पत्ती लगी होती है जिसे दबा कर दोनों पॉइंट को एक मे जोड़ा जा सकता है। जैसे ही हम स्विच को दबाते है पत्ती से दोनों पॉइन्ट जुड़ जाते हैं , और परिपथ पूरा हो जाता है और धारा बहने लगती है।


इसके अतर जब हम स्विच को ऑफ करते हैं तो परिपथ अपुर्ण हो जाता है। और धारा बहना बंद हो जाती है । और उपकरण कार्य करना बंद कर देते हैं।

चित्र में देखे - 

Friday, October 19, 2018

विद्युत फ्यूज ( electric fuse )


दुर्घटना बस एक तार दूसरे तार में स्पर्श हो जाने, अथवा शॉर्ट सर्किट हो जाने पर लाइन से होकर बिजली की काफी प्रबल धारा बहने लगती है। धारा के प्रबल होने से इतनी अधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है , कि परिपथ में लगे बल्ब, पंखे, टेलीविजन आदि उपकरण खराब हो जाते हैं।  इसलिए आवश्यक है कि परिपथ में विद्युत सामर्थ को एक निश्चित सीमा के अंतर्गत रखा जाए । इन दुर्घटनाओं से बचने के लिए मुख्य लाइन के साथ श्रेणी क्रम में कम गलनांक और अधिक प्रतिरोध वाला एक पतला तार लगा दिया जाता है।  इस तार को फ्यूज तार कहते हैं।



फ्यूज तार ( fuse wire ) का कार्य-  फ्यूज तार कम गलनांक और अधिक प्रतिरोध वाला तार होता है। जब कहीं शॉर्ट सर्किट होती है तो प्रबल धारा बहने से  निम्न गलनांक  होने के कारण गर्म होते ही पिघल जाता है। और विद्युत परिपथ टूट जाता है जिससे धारा बहना बंद हो जाती है । और हमारे महंगे उपकरण खराब होने से बच जाते हैं।



फ्यूज तार - फ्यूज को हमेशा ही फेस वायर के क्रम में जोड़ा जाता है । और फ्यूज का तार कम प्रतिरोध वाला होना चाहिए जैसे कि चांदी तांबा एल्मुनियम इत्यादि। चांदी महंगे होने के कारण इसका इस्तेमाल बहुत ही कम किया जाता है।  लेकिन ज्यादातर लेड ट्रिन एलाय का इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें लेड मात्रा 65% और टीम की मात्रा 37% होती है । फ्यूज तार की विशेषता यह होती है कि उसका गलनांक बिंदु बहुत कम होता है। किसी भी उपकरण में ओवरलोड होने पर यह तार बहुत जल्दी पिघल जाता है और उपकरण की सप्लाई को बंद कर देता है।

कम लोड वाले फ्यूज को निन्म गलनांक वाले धातुओं जैसे टिन व तांबे को मिला कर बनाया जाता है।

विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव के अनुप्रयोग ( Applications of Heating Effect of Electric current)

जल गर्म करने के लिए जल ऊष्मक, इमरसन रॉड ,
खाना पकाने के लिए प्रयुक्त विद्युत स्टोव, कपड़ा प्रेस करने के लिए प्रयुक्त विद्युत इस्तरी, कमरा गर्म करने के लिए प्रयुक्त विकीर्णक आदि उपकरण विद्युत हीटर के ही विभिन्न रूप है और यह सभी विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव पर कार्य करते हैं।


विद्युत हीटर - इसमें मिश्र धातु नाइक्रोम का एक सर्पिलाकार तार लेते हैं ।
तार सर्पिल आकार का लेने से यह लाभ होता है कि तार की काफी लंबाई थोड़े से ही स्थान में आ जाती है और इससे हमें अधिक मात्रा में उष्मा प्राप्त होती है इसे एक चीनी मिट्टी की बनी प्लेट पर खुदे हुए खानो के अंदर व्यवस्थित कर लेते हैं तथा तार के दोनों सिरों को एक प्लग में जोड़ देते हैं। नाइक्रोम का विशिष्ट प्रतिरोध बहुत अधिक होता है तथा यह वायु में ऑक्सीजन के साथ शीघ्र ही क्रिया करके ऑक्साइड नहीं बनाती है अतः इसमें जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो तार लाल तप्त तो हो जाता है और इससे ऊष्मा निकलने लगती है। तार में धारा प्रवाहित करने पर इसका ताप 800 सेंटीग्रेड से 1000 सेंटीग्रेड तक हो जाता है।


विद्युत इस्त्री - में नाइक्रोम का तार अभ्रक की चादर पर लिपटा रहता है । जब इस में धारा प्रवाहित की जाती है तो तार लाल तप्त होकर इस्तरी के आधार को गर्म कर देता है । इस्तरी को पकड़ने के लिए एक बैकलाइट का हैंडल लगा होता है बैकलाइट ऊष्मा का कुचालक है।


विद्युत विकीर्णक - विद्युत विकीर्णक  में भी नाइक्रोम का एक सर्किल आकार का तार होता है जो एक चीनी मिट्टी की नलिका पर लपेटा जाता है। नाइक्रोम का विशिष्ट प्रतिरोध बहुत अधिक होता है। जब इस में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो तार लाल तप्त हो जाता है । और इससे ऊष्मा की तरंगों के रूप में कमरों में चारो ओर विकरित होने लगता है।  विकरित उष्मीय तरंगों को कमरे में एक समान फैलाने के लिए इसमें फिलामेंट को एक अवतल दर्पण की फोकस पर रखते हैं । दर्पण के परावर्तक किरणें समांतर होती हैं और यह पूरे कमरे में फैल जाते हैं। यह अवतल दर्पण एक हल्की धातु का बना होता है जिस पर निकिल की पालिश लगी रहती है।



सिद्धान्त- इन सभी उपकरणों में जो प्रतिरोधक तार लगे होते हैं । जो विद्युत धारा का प्रतिरोध करते हैं अर्थात इनके इलेक्ट्रॉन आसानी से धारा के दिशा में गतिमान नही होते हैं । इन में विद्युत धारा को प्रवाहित करने के लिए इनके इलेक्ट्रॉनों को गतिमान करने के लिए धारा को बहुत अधिक कार्य करना पड़ता है यह कार्य ताप के रूप में परिणित होता है।

Thursday, October 18, 2018

ट्यूब लाइट ( fluorescent tube light)

ट्यूब लाइट ( fluorescent light) - ट्यूबलाइट काँच की लंबी नलिका होती है । जिसकी भीतरी दीवार पर प्रदीप्त पदार्थों ( fluorescent material) जिंक और कैडमियम सिलिकेट जैसे चमकीले पदार्थों से लेपित होती है । ट्यूबलाइट के कलर के आधार पर यह प्रदीप्त पदार्थ भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। ट्यूबलाइट के अंदर गैस के रूप में पारे का वाष्प भरा होता है



संरचना (structure) -

चित्र अनुसार बलास्ट औऱ स्टार्टर लगे होते है ।
जब धारा प्रवाहित की जाती है तो धारा बलास्ट से होती हुई पहले फिलामेंट से बहती हुई स्टार्टर से होती हुई दूसरे फिलामेंट तक पहुचती है । जिससे दोनों फिलामेंट जलने लगते हैं और उनके जलने से ट्यूब में भरी पारे की वाष्प आयनित होकर धारा के लिए माध्यम का कार्य करने लगती है।

तब तक स्टार्टर जो कि थर्मल स्विच होता है गर्म होकर परिपथ को कट कर देता है। अब धारा ब्लास्ट से होती हुई एक फिलामेंट से दूसरे फिलामेंट तक आयनित पारे की वाष्प से बहने लगता है ।

जिससे तीव्र प्रदीप्त उतपन्न होती है जो कि काँच की नली के भीतरी दीवारों पर पड़ती है जो प्रदीप्त पदार्थो से लेपित होते हैं ।
जिससे ट्यूब तेजी से प्रकाशमान हो उठता है।

ब्लास्ट ( Ballast ) का कार्य - ब्लास्ट विद्युत चुम्बकीय तरंग उतपन्न करता है जिसके द्वारा धारा नियंत्रित होती है। यदि बलास्ट न लगाया जाए तो ट्यूब का तापमान तेजी से बढेगा और ट्यूब टूट जाएगी।




आयनित पारे की वाष्प इसी प्रकार प्रदीप्त होती है - वीडियो देखें 




Electric bulb ( विद्युत बल्ब)

जब किसी बल्ब के प्रतिरोधक तार ( resistance wire)से विद्युत धारा को गुजारा जाता है तब वह गर्म होकर चमकने लगता है इस प्रकार के बल्ब को इनकैंडिसेंट विद्युत (incandescent electric bulb) बल्ब कहा जाता है।




बल्ब की संरचना (structure of bulb )
बल्ब कांच का एक खोखला आवरण होता है । जिसमें एक ब्रास कैप लगी होती है ब्रास कैप का ऊपरी हिस्सा कुचालक पदार्थ ( non conducting) से ढका होता है जिससे होकर दो बिंदुओं से चालक तार ( conducting wire) अंदर आता है यह तार बल्ब के फिलामेंट से जुड़ा होता है।

ब्रास कैब के दोनों तरफ पिन लगी होती हैं जो बल्ब को होल्डर में ठीक प्रकार से रोक कर रखती है।

बल्ब के बीचो बीच कांच की नली ( glass stem ) होती है । जिसका प्रयोग बल्ब में अक्रिय गैस ( ऑर्गन, नियॉन, जिनान, क्रिप्टान) भरने के लिए किया जाता है। मुख्यतः प्रचलित बल्ब में ऑर्गन और नाइट्रोजन गैस का मिश्रण भरा जाता है।

जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो फिलामेंट गर्म हो कर जलने लगता है।  फिलामेंट टंगस्टन का बना होता है जिसका गलनांक उच्च 2700℃ होता है । इस ताप पर पहुंच कर फिलामेंट भाप बन कर उड़ जाता है । और बल्ब की दीवारों पर काले रंग में जमा हो जाता है।

फिलामेंट ऑक्सीजन की उपस्थिति में 2100℃ ताप पर ऑक्सीकृत होने लगता है । अतः इसे कांच के खोखले में लगाया जाता है । तथा ऑर्गन गैस भर दी जाती है जिससे यह ऑक्सीकृत नही होता है।


बल्ब के खराब होने का कारण - बल्ब का फिलामेंट दो कारणों से खराब होता है । जब अत्याधिक वोल्टेज के कारण फिलामेंट का ताप इसके गलनांक से अधिक हो जाये ।

अथवा बल्ब के ब्रास कैप के लीक होने उसके अंदर ऑक्सीजन अथवा अन्य सक्रिय गैस पहुच जाए।





बल्ब कैसे जलता है ( how to lighting bulb )

फिलामेंट में टँगस्टन का प्रतिरोधक तार लगा होता हैं । जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो यह धारा का प्रतिरोध करता है , प्रतिरोध के कारण फिलामेंट गर्म होने लगता है, धारा का मान अधिक होने के कारण फिलामेंट गर्म होकर रक्त तप्त हो जाता है  । इस प्रकार के बल्ब में 90% से 95% तक विद्युत ताप में बदल जाता है केवल 5 से 10 % प्रकाश के रूप में परिवर्तित होता है।
यदि इसमे निम्न धारा प्रवाहित की जाय तो रक्त तप्त नही होगा।


बल्ब का रक्त तप्त होना दो कारको पर निर्भर होता है। प्रतिरोध व वोल्टेज ।

प्रतिरोध(resistance) जितना कम व वोल्टेज जितना अधिक होगा बल्ब उतना अधिक चमकेगा।

240 वोल्ट पर 60 वॉट का बल्ब 100 वॉट के बल्ब से अधिक चमकदार होगा।


ईंधन ( Fule)

ईंधन - वे पदार्थ है जो हवा में जलकर बगैर अनावश्यक उत्पादों की ऊष्मा उत्पन्न करते हैं ।

अच्छे ईंधन के गुण-  सस्ता एवं आसानी से उपलब्ध होना चाहिए।
इसका उष्मीय मान उच्च होना चाहिए ।
जलने के बाद कम से कम अनावश्यक पदार्थ प्राप्त होने चाहिए ।
जलने के दौरान इसमें से हानिकारक पदार्थ उत्पन्न नहीं होने चाहिए ।
इसका भंडारण एवं परिवहन आसान हो तथा इसका जलाना नियंत्रित हो प्रज्वलन ताप निम्न हो।


ईंधन का वर्गीकरण - भौतिक अवस्था के आधार पर इंधन को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है ।
1.ठोस ईधन
2.द्रव ईंधन
3.गैस ईंधन


ठोस ईंधन-  ठोस ईंधन में लकड़ी, कोयला ,चारकोल, कोक आदि प्रमुख हैं ।

कोयला - कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयले को चार भागों में बांटा गया है ।
1.पीट कोयला
2.लिग्नाइट कोयला
3.बिटुमिनस कोयला
4.एंथ्रासाइट कोयला


पीट कोयला- यह सबसे निम्न कोटि का कोयला होता है इसे जलाने पर बहुत अधिक मात्रा में राख एवं धुआ निकलता है इस में कार्बन की मात्रा 50 से 60% तक होती है।


लिग्नाइट कोयला - इसमें कार्बन की मात्रा 65% से 70% तक होती है उसका रंग भूरा होता है इसमें जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है।


बिटुमिनस कोयला - यह मुलायम कोयला होता है तथा इसका प्रयोग घरेलू कार्यों में किया जाता है इसमें कार्बन की मात्रा 70% से 85% तक पाई जाती है।



एंथ्रासाइट कोयला - यह सबसे उत्तम कोटि का कोयला होता है इस में कार्बन की मात्रा 85% से अधिक होती है।



द्रव ईंधन-  पेट्रोल डीजल केरोसिन ,अल्कोहल , स्प्रिट आदि द्रव ईंधन है।





गैसीय ईंधन - गैसीय ईंधनओं में मुख्यतः
1. प्राकृतिक गैस
2. गोबर गैस
3. प्रोड्यूसर गैस
4. जल गैस तथा
5. कोल गैस आती है



प्राकृतिक गैस - यह पेट्रोलियम कुंओ से प्राप्त होता है इसमें 95% हाइड्रोकार्बन जिसमें 80% मीथेन उपस्थित होती है यह घरों में प्रयुक्त होने वाले द्रवित प्राकृतिक गैस होती है ।

यह मुख्य रूप से ब्यूटेन व प्रोपेन का मिश्रण होता है । इसे उच्च दाब पर द्रवित कर के सिलेंडरों में भरकर संग्रहित किया जाता है।

यह अत्यधिक ज्वलनशील होती है तथा दुर्घटना से बचने के लिए इसमें सल्फर के योगिक मिथाइल मरकैप्टन मिश्रित कर दिया जाता है जिससे रिसाव होने पर गंध से पटा चल सके क्योंकि मेथेन गैस गंधहीन होती है।



गोबर गैस - गीले गोबर के सड़ने से ज्वलनशील मीथेन गैस का निर्माण होता है जो कि वायु की उपस्थिति में सुगमता से ज्वलनशील होती है ।
गोबर गैस संयंत्र में बचे हुए अवशिष्ट पदार्थ का उपयोग कार्बनिक खाद के रूप में किया जाता है।



प्रोड्यूसर गैस - लाल तप्त कोक पर वायु प्रवाहित करके इसे तैयार किया जाता है मुख्यतः इसमें कार्बन मोनो डाइऑक्साइड ईंधन का काम करता है ।

70% नाइट्रोजन 25% कार्बन मोनो डाइऑक्साइड एवं 4% कार्बन डाइऑक्साइड का मिश्रण होता है । इसका उष्मीय मान 11:00 सौ से 1750  कैलोरी प्रति किलोग्राम होता है ।
काँच एवं इस्पात उद्योग में ईंधन के रूप में प्रोड्यूसर गैस का ही प्रयोग किया जाता है।


जल गैस - यह हाइड्रोजन 49% कार्बन मोनो ऑक्साइड 45% तथा कार्बन डाइऑक्साइड 4.5% का मिश्रण होता है ।

इसका उष्मीय मान 2500से 2800 कैलोरी प्रति किलोग्राम होता है ।
इसका उपयोग हाइड्रोजन एवं अल्कोहल के निर्माण में अपचायक के रूप में किया जाता है।


कोल गैस - कोयले के भंजन आसवन की विधि से इसका निर्माण किया जाता है ।
यह रंगहीन तीक्ष्ण गंध वाली गैस है । वायु के साथ विस्फोटक मिश्रण का निर्माण करती है।
यह  54% हाइड्रोजन 35% मीथेन 11% कार्बन मोनोऑक्साइड 5% हाइड्रोकार्बन 3% कार्बन डाइऑक्साइड का मिश्रण होता है ।

ईंधन के उष्मीय मान इस की कोटि पर  निर्धारित होती है।



अल्कोहल को पेट्रोल में मिला देने पर पावर अल्कोहल की प्राप्ति होती है यह ऊर्जा का वैकल्पिक स्रोत है

Wednesday, October 17, 2018

परिसंचरण तंत्र ( Circulatory system)

परिसंचरण तंत्र (Circulatory system)- जंतु शरीर में एक तरल माध्यम को संपूर्ण शरीर में संचालित करने संबंधित तंत्र को परिसंचरण तंत्र कहते हैं।

परिसंचरण तंत्र में दो प्रकार के तरलो का प्रयोग होता है
1. रुधिर एवं
2. लसीका

इसी आधार पर परिसंचरण तंत्र के दो तंत्र हैं

1. रुधिर परिसंचरण (Blood Circulatory) अथवा संवहन तंत्र (Vascular system )

2. लसीका तन्त्र ( Lymphatic system)




रुधिर परिसंचरण या संवहन तंत्र- इसकी खोज 1628 में विलियम हार्वे द्वारा की गई ।
इस परिसंचरण के चार भाग हैं 1.हृदय (Heart)
2.धमनियों ( Arteries)
3.शिराएं (Veins)और
4.रुधिर(Blood)



मनुष्य का हृदय - हृदय की संरचना एवं कार्यकी के अध्ययन की शाखा हृदय विज्ञान ( Cardiology) है ।

हृदय हृदयावरण ( Pericardium)नामक थैली में सुरक्षित रहता है। हृदय का भार लगभग 300 ग्राम होता है।

हृदय में 4 कोष्ठ ( Chamber) होता है।
अगले भाग में दांया और बांया अलिन्द(Atrium) होता है ।
पिछले भाग में दांया व बांया निलय( Ventricle) होता है।

दांये अलिन्द औऱ दांये निलय के बीच त्रिवलनी कपाट होता है।

बांये अलिन्द और बांये निलय के बीच द्वीवलनी कपाट होता है।


शिरा - शरीर से हृदय की ओर असुद्ध रक्त को ले जाने वाली वाहनियों को शिरा कहते हैं। अशुद्ध रक्त अर्थात कार्बन डाई ऑक्साइड युक्त रक्त।

पलमोनरी शिरा इसका अपवाद है।


धमनी- हृदय से शरीर की ओर शुद्ध रक्त को ले जाने वाली वाहनियों को धमनी कहते हैं। शुद्ध रक्त अर्थात आक्सीजन युक्त रक्त।

पलमोनरी धमनी इसका अपवाद है।




कोरोनरी धमनी -  यह मांसपेशियों को रक्त पहुचती है।



अन्य बाते -
धमनियों में रुकावट होने से हृदयाघात हो सकता है।

हृदय की धड़कन द्वारा हृदय के प्रकुंचन तथा प्रसारण संभव है। सामान्य अवस्था में हृदय की धड़कन 1 मिनट में 78 बार होती है और एक धड़कन में लगभग 70 मिली रक्त का पंप हो जाता है।

मनुष्य का रक्तदाब 120/ 80 होता है । रक्त दाब मापने वाला यंत्र से स्फिग्मोमैनोमीटर होता है।

थायरॉक्सिन एवं एड्रिनल हृदय की धड़कन को नियंत्रित करने वाला हार्मोन है ।

कार्बन डाइऑक्साइड रक्त के ph को कम कर के हृदय की गति को बढ़ाता है।


Tuesday, October 16, 2018

विज्ञान प्रश्नोत्तरी

General Knowledge Questions

1. नमकीन क्षेत्र में होने वाली वनस्पतियों को क्या कहते है?
उत्तर. हैलोफाइट
2.  पौधे का कौन सा भाग श्वसन करता है?
उत्तर. पौधे की पत्ती साँस लेने का काम करती है |
 3.  केला और नारियल कैसे फल है।
उत्तर.बीजपत्री
4. सिनकोना पौधे के तने की छाल से क्या प्राप्त की जाती है?
उत्तर. कुनैन प्राप्त की जाती है
5. बीज के अंकुरण में क्या महत्वपूर्ण होता है?
उत्तर. हवा नमी एवं उपयुक्त ताप
6. यीस्ट और मशरूम क्या होते है?
उत्तर. फफूँद (फंजार्इ)
7. कीटों के वैज्ञानिक अध्ययन को क्या कहते है ?
उत्तर. एन्टोमोलाजी
8. फल विज्ञान के अध्ययन को क्या कहते है ?
उत्तर. पोमोलाजी
9. पुष्प विज्ञान के अध्ययन को क्या  कहते है।
उत्तर.फ्लोरीकल्चर
10. सब्जी विज्ञान के अध्ययन को क्या कहते है।
उत्तर.ओलेरीकल्चर
11.  आँख का वह भाग जिसमें वर्णांक होल होता है तथा जो किसी व्यकित की आँखों का रंग निशिचत करता है उसे क्या कहते है।
उत्तर. आइरिस

12.  अमोनिया को नाइट्रेट में बदलने में कौन भूमिका निभाता है।
उत्तर.नाइट्रोसोमोनास
13.  जीनोम चित्रण का सम्बन्ध किस के चित्रण से है।
उत्तर.जीन्स

14.बारूदी सुरंगो का पता लगाने में कौन उपयोगी होते है।
उत्तर.पंतगा
15.  एजोला नीलहरित शैवाल एवं एल्फाल्फा किस के रूप प्रयोग होते है।
उत्तर.जैव उर्वरक
16.  कौन एक आँख से आगे की ओर तथा उसी समय दूसरी आँख से पीछे की ओर देख सकता है।
उत्तर. गिरगिट
17.  कृषि की वह शाखा जो पालतु पशुओं के चारे आश्रय, स्वास्थ्य तथा प्रजनन से सम्बधित होती है उसे क्या कहते है।
उत्तर. पशुपालन (एनीमलहस्बेन्ड्री)
18.  वृद्व अवस्था के अध्ययन को क्या कहा जाता है।
उत्तर.जेरेन्टोलाजी
19.  जनसंख्या एवं मानव जाति के महत्वपूर्ण आंकडो के अध्ययन को कहते है।
उत्तर. जनांकिकी

20.  एक जलीय पौधे को  क्या कहते है।
उत्तर. हाइड्रोफाइट
21. हरे फलों को कृत्रिम रूप से पकाने हेतु कौन सी गैस  का प्रयोग करते है।
उत्तर.एसीटिलीन
22. प्रकाश संष्लेशण की कि्रया में प्रकाश ऊर्जा , किस उर्जा  में परिवर्तित होती है।
उत्तर.रासायनिक ऊर्जा
23. वृक्ष की आयु का वर्शो में निर्धारण किस आधार पर किया जाता है।
उत्तर. उसमें उपस्थित वार्शिक वलयों की संख्या के
24.  समतापी प्राणियों में ताप का नियमन करने वाला मस्तिष्क केन्द्र क्या  है।
उत्तर. हाइपोथैलेमस
25. हमारी जीभ पर स्वाद कलिकाएें , जो खटटे का ज्ञान कराती है जीभ के किस  भाग पर पायी जाती है।
उत्तर.पाश्र्व भाग में
26. मृदा को नाइट्रोजन से भरपूर करने वाली फसल कौन सी  है।
उत्तर. मटर की फसल
27.  मस्तिष्क का जो भाग बुध्दि का भाग कहलाता है, उसे वैज्ञानिक भाशा में क्या कहलाता है ?
उत्तर. सेरीब्रल हेमीसिफयर
28. नदियाें में जल प्रदूषण किस से मापा जाता है ?
उत्तर. पानी में आक्सीजन की घुली हुर्इ मात्रा से
29. शिशु का पित्रत्व स्थापित करने के लिए किस तकनीक का प्रयोग किया जा सकता हैं।
उत्तर.डीएनए फिंगर प्रिंटिग का
30. घोंसला बनाने वाला  वाला सांप कौन सा है।
उत्तर.  किंग कोबरा
31. उत्परिवर्तन का सिध्दांत किसने  दिया था ।
उत्तर. डी व्रीज ने
32. मनुष्य में अवषेशी अंग क्या  है।
उत्तर.  कर्णपल्लव पेशिया
33. प्याज की खेती कैसे  की जाती है।
उत्तर.  पौध  प्रतिरापण करके
34. जीव विज्ञान का जनक कौन थे ।
उत्तर. अरस्तु
35. इफेडि्रन औषधि का उपयोग किस  रोग में होता है .
उत्तर.  अस्थमा
36. चावल की फसल के लिए कौन अच्छे जैव उर्वरक का कार्य करता है।
उत्तर.  नीलहरित शैवाल
37. कौन सा  किडा अपने जीवन चक्र के कोषित चरण में वाणिजियक तन्तु पैदा करता है।
उत्तर.  रेशम का
38. वनस्पति विज्ञान के जनक कौन थे।
उत्तर.थि्रयोफ्रेस्टस
39. लम्बे समय तक कठोर शारीरिक कार्य के पश्चात मांसपेसियों में थकान अनुभव होने का कारण क्या होता है ।
उत्तर. ग्लूकोज का अवक्षय
40. एक वयस्क मनुष्य के प्रत्येक जबडे में कितने दांत पाए जाते  है
उत्तर. 16 दाँत
41.मानव का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
उत्तर. Homo Sapiens

42.मेंढक का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
उत्तर. Rana Trgrina
43.बिल्ली का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
उत्तर. Felis Domestica
44.कुत्ता का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
उत्तर. Canis Familiaris
45.गाय का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
उत्तर. Bos Indicus
46.मक्खी का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
उत्तर. Musca Domestica
47.आम का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
उत्तर. Mangifera Indicus
48.धान का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
उत्तर. Oryza Sativa
49.गेंहू का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
उत्तर. Triticum Aestivum
50.मटर का वैज्ञानिक नाम क्या है ?
उत्तर. Pisum Sativum

पाचन तंत्र ( Digestive system )

पाचन तंत्र - भोजन का पाचन 5 अवस्थाओ में पूर्ण होती है ।

1. अंतर्ग्रहण ( ingestion)
2. पाचन ( Digestion)
3. अवशोषण ( Absorption)
4. स्वांगीकरण ( Assimilation)
5. मलपरित्याग ( Defcation)


अंतर्ग्रहण -भोजन का करना अर्थात भोजन को मुखगुहा के अंदर ले जाना अंतरग्रहण कहलाता है

पाचन - भोजन की पाचन क्रिया मुख से ही प्रारंभ हो जाती है मुंह में लार ग्रंथियों से लार का स्राव होता है ।
दो प्रकार के एंजाइम टायलिन व माल्टोज का श्रावण होता है।

 एंजाइम का कार्य भोजन के स्वेत सार वाले अंश को सरल शर्करा में परिवर्तित कर पचने लायक बनाना है।

 मनुष्य में डेढ़ लीटर लार प्रतिदिन स्रावित होता है।

लार की प्रकृति अम्लीय होती है इसका ph मान 6.8 होता है। मुख से भोजन आहार नाल के माध्यम से अमाशय में जाता है। आहार नाल में किसी भी अवयव का पाचन नहीं होता है।




आमाशय में पाचन - भोजन लगभग 4 घंटे तक अमाशय में संग्रहित होता है । पाइलोरिक  ग्रंथियों से जठर रस का श्रावण होता है ।
जठर रस हल्का पीले रंग का अम्लीय द्रव होता है ।

भोजन के साथ आए हुए जीवाणुओं को नष्ट करने तथा एंजाइम की क्रिया को तीव्र करने के लिए आक्सिनटिक कोशिका से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का श्रावण होता है यह भोजन को अम्लीय बनाता है तथा टायलिन क्रिया को समाप्त कर देता है ।

जठर रस से एंजाइम पेप्सिन तथा रेनिन निकलता है ।

पेप्सिन प्रोटीन को खंडित कर सरल पदार्थों ( पेप्टोस ) में परिवर्तित कर देता है और

रेनिन  दूध में घुली हुई प्रोटीन केसीबोजेन को ठोस प्रोटीन कैलशियम पैराकेसिनेट के रूप में बदलता है।




पक्वाशय में पाचन - सामान्य अवस्था में यकृत से निकलने वाला पित्त रस पित्ताशय में एकत्रित होता है तथा भोजन के उपरांत पित्ताशय से निकलने वाला पित्त रस पक्वाशय अर्थात ग्रहणी ( Duodenum) में जाता है ।
पित्तरस क्षारीय  होता है इसका पीएच मान 7.6 से 8.6 तक होता है  यह भोजन को अम्लीय से क्षारीय बनाता है ।  इसके बाद अग्नाशयी रस जाकर  भोजन में मिलता है इस अग्नाशय रस में तीन प्रकार के एंजाइम होते हैं।

1. ट्रिप्सिन
2. एमाइलेज
3.लाइपेज

ट्रिप्सिन -  प्रोटीन एवं पेप्टोन को पालीपेप्टाइट्स तथा अमीनो अम्लों में परिवर्तित करता है।

एमाइलेज -  माड़ का घुलनशील शर्करा में परिवर्तित करता है

लाइपेज - एमलसिफाइड वसा को ग्लिसरीन तथा फैटी एसिड्स में परिवर्तित कर देता है।



छोटी आंत में पाचन-  छोटी आंत में पाचन की क्रिया पूर्ण हो जाती है एवं पचे हुए भोजन का अवशोषण होता है।

 एंजाइम -इसमें
इरेप्सिन
माल्टोज
सुक्रेस
लैक्टेस
लाइपेज
इन एन्जाइमों का आंत में निम्न चीजो में परिवर्तन होता है।

 इरेप्सिन -  प्रोटीन एवं पेप्टोन का अमीनो अम्ल में परिवर्तन।

माल्टोस- माल्टोस का ग्लूकोज में परिवर्तन करता है ।

सुक्रोज - सुक्रोज का ग्लूकोज़ तथा फ्रक्टोज में परिवर्तन।

लैक्टोज - लैक्टोज का  ग्लूकोस तथा गैलोक्टोज में परिवर्तन ।

लाइपेज- एमलसिफाइड वसाओं का ग्लिसरीन तथा फैटी एसिड में परिवर्तन ।
आंत से आन्त्रिक रस निकलता है यह क्षारीय होता है स्वस्थ मनुष्य में प्रतिदिन 2 लीटर आन्त्रिक रस निकलता है।




अवशोषण- अवशोषण में पचे हुए भोजन के अंशो को रुधिर में पहुंचाया जाता है छोटी आंत की रचना अर्द्धघ कार होती है इसी के द्वारा और शोषण का कार्य होता है ।

स्वांगीकरण- अवशोषित भोजन का शरीर के लिए उपयोग की जाने की क्रिया स्वांगीकरण कहलाती हैं।


मल परित्याग - अपच भोजन को बड़ी आंत  में जीवाणुओं द्वारा मल में बदला जाता है जिसको गुदा द्वारा निष्कासित कर दिया जाता है। 

लैंगरहैंस की द्विपिका ( Istets of Langer-hans)

यह अग्नाशय का एक भाग है इसकी खोज पाल लैंगर हैंस नामक चिकित्साशास्त्री द्वारा 1869 में की गई

इसमें तीन प्रकार की कोशिकाएं अल्फा बीटा गामा होती है अल्फा कोशिका से ग्लूकॉगान (Glucagon) हार्मोन
बीटा कोशिका से इंसुलिन (Insuline) हार्मोन तथा
गामा कोशिका से सोमैटोस्टैटिन (Somatostatin) नामक हार्मोन का स्राव होता है।


इन्सुलिन - इंसुलिन का सक्रिय सत (extract) सर्वप्रथम बैटिंग एवं बेस्ट तथा मैकलियोड द्वारा सन 1923 ईस्वी में तैयार किया गया।

 ग्लूकोज से ग्लाइकोजन बनने की क्रिया का नियंत्रण इंसुलिन द्वारा ही होता है। इसके अल्प श्रावण से मधुमेह ( Diabetes mellitus ) नामक रोग तथा अति  से हाइपोग्लाइसीमिया नामक रोग हो जाता है।

ग्लूकागॉन - यह ग्लाइकोजन को पुनः ग्लूकोज में परिवर्तित करता है

सोमटोस्टेटिन - पॉलिपेप्टाइड नामक हार्मोन का श्रावण करता है तथा भोजन के स्वांगी करण की अवधि को बढ़ाने में सहायक है

Sunday, October 14, 2018

लसीका परिसंचरण तंत्र एवं उसके कार्य

लसिका ऊतकों तथा कोशिकाओं के बीच स्थित अंतरावकाशओं में पाया जाने वाला हल्का पीला द्रव्य है।
 इसकी संरचना लगभग रक्त और प्लाज्मा जैसी ही होती है इसमें पौष्टिक पदार्थ ऑक्सीजन तथा अन्य कई पदार्थ मौजूद होते हैं।

 लसिका में  लिंफोसाइट्स तथा श्वेत रुधिर कणिकाएं होती है तथा यह ऊतकों से हृदय की ओर एक ही दिशा में परिसंचरण होती है।





लसीका के कार्य - लसिका में उपस्थित लिंफोसाइटस हानिकारक जीवाणुओं का भक्षण कर के रोगों की रोकथाम में सहायक है । यह लिंफोसाइट का निर्माण भी करती है।

 लिंफोनोड शरीर में छन्ने का कार्य करता है। यह घाव भरने में भी सहायक है ।

ऊतकों से शिराओं में विभिन्न वस्तुओं का परिसंचरण भी इसी के द्वारा होता है।

उत्सर्जन तंत्र

उत्सर्जन-  जीवो के शरीर से उपापचयी प्रक्रमओं बने विषैले   पदार्थ का निष्कासन ही उत्सर्जन कहलाता है मनुष्य में नाइट्रोजन उत्सर्जी पदार्थों जैसे यूरिया अमोनिया यूरिक अम्ल आदि का निष्कासन होता है।


प्रमुख उत्सर्जी अंग -
◆ वृक (kidney)
◆ त्वचा ( skin)
◆ यकृत (liver)
◆ फेफड़ा ( lungs )





1. वृक्क - मनुष्य एवं अन्य स्तनधारीओं में मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क ही होता है । मनुष्य में एक जोड़ा वृक्क पाया जाता है । इसका वजन 140 ग्राम होता है वृक्क के 2 भाग होते हैं ।

बाहरी भाग का कॉर्टेक्स तथा भीतरी भाग मेडुला कहलाता है।

 प्रोटोजोआ एवं अमीबा हिस्टोलिटिका का संक्रमण मनु लगभग  13000000 वृक्क नलिकाओं से मिलकर बना है।




वृक्क के प्रमुख कार्य -

 रक्त के प्लाज्मा को छानकर शुद्ध बनाना अनावश्यक तथा अनुपयोगी पदार्थों को जल की कुछ मात्रा के साथ मूत्र रूप बनाकर बाहर निकालना तथा रुधिर की आपूर्ति एवं अंगों की तुलना में बहुत अधिक मात्रा में करना ।

प्रति मिनट औसतन 125 मिली अर्थात दिन भर में लगभग 180 लीटर रक्त का निष्पादन करती है 1.45 लीटर मूत्र रोजाना बनाती है तथा बाकी निस्पंदन वापस रक्त में अवशोषित कर दिया जाता है।

 मूत्र में 95% जल प्रतिशत 2% लवण तथा 2.3% यूरिया तथा 0.3% यूरिक अम्ल होता है  तथा नाइट्रोजन पदार्थों के अलावा पेंसिलीन और कुछ मसालों का भी उत्सर्जन होता है

त्वचा-
त्वचा में पाई जाने वाली तैलीय ग्रंथियां एवं स्वेद ग्रंथियों से क्रमशः सीवम वह पसीने का श्रावण होता है।


यकृत-
यकृत आवश्यकता से अधिक अमीनो अम्ल तथा रुधिर की अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित कर के उत्सर्जन में प्रमुख भूमिका निभाता है।



फेफड़ा-
फेफड़ा गैसीय पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड और जलवाष्प का उत्सर्जन करता है।
 कुछ पदार्थ जैसे लहसुन प्याज और कुछ मसालों जिसमें वाष्पशील घटक होते हैं उनका भी उत्सर्जन करता है।






विभिन्न जन्तु एवम उनमें उत्सर्जन -


एक कोशकीय         -      विसरण द्वारा

पोरीफेरा                 -     विशिष्ट नलिका तन्त्र द्वारा

सिलेन्ट्रेट्स            -    सीधे कोशिकाओं द्वारा

चपटे कृमि              -  जवालकोशिकाओ द्वारा

एनेलिडा               -    वृक्क द्वारा

आर्थोपोडस          -    नैल्पिथियन नलिकाओं द्वारा

मोलस्का            -    मूत्र अंग द्वारा

कशेरुकी            -      वृक्क द्वारा

Friday, October 12, 2018

अन्तः स्रावी तन्त्र। ( Endocrine system )

ग्रंथि का अर्थ होता है गांठ किंतु मानव के परिपेक्ष में ग्रंथ का अर्थ कोशिकाओं की उन समूहों से है जो शरीर के विकास एवं उनके कार्यप्रणाली के लिए विभिन्न प्रकार के हार्मोन का स्राव करते हैं।


ग्रंथियों दो प्रकार की होती है ।

1.बहि: स्रावी ग्रंथियां (Exocrine Glands) -
 यह नलिका युक्त ग्रंथि होती है और यह एंजाइम का स्राव करती है इसमें मुख्य रूप से दुग्ध ग्रंथि, अश्रु ग्रंथि ,लार ग्रंथि व श्लेष्म ग्रन्थि आदि आते हैं।


2. अंतः स्रावी ग्रंथियां (Endocrine glands) -
यह नलिका विहीन होते हैं तथा हार्मोन का स्राव करती हैं ।हार्मोन रक्त प्लाज्मा द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में प्रवाहित होता है।


मुख्य अंतः स्रावी ग्रंथि-
1. पीयूष ग्रंथि (Pituitory gland)
2. अवटू ग्रन्थि ( Thyroid gland)
3. पराअवटू ग्रंथि  (Parathyroid gland)
3. अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland)
4. थाइमस ग्रंथि (Thymus gland)
5. पीनियल काय ग्रंथि (Pineal body)
6. जनन ग्रंथि ( Gonads )


पीयूष ग्रंथि -कपाल के डाएनसेेेफैैलॉन के स्फिनॉइड हड्डीडी के हाइपोफाईसियल के गर्त  sella   turcica में स्थित होता है  इसका भार लगभग 0.6 ग्राम होता है ,यह मास्टर ग्रंथि है।



पीयूष ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन-



STH हार्मोन ( somatotropin harmone )

TSH हार्मोन  ( THYROID STIMULATING HORMONE)

AETH हार्मोन ( ADRENOCARTI EOTROPIC HARMONE)

GTH हार्मोन (  GONADATROPIC HORMONE)

LTH  हार्मोन  ( LACTOGENIC HORMONE)

ADH हार्मोन ( ANTIDIWRETIC HORMONE)


STH - शरीर में विशेषकर हड्डियों के वृद्धि एवं नियंत्रण में सहायक होता है इसकी अधिकता से भीमकाय अथवा एक्रोमेगली विकार उत्पन्न हो जाता है, मनुष्य की लंबाई सामान्य से अधिक हो जाती है और इसकी कमी के कारण मनुष्य बौना हो जाता है।




TSH - यह एड्रेनल कोरटेक्स के स्राव पर नियंत्रण करता है।




GTH - यह जनन अंगों के कार्यों का नियंत्रण करता है
यह दो प्रकार का होता है
1. FSH ( FOLLICLE STIMULATING HARMONE)

2. LTH ( LACTOGENIC HARMONE)


FSH - शुक्राणु जनन में सहायक होता है तथा अंडाशय में फॉलिकल की वृद्धि में मदद करता है।

LTH - यह हार्मोन शिशुओं के लिए स्तनों में दूध का स्राव करता है।

ADH - छोटी छोटी रक्त धमनियों का संकीर्णन ।
रक्त दाब में बढ़ोतरी करना। शरीर में जल का संतुलन बनाये रखने में  सहायक।


अवटु ग्रन्थि -  यह सबसे बड़ी अंतः स्रावी ग्रंथि है जोोो मनुष्य के गले में श्वास नलिका ट्रेकिया के दोनों ओर लैरिंग्स के नीचे  स्थित होती है  इसमें  आयोडीन युक्त  थायरॉक्सिन व ट्रायोडोथायरोनिन    निकलता हैं जिस में आयोडीन की मात्रा अधिक होती है । तथा थायरोकैल्सिििटोनींन आयोडीन रहित




थायरोक्सिन के कार्य-
 कोशिकाओं में स्वसन की गति को तीव्र करता है शरीर की सामान्य वृद्धि विशेषता हड्डी बाल इत्यादि के विकास के लिए अनिवार्य है जनन अंगों के सामान्य कार्य उन्हीं की सक्रियता पर आधारित होते हैं पीयूष ग्रंथि के हार्मोन के साथ मिलकर यह शरीर के जल का संतुलन भी नियंत्रित करता है।


थायरोक्सिन की कमी से होने वाले रोग-

1. जड़ मानवता
2. मिक्सिडमा
3 हाइपोथायरायडिज्म
4 घेघा
5 हाशीमोटो रोग

थायराइड सिंह के अधिक के होने से होने वाले रोग -
1. टॉक्सिक गोइटर
2. एक्सोपथैलमिया





पराअवटु ग्रंथि - यह ग्रंथि गले में अवटू ग्रंथि के ठीक पीछे स्थित होता है इसमें से दो हार्मोन स्रावित होते हैं।
1. पैरा थायराइड हार्मोन तथा 2. कैल्सीटोनिन हार्मोन


पैरा थायराइड हार्मोन रुधिर में कैल्शियम की कमी होने पर स्रावित होता है तथा कैल्सीटोनिन रुधिर में कैल्शियम की अधिकता होने पर स्रावित होने लगता है।




अधिवृक्क ग्रंथि-  इसके 2 भाग होते
बाहरी भाग कोर्टेक्स तथा अंदरूनी भाग मेडुला ।

कॉर्टेक्स से निकलने वाले हार्मोन -

1. ग्लूकोकॉर्टिकॉइडस
2. मिनरलोकॉर्टिकॉइडस
3. लिंग हार्मोन


मेडुला द्वारा स्रावित होने वाले हार्मोन-
1. एपिनेफ्रीन 
2. नारएपिनेफ्रीन
 दोनों हार्मोन का कार्य समान हैं दोनों ही हृदय पेशियों की तीजन शीलता उत्तेजनशीलता एवं संकुनशीलता में वृद्धि करते हैं तथा रक्तचाप में वृद्धि करते हैं।



Thursday, October 11, 2018

कंकाल तंत्र ( Skeletal system)

कंकाल रचना (skeletal structure)
यह शरीर को दृढ़ आकर प्रदान करता है।
कंकाल रचना के आधर पर दो प्रकार का होता है।

1.बाह्य कंकाल (exoskeleton)
 त्वचा के बाहरी सतह पर स्थित रचनायें

2.अन्तः कंकाल ( endoskeleton)
त्वचा से भीतर फैली हुई रचना।







मनुष्य का कंकाल तन्त्र ( Human skeletal system )

1. बाह्य कंकाल -  इसके अंतर्गत बाल रूम और नाखून शामिल है
2.अंतः कंकाल- शरीर के भीतर का अस्थि पंजर जो वयस्क मनुष्य में 206 तथा शिशुओं में 213 पृथक हड्डियों द्वारा निर्मित होता है ।

मनुष्य का कंकाल दो भागों में वर्गीकृत किया गया है-
1. अक्षीय कंकाल
2. उपांगीय कंकाल

1.अक्षीय कंकाल- मुख्य अक्ष बनाने वाले कंकाल के अंतर्गत खोपड़ी , कशेरुकी दण्ड, तथा छाती की अस्थियां होती हैं।

 वयस्क मनुष्य में 80 तथा शिशुओं में 87 हड्डियां होती हैं-

कपाल      -       8
चेहरे        -       14
कर्ण अस्थियां -    6
हाईओइड        -    1
कशेरुका        -   26 ( शिशु में 33 )
उरोस्थि          -    1
पसलियां        -    24


खोपड़ी या करोटि ( skull)

खोपड़ी या करोटि में कुल 28 अस्थियां होती हैं। जिसमें 8 अस्थियों का प्रयोग संयुक्त रूप से मस्तिष्क की सुरक्षा के लिए खोल बनाने अर्थात कपाल के निर्माण में होता है तथा 14 हड्डियों का प्रयोग चेहरे का कंकाल बनाने में होता है तथा शेष 6 के द्वारा कर्ण अस्थि का निर्माण होता है।
 यह सभी सिवानो द्वारा एक दूसरे से दृढ़ता से जुड़ी हुई होती है।


कशेरुकी दण्ड ( vertebral column or back bone )

कशेरुक दंड को मेरुदंड अथवा रीड की हड्डी के नाम से भी जाना जाता है इसका विस्तार पीठ के मध्य रेखा में , सिर से धड़ के निचली छोर तक होता है ।
कशेरुक दंड में रीड की हड्डीया  सुरक्षित रहती है।
कशेरुकी दंड का निर्माण 26 छोटी-छोटी हड्डियों द्वारा होता है ( शिशुओ में 33 )।



पहला कशेरुक - एटलस
कशेरुक दंड के कार्य-
सिर को सीधा रखना ।
गर्दन तथा धन को आधार प्रदान करना ।
खड़े होने , चलने आदि मदद करना ।
गर्दन तथा धड़ को लचक प्रदान करना ।
किसी भी दिशा में गर्दन और धड को मोड़ने में मदद करना ।मेरुरज्जु को सुरक्षा प्रदान करना।












2. उपांगीय कंकाल ( appendicular skeleton)
हाथ व पैर तथा इनको धड़ से जोड़ने वाली में   मेखलाये उपांगीय कंकाल के अंतर्गत आती हैं । इन में कुल 126 हड्डियां होती हैं , जिनमें से-

 ऊपरी अर्थात उच्च अग्रांग में 

असममेखलाये   4
हाथ         -   60

निम्न अग्रांग -
श्रोणिमेखलाये  - 2
टांग         -   60

 दोनों हाथ पैर मिलाकर कुल 120 अस्थियां।

मेखलाये- 
मनुष्य में अग्रपाद तथा पश्चपाद को अक्षीय कंकाल पर साधने के लिए दो चाप होते हैं ।
अग्र पाद की मेखला को अंश मेखला तथा पश्चपाद की मेखला को श्रेणी मेखला कहा जाता है।
 अंस मेखला से अग्र पाद की अस्थि ह्यूमरस से जुड़ी होती है तथा श्रेणी मेंखला से पश्चपाद की अस्थि फीमर  जुड़ी होती है।



कंकाल तंत्र का कार्य - 
शरीर को निश्चित आकार प्रदान करना ।
कोमल अंगों की सुरक्षा करना ।
पेशियों को जोड़ने का आधार प्रदान करना ।
स्वसन व पोषण में सहायता करना ।
आरबीसी का निर्माण करना।


अन्य -
हड्डियां कंकरीट जैसी मजबूत तथा ग्रेनाइट जैसी कठोर होती है लेकिन दोनों पदार्थों की अपेक्षा या हल्की होती है ।
हड्डियों के निर्माण में सर्वाधिक 85% भाग फास्फोरस का होता है ।
मनुष्य के शरीर में 206 हड्डियां होती हैं शरीर की सबसे छोटी हड्डी कर्ण अस्थि  स्टीपस होती है ।

शरीर का सबसे बड़ी हड्डी जांघ की हड्डी फीमर होती है।
शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि यकृत होती है ।
मनुष्य के शरीर में लगभग 650 मांसपेशियां होती हैं ।
ग्लूटस मैक्सिमस शरीर की सबसे बड़ी मांसपेशी है ।
छोटी आत लगभग 7 मीटर लंबी होती है तथा उसका व्यास ढाई सेंटीमीटर होता है ।
वयस्क मनुष्य के मस्तिष्क का वजन 1400 ग्राम होता है ।मनुष्य के शरीर पर लगभग 50 लाख बाल होते हैं सिर के बालों की संख्या लगभग एक लाख है।


Wednesday, October 10, 2018

तंत्रिका तंत्र

तन्त्रिका तंत्र- सारे शरीर में महीन धागे के समान तंत्रिकाये हैं जो वातावरण के परिवर्तनों की सूचनाएं संवेदी अंगों से प्राप्त करके विद्युत आवेगो के रूप में   प्रसारण करते हैं और शरीर के विभिन्न भागों के बीच कार्यात्मक समन्वय में बनाते हैं।








मनुष्य का तंत्रिका तंत्र तीन भागों में विभक्त किया गया है

1.केंद्रीय तंत्रिका तंत्र
2.परिधीय तंत्रिका तंत्र
3.स्वायत्त या स्वाधीन तंत्रिका तंत्र


1. केंद्रीय तंत्रिका तंत्र- केंद्रीय तंत्रिका तंत्र संपूर्ण शरीर तथा स्वयं तंत्रिका तंत्र पर नियंत्रण करता है यह दो भागों से मिलकर बना होता है
a. मस्तिष्क
b. मेरुरज्जु


 मस्तिष्क  अस्थियों के खोल क्रेनियन में बंद होता है जो इसे बाहरी आघात से बचाता है इसका वजन 1400 ग्राम होता है।


    सेरिब्रम-
यह मस्तिष्क का सबसे विकसित भाग है यह बुद्धिमता ,स्मृति इच्छाशक्ति, ऐच्छिक गतिविधियों, ज्ञानवाणी एवं चिंतन का केंद्र है । ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त परिणामों का विश्लेषण एवं समन्वय इसी में होता है।

थैलमस- दर्द, ठंडा तथा गर्म को पहचानने का कार्य करता है






हाइपोथैलेमस - अंतः स्रावी ग्रंथियों से स्रावित होने वाले हार्मोन का नियंत्रण करता है। पोस्टीरियर, पिट्यूटरी ग्रंथि से स्रावित होने वाले हार्मोन इससे स्रावित होते हैं ।
भूख ,प्यास, ताप नियंत्रण ,प्यार घृ,णा आदि का केंद्र यही  है । रक्तदाब ,जल के उपापचय, पसीना ,गुस्सा ,खुशी आदि के नियंत्रण इसी भाग द्वारा होता है ।

कारपोरा क्वाडीजेमिना - यह दृष्टि एवं श्रवण शक्ति का नियंत्रण केंद्र है।


क्रूरा सेरीब्री - मस्तिष्क के अन्य भागों को मेरुरज्जु से जोड़ता है।








सेरीबेलम -यह शरीर का संतुलन बनाता है तथा पेशियों के संकुचन पर नियंत्रण रखता है ,कान के आंतरिक भाग में संवेदनाएं ग्रहण करता है।

मेड्यूला आब्लॉगेटा -  मस्तिष्क के सबसे पीछे का भाग है यह उपापचय ,रक्तदाब ,आहार नाल के क्रमांनुकुंचन ग्रन्थियों श्रवाव, हृदय की धड़कन को नियंत्रित करता है ।


2. परिधीय तंत्रिका तंत्र - मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु से निकलने वाली तंत्रिका ओं से बना होता है।
 कपाल एवं मेरुरज्जु की तंत्रिका परिधीय तंत्रिका तंत्र में आती हैं।
 मनुष्य में 12 जोड़ी कपाल तंत्रिकाऐ तथा 31 जोड़ी मेरुरज्जु तंत्रिका में होती है।


 न्यूरान - यह तंत्रिका कोशिका है या तंत्रिका उत्तक की इकाई है


3. स्वायत्तता स्वाधीन तंत्रिका तंत्र- यह परिधीय तंत्रिका तंत्र का ही भाग है इसमें कुछ मस्तिष्क एवं कुछ मेरुरज्जु तंत्रिकाओं का  भाग होोता है ।आंतरिक भागों तथा रक्त वाहिनीओं को तंत्रिकाओं की आपूर्ति करता है ।

यह अवधारणा सबसे पहले लौगली द्वारा 1921 में दी गई

इसके दो प्रमुख भाग होते हैं

a.अनुकंपी तंत्र 
b. पराअनुकंपी तंत्र


अनुकंपी तंत्र का प्रमुख कार्य - संकट ,तनाव ,कष्ट भय आदि के दौरान शरीर को सुरक्षात्मक प्रतिक्रियाओं के लिए तैयार करना ।
त्वचा में उपस्थित रुधिर वाहिनी को संकीर्ण करना ।
प्रतिक्रिया के दौरान बालों का खड़ा करना।
 लार ग्रंथियों का स्राव कम करना ।
ह्रदय स्पंदन तेज करना, स्वेद ग्रंथियों का स्त्राव को प्रारंभ करना ।
आंख की पुतली का फैलाना, मूत्राशय की पेशियों का विमोचन।
 आंत में क्रमनुकूचन की गति को कम करना ।
श्वसन दर में वृद्धि करना।
रक्त  दाब बढ़ाना।
 रुधिर में शर्करा के स्तर को बढ़ाना।
 रुधिर में लाल रुधिर कणिका की वृद्धि करना।
 रक्त का थक्का बनने में मदद करना।









परानुकंपी तंत्र -  कोरोनरी रुधिर वाहिनीओं को छोड़कर रुधिर वाहनियों का गुहा चौड़ा करना ।
लार के स्राव में अन्य पाचक रसों में वृद्धि करना ।
नेत्र की पुतली का संकुचन करना ।
मूत्राशय की अन्य पेशिओं में संकुचन उत्पन्न करना ।
अम्लीय भित्तियो में संकुचन एवं गति उत्पन्न करना।
सामूहिक रुप से आराम और सुख की स्थिति उत्पन्न करना ।शरीर की पाचन ,स्वसन ,उत्सर्जन ,रुधिर संचरण आदि सामान्य क्रियाओं को बढ़ावा देना जिससे कि ऊर्जा का अतिरिक्त व्यय न हो और उसका संरक्षण एवं पुन: भण्डारण हो सके।

Tuesday, October 9, 2018

दूरसंचार से संबंधित महत्वपूर्ण संस्थाएं

1.दूरसंचार इंजीनियरिंग केंद्र-

यह भारत सरकार के दूरसंचार आयोग का केंद्रीय टेक्नोलॉजी संगठन है इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है इसका प्रमुख उद्देश दूरसंचार उपकरण सेवाओं व उत्पादों के लिए सामान्य आवश्यकताओं का मानकीकरण और विकास करना है ।उपकरणों सेवाओं एवं उत्पादों का आकलन और स्वीकृति प्रदान करना और नई प्रौद्योगिकी का अध्ययन व परीक्षण का प्रयोग करना भी इसका प्रमुख कार्य है।



2. टेलीमेटिक्स विकास केंद्र (C-DOT)

इसकी स्थापना 1984 में हुई थी यह एक स्वायत्त पंजीकरण निकाय है इसका उद्देश्य स्विचिंग प्रणाली की एक नई पीढ़ी की खोज करना तथा संचार प्रणाली का विकास करना है।




3. महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड ( MTNL) -

 इसकी स्थापना 1986 में हुई थी इसका कार्य क्षेत्र मुंबई तथा दिल्ली के महानगर सीमाओं के अंतर्गत दूरसंचार सेवाओं का प्रबंधन नियंत्रण एवं संचालन करना है।



4. विदेश संचार निगम लिमिटेड (VSNL)
-इसकी स्थापना 1986 में हुई थी या पूर्ववर्ती विदेश संचार सेवा को पूर्णतया संचार मंत्रालय के अधीन सार्वजनिक उपक्रम में बदलकर बनाया गया है ,इसका मुख्यालय मुंबई में है निगम में भारत सरकार की इक्विटी भागीदारी 52.97% है।
 अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार सेवा उपलब्ध कराने के लिए इससे एकाधिकार प्राप्त है अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क में संपर्क के लिए स्थापित गेटवे दिल्ली, कोलकाता ,चेन्नई, जालंधर ,गांधी नगर एवं एर्नाकुलम में है।
 यह अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार सेवा उपलब्ध कराने के साथ-साथ     प्रसारण व रिसेप्शन, तीव्र गति से डिजिटल    लीट लाईन, उपग्रह आधारित ग्लोबल मोबाइल कम्युनिकेशन नेटवर्क आईएसडीएन गेटवे, पैकेट स्विचिंग ,ईमेल, डाटा इनंतर चेंज ,वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आदि सेवा उपलब्ध कराता है।












4. भारत संचार निगम लिमिटेड(BSNL)-

 इसकी स्थापना 2000 में हुई थी इसका उद्देश्य दूरसंचार विस्तार अभियान में संपूर्ण समायोजन लाना तथा बेहतर ग्राहक सेवा के नए आयाम स्थापित करना है, यह निगम बुनियादी सेलुलर तथा इंटरनेट के साथ साथ संचार के किसी भी क्षेत्र में कार्य करने के लिए स्वतंत्र है । यह निगम स्वतंत्रता नवरत्न लोग उपकरणों के समान है देश की सबसे बड़ी दूरसंचार सेवा कंपनी है।



5. टेलीकम्युनिकेशंस कंसल्टेंट्स इंडिया लिमिटेड (TCIL)

इसकी स्थापना 1978 में हुई थी या संचार मंत्रालय के अधीन कार्य करता है इसका उद्देश्य परिकल्पना से लेकर समाप्ति तक दूरसंचार से संबंधित सभी समस्याओं का समाधान करना तथा दूरसंचार से संबंधित सेवाएं प्रदान करना है ।
यह एक अग्रणी बहुपक्षीय दूरसंचार इंजीनियरिंग और परामर्श संगठन है, यह मुख्य रूप से स्विचिंग प्रणाली, ट्रांसमिशन प्रणाली, स्थानीय नेटवर्क ,डेडीकेट नेटवर्क ,उपग्रह दूरसंचार ,ग्रामीण संचार, सूचना प्रौद्योगिकी दूर संचार एवं परामर्श तथा प्रशिक्षण आदि सेवाएं देता है।



6. हिंदुस्तान टेलीप्रिंटर्स लिमिटेड (HTL)-
इसकी स्थापना 1960 में हुई थी इसका उद्देश्य दूरसंचार विभाग के टेलीग्राफ और टैलेक्स नेटवर्क ओं के लिए इलेक्ट्रोमैकेनिकल टेलीप्रिंटर बनाना था,वर्तमान में इसका प्रयोग की समाप्त हो चुका है मुख्य रूप से यह वर्तमान में डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक स्विचिंग उपकरण , ट्रांसमिशन उपकरण डाटा टर्मिनस एक्सेस उत्पाद डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेम्स पावर प्लांट ,पीसीओ मॉनीटर, लाइन जैक का कार्य करता है










7. भारतीय टेलीफोन उद्योग लिमिटेड (ITIL)-
इसकी स्थापना 1948 में हुई थी और 1950 में इसे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी के रूप में परिवर्तित कर दिया गया । देश में इसकी कुल 7 विनिर्माण इकाइयां है 2 बेंगलुरु में और एक- एक नैनी , रायबरेली, श्रीनगर, पलक्कड़ और मनकापुर में है। देश में दूरसंचार उपकरण बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है।


8. वायरलेस नियोजन और समन्वय शाखा -
इसकी स्थापना वर्ष 1952 में हुई थी देश में रेडियो स्पेक्ट्रम के प्रयोग के लिए नियमन तथा समन्वय के लिए राष्ट्रीय रेडियो नियमन प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।
 दूरसंचार संबंधित सभी मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार यूनियन के साथ विभिन्न मुद्दों पर संपर्क करने के लिए केंद्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करती है । यह एशिया पेसिफिक टेलीकम्युनिटी के साथ संपर्क बनाए रखती है।

शैक्षणिक व व्यवसायिक संस्थान

1. भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी नई दिल्ली
उद्देश्य - प्राकृतिक विज्ञान के ज्ञान का विकास एवं प्रसार


2.भारतीय विज्ञान अकादमी बैंगलोर
उद्देश्य- वैज्ञानिक शिक्षा का विकास,


3. राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी इलाहाबाद
उद्देश्य- विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधित कार्यों को प्रोत्साहन तथा शोध पत्रो का प्रकाशन










4.भारतीय राष्ट्रीय अभियांत्रिकी अकादमी नई दिल्ली
उद्देश्य-युवा इंजीनियरों को प्रोत्साहन देना ,तकनीकी हस्तांतरण विकास प्रक्रिया में परिवर्तन तथा इंजीनियरिंग अनुसंधान



5.भारतीय विज्ञान कांग्रेस संघ कोलकाता
उद्देश्य- वार्षिक विज्ञान कांग्रेस में प्रस्तुत वैज्ञानिक दस्तावेजों का संरक्षण करना

Monday, October 8, 2018

भारत के प्रमुख अनुसंधान संस्थान


अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थाएं
1. विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर ( VSSC ) तिरुवंतपुरम

2.इसरो सेटेलाइट सेंटर, बैंगलोर

3. स्पेस एप्लीकेशन सेंटर ( SPC )अहमदाबाद

4. सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी ( CAT )इंदौर

5. इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन ( ISRO ) तुंबा (केरल )

6. इनसैट मास्टर कंट्रोल फैसिलिटी, हासन कर्नाटक

7. SHAR CENTER ,श्रीहरिकोटा आंध्र प्रदेश





परमाणु अनुसंधान संस्थान

1.भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ( BARC ) ट्राम्बे 

2.फिजिकल रिसर्च लैबोरेट्री, अहमदाबाद

3.साहा इंस्टीट्यूट आफ न्यूक्लियर फिजिक्स, कोलकाता 

4.टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च ( TIFR )मुंबई 

5.इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च, कलपक्कम (तमिलनाडु)
 6.मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ मैथ्स एंड फिजिक्स, इलाहाबाद 

7.सेंट्रल फ्यूल रिसर्च इंस्टीट्यूट जागू गेड़ा (झारखंड ) 

8.रेडियो इम्यूनो ऐसे सेंटर, डिब्रूगढ़ (असम )


कृषि एवं पशुपालन अनुसंधान संस्थान

 1.भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ( ICAR )नई दिल्ली 

2.भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ( IARI )नई दिल्ली 

3.इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर रिसर्च (IIHR )बैंगलोर
4.इंडियन लाख रिसर्च इंस्टीट्यूट (ILRI )रांची झारखंड 

5.सेंट्रल टोबैको रिसर्च इंस्टीट्यूट ( CTRI )राजामुंदरी आंध्र प्रदेश

 6.गन्ना प्रजनन केंद्र (SBI )कोयंबटूर

7.केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान ( CRRI )कटक उड़ीसा 

8.केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान ( CPRI )शिमला

 9.केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल हरियाणा
10.नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट( NDRI ) करनाल 

11.केंद्रीय भेड़ अनुसंधान संस्थान बीकानेर

12.केंद्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (CBRI ) लखनऊ 

13.बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलीयोबॉटनी, लखनऊ 

14.सेंटर फॉर सेल्युलर एन्ड मॉलिक्यूलर बायलॉजी, हैदराबाद

Sunday, October 7, 2018

महत्वपूर्ण विज्ञान दिवस

      तिथि     -        दिवस 

5 जनवरी        -    लुइस ब्रेल दिवस

 23 जनवरी      -   कुष्ठ निवारण दिवस

21 फरवरी     -     राष्ट्रीय पॉलीमर दिवस

28 फरवरी      -  राष्ट्रीय विज्ञान दिवस

30 मार्च       -    विश्व मौसम विज्ञान दिवस

 7 अप्रैल      -    विश्व स्वास्थ्य दिवस

17 अप्रैल     -    विश्व हीमोफीलिया दिवस

22 अप्रैल     -     पृथ्वी दिवस

2 मई         -      विश्व अस्थमा दिवस

3 मई        -       अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा दिवस

11 मई       -      राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस

17 मई       -       विश्व दूरसंचार दिवस

31 मई       -       विश्व तंबाकू निषेध दिवस

5 जून       -         विश्व पर्यावरण दिवस

26 जून      -      अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ विरोधी दिवस

11 जुलाई   -       विश्व जनसंख्या दिवस

1 से 6 अगस्त  -    विश्व स्तनपान सप्ताह

19 अगस्त       -    विश्व फोटोग्राफी दिवस

14 सितंबर    -      राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस

16 सितंबर     -    ओजोन दिवस

3 अक्टूबर      -    विश्व पशु दिवस

6 अक्टूबर     -   विश्व वन्य प्राणी दिवस

10 अक्टूबर     -  विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस

16 अक्टूबर      -   विश्व खाद्य दिवस

14 नवंबर       -     विश्व मधुमेह दिवस

1 दिसंबर       -      विश्व एड्स दिवस

3 दिसंबर        -    विश्व विकलांग दिवस

14 दिसंबर      -    राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस

सीहोर यात्रा

 लोग कहते हैं जब भगवान की कृपा होती है तो बाबा बुला ही लेते है। बस ऐसा ही मेरे साथ हुआ। मैं बड़ी माँ के यहाँ गया था ( बड़ी माँ और मैं एक ही शह...