सीमंतोन्नयन संस्कार हिंदू धर्म का तीसरा संस्कार है । यह गर्भाधान के चौथे से आठवें मार्च तक यह संस्कार संपन्न होता था । इसमें स्त्री के केसों को ऊपर उठाया जाता था । ऐसी अवधारणा थी कि गर्भवती स्त्री के शरीर में प्रेत आत्माएं नाना प्रकार की बाधा पहुंचाती है जिनके निवारण के लिए कुछ धार्मिक कृत्य किए जाने चाहिए । इसी उद्देश्य इस संस्कार का विधान किया गया था । इसके माध्यम से गर्भवती नारी की समृद्धि तथा भ्रूण के दीर्घायु की कामना की जाती थी ।इस संस्कार के संपादित होने के दिन स्त्री व्रत रखती थी।
पुरुष मातृ पूजा करता था तथा प्रजापति देवता को आहुतियां दी जाती थी । इस समय वह अपने साथ कच्चे उदुम्बर फलों का एक गुच्छा तथा सफेद चिन्ह वाले शाही के तीन काटे रखता था । स्त्री अपने केशों में सुगंधित तेल डालकर यज्ञ मंडप में प्रवेश करती थी । जहां वेद मंत्रों के उच्चारण के बीच उसका पति उसके बालों को ऊपर उठाता था । बाद में गर्भवती स्त्री के शरीर पर एक लाल चिन्ह बनाया जाने लगा जिससे भूत-प्रेत आदि उससे दूर रहें । इस संस्कार के साथ स्त्री को सुख तथा संतवाना प्रदान की जाती थी।
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