मैं तेरा तो न हो पाया,
पर मेरे अपने सब छूट गए।
किस्मत में तुझको लिखने की जिद से,
हार के मेरे सब रूठ गए।
समझाया सबने मुझको ,
भय, लाड़, भी दिखाया था मुझको।
दिलाया याद स्नेह का भी,
बीते पल , खुशियों के लम्हे।
गिनाए रिस्ते भी सबने,
जतन किये अपने अपने।
पर रुका कहाँ कब,
घटना था जो।
हुआ वही होना था जो।
अब बैठ अकेले सोचा करता,
क्या होता करता न जो।
सब कहने सुनने की बाते है,
अब निबट अकेली राते है।
अब यादों की ही यादे है,
पर अलग ही उनकी बातें हैं।
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