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Thursday, January 17, 2019

उपसर्ग

उपसर्ग - उपसर्ग , उप + सर्ग से मिलकर बना है जिसमे उप का अर्थ समीप तथा सर्ग का अर्थ है सृष्टि करना।

अर्थात वह शब्द जो किसी शब्द के समीप आकर नया शब्द बना देता है , उपसर्ग होता है ।

वह शब्द जो किसी शब्द के आगे लग कर उस शब्द में विशेषता ला देता है अथवा उसके अर्थ में परिवर्तन कर देता है , उपसर्ग होता है।


हिंदी के उपसर्गो को निम्न भागो में बांटा गया है।

1. संस्कृत के उपसर्ग ( संख्या 22 )

2. हिन्दी के उपसर्ग  ( संख्या 13 )

3. उर्दू और फ़ारसी के उपसर्ग ( संख्या 19 )

4. अंग्रेजी के उपसर्ग

5.उपसर्ग के समान प्रयोग होने वाले संस्कृत के अवयय



संस्कृत के उपसर्ग -

उपसर्ग          अर्थ             शब्द

अति   - अधिक/परे   - अत्यन्त, अतीव, अतीन्द्रिय, अत्यधिक, अत्युत्तम।


अधि  - मुख्य/श्रेष्ठ-    अधिकृत, अध्यक्ष, अधीक्षण, अध्यादेश, अधीन, अध्ययन, अध्यापक।


अनु  -   पीछे/ समान  -  अनुज, अनुरूप, अन्वय, अन्वीक्षण, अनूदित, अन्वेक्षण, अनुच्छेद।

अप  -  विपरीत/बुरा   - अपव्यय, अपकर्ष, अपशकुन, अपेक्षा।


अभि  -  पास/सामने  -   अभिभूत, अभ्युदय, अभ्यन्तर, अभ्यास, अभीप्सा, अभीष्ट।

अव    -  बुरा/ हीन      - अवज्ञा,अवतार, अवकाश, अवशेष।


आ  -     तक/से      -    आघात, आगार, आगम, आमोद, आतप


उत्     - ऊपर/ श्रेष्ठ -    उज्जवल, उदय, उत्तम, उद्धार, उच्छ्वास, उल्लेख।


उप    -  समीप     -    उपवन, उपेक्षा, उपाधि, उपहार, उपाध्यक्ष।


दुर्  -     बुरा/ कठिन -   दुरूह, दुर्गुण, दुरवस्था, दुराशा, दुर्दशा।


दुस्   -  बुरा/ कठिन  -  दुष्कर, दुस्साध्य, दुस्साहस, दुश्शासन।


नि    -    बिना/विशेष  -  न्यून, न्याय, न्यास, निकर, निषेध, निषिद्ध।


निर्   -   बिना/बाहर -    निरामिष, निरवलम्ब, निर्धन, नीरोग, नीरस, नीरीह।


निस् -     बिना/बाहर -    निश्छल, निष्काम, निष्फल,निस्सन्देह।


प्र   -     आगे/अधिक -   प्रयत्न, प्रारम्भ, प्रोज्जवल, प्रेत, प्राचार्य,प्रार्थी।


परा     - पीछे/अधिक  -  पराक्रम, पराविद्या, परावर्तन,पराकाष्ठा।


परि   -   चारों ओर     - पर्याप्त, पर्यटन, पर्यन्त, परिमाण, परिच्छेद,पर्यावरण।


प्रति  -    प्रत्येक      -    प्रत्येक, प्रतीक्षा, प्रत्युत्तर, प्रत्याशा, प्रतीति।


वि   -    विशेष/भिन्न -    विलय, व्यर्थ, व्यवहार, व्यायाम,व्यंजन,व्याधि,व्यसन,व्यूह।


सु     -  अच्छा/सरल  -  सुगन्ध, स्वागत, स्वल्प, सूक्ति, सुलभ।


सम्    -  पूर्ण शुद्ध    -   संकल्प, संशय, संयोग, संलग्न, सन्तोष।


अन्   -  नहीं/बुरा   -     अनुपम, अनन्य, अनीह, अनागत, अनुचित, अनुपयोगी।






हिन्दी के उपसर्ग - 

 अ - मूल शब्द का विलोम - अज्ञान, अथाह, अलौकिक

  1. अन - के बिना  -अनजान, अनचाहा, अनमना, अनमोल

  1. अध - आधा - अधपका, अधजला

  1. औ/अव - बुरा - औसत, अवगुण

  1.  सु/स - अच्छा - सुस्वाद, सजल, सपूत

  1. कु/क  - बुरा - कुरूप, कपूत

  1. उन - एक कम - उन्नीस, उनन्चास

  1. बिन  - के बिना - बिनदेखा

  1. नि  - का अभाव होना - निरोगी, निडर

  1. भर  - खूब, बहुत, पूरा - भरपूर, भरपेट


 दु  -  कम , बुरा -   दुबला , दुलारा 





उर्दू अरबी फ़ारसी के उपसर्ग

ला  -बिनालाचार, लाजवाब, लापरवाह, लापता इत्यादि।
बदबुराबदसूरत, बदनाम, बददिमाग, बदमाश, बदकिस्मत इत्यादि।
बेबिनाबेकाम, बेअसर, बेरहम, बेईमान, बेरहम इत्यादि।
कमथोड़ा, हीनकमसिन, कामखयाल, कमज़ोर, कमदिमाग, कमजात, इत्यादि।
ग़ैरके बिना, निषेधगैरकानूनी, गैरजरूरी, ग़ैर हाज़िर, गैर सरकारी, इत्यादि।
खुशश्रेष्ठता के अर्थ मेंखुशनुमा, खुशगवार, खुशमिज़ाज, खुशबू, खुशदिल, खुशहाल इत्यादि।
नाअभावनाराज, नालायक, नादनामुमकिन, नादान, नापसन्द, नादान इत्यादि।
अलनिश्र्चितअलबत्ता, अलगरज आदि।
बरऊपर, पर, बाहरबरखास्त, बरदाश्त, बरवक्त इत्यादि।
बिलके साथबिलआखिर, बिलकुल, बिलवजह
हमबराबर, समानहमउम्र, हमदर्दी, हमपेशा इत्यादि।
दरमेंदरअसल, दरहक़ीक़त
फिल/फीमें प्रतिफिलहाल, फीआदमी
और, अनुसारबनाम, बदौलत, बदस्तूर, बगैर
बासहितबाकायदा, बाइज्जत, बाअदब, बामौक़ा
सरमुख्यसरताज, सरदार, सरपंच, सरकार
बिलाबिनाबिलावजह, बिलाशक
हरप्रत्येकहरदिन हरसाल हरएक हरबार


अंग्रेजी के उपसर्ग -

उपसर्गअर्थउपसर्ग से बने शब्द
सबअधीन, नीचेसब-जज, सब-कमेटी, सब-इंस्पेक्टर
डिप्टीसहायकडिप्टी-कलेक्टर, डिप्टी-रजिस्ट्रार, डिप्टी-मिनिस्टर
वाइससहायकवाइसराय, वाइस-चांसलर, वाइस-पप्रेसीडेंट
जनरलप्रधानजनरल मैनेजर, जनरल सेक्रेटरी
चीफप्रमुखचीफ-मिनिस्टर, चीफ-इंजीनियर, चीफ-सेक्रेटरी
हेडमुख्यहेडमास्टर, हेड क्लर्क


उपसर्ग के समान प्रयुक्त होने वाले संस्कृत के अव्यय -
उपसर्गअर्थउपसर्ग से बने शब्द
अधःनीचेअधःपतन, अधोगति, अधोमुखी, अधोलिखित
अंतःभीतरीअंतःकरण, अंतःपुर, अंतर्मन, अंतर्देशीय
अभावअशोक, अकाल, अनीति
चिरबहुत देरचिरंजीवी, चिरकुमार, चिरकाल, चिरायु
पुनरफिरपुनर्जन्म, पुनर्लेखन, पुनर्जीवन
बहिरबाहरबहिर्गमन, बहिर्जगत
सतसच्चासज्जन, सत्कर्म, सदाचार, सत्कार्य
पुरापुरातनपुरातत्व, पुरावृत्त
समसमानसमकालीन, समदर्शी, समकोण, समकालिक
सहसाथसहकार, सहपाठी, सहयोगी, सहचर


Wednesday, January 16, 2019

तद्भव तत्सम

तत्सम - तत्सम , तत + सम से मिलकर बना है जिसका अर्थ है , उसके समान ।
अर्थात संस्कृत के समान ।

हिन्दी मे अनेक शब्द संस्कृत से ज्यो के त्यों प्रयोग होते हैं , इन्हें तत्सम शब्द कहा जाता है।


तद्भव -  तद्भव , तत + भव से मिलकर बना है जिसका  अर्थ है उससे उद्भव होंने वाला।  आर्थात संस्कृत से    उतपन्न होंने वाला ।
ये शब्द प्राकृत, अपभ्रंश , पुरानी हिन्दी आदि से गुजरने के बाद  परिवर्तित हो गये है


कुछ उदाहरण - 

संस्कृत    -   प्राकृत    -   हिंदी
उज्ज्वल       उज्जल       उजला
कर्पूर            कप्पूर        कपूर
संध्या            संझा        साँझ
हस्त            हत्थ         हाथ


किसी भी तद्भव शब्द का तत्सम लिखने के लिए उसका संस्कृत शब्द लिखते हैं ।


तत्सम और तद्भव शब्दों को पहचानने के नियम :-
(1) तत्सम शब्दों के पीछे ‘ क्ष ‘ वर्ण का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों के पीछे ‘ ख ‘ या ‘ छ ‘ शब्द का प्रयोग होता है।

(2) तत्सम शब्दों में ‘ श्र ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है।

(3) तत्सम शब्दों में ‘ श ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ स ‘ का प्रयोग हो जाता है।

(4) तत्सम शब्दों में ‘ ष ‘ वर्ण का प्रयोग होता है।

(5) तत्सम शब्दों में ‘ ऋ ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है।

(6) तत्सम शब्दों में ‘ र ‘ की मात्रा का प्रयोग होता है।

(7) तत्सम शब्दों में ‘ व ‘ का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ‘ ब ‘ का प्रयोग होता है।



तत्सम शब्द = तद्भव शब्द के उदाहरण इस प्रकार हैं :-
अ, आ से शुरू होंने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
1. आम्र = आम
2. आश्चर्य = अचरज
3. अक्षि = आँख
4. अमूल्य = अमोल
5. अग्नि = आग
6. अँधेरा = अंधकार
7. अगम्य = अगम
8. अर्ध = आधा
9. अकस्मात = अचानक
10. आलस्य = आलस
11. अज्ञानी = अज्ञानी
12. अश्रु = आँसू
13. अक्षर = अच्छर
14. अंगरखा = अंगौछा
15. आश्रय = आसरा
16. आशीष = असीस
17. अशीति = अस्सी
18. ओष्ठ = ओंठ
19. आरात्रिका = आरती
20. अमृत = अमिय
21. अंध = अँधा
22. अर्द्ध = आधा
23. अन्न = अनाज
24. अनर्थ = अनाड़ी
25. अग्रणी = अगुवा
26. अक्षवाट = अखाडा
27. अंगुष्ठ = अंगूठा
28. अक्षोट = अखरोट
29. अट्टालिका = अटारी
30. अष्टादश = अठारह
31. अंक = आँक
32. अंगुली = ऊँगली
33. अंचल = आंचल
34. अंजलि = अँजुरी
35. अखिल = आखा
36. अगणित = अनगिनत
37. अद्य = आज
38. अम्लिका = इमली
39. अमावस्या = अमावस
40. अर्पण = अरपन
41. अन्यत्र = अनत
42. अनार्य = अनाड़ी
43. अज्ञान = अजान
44. आदित्यवार = इतवार
45. आभीर = अहीर
46. आम्रचूर्ण = अमचूर
47. आमलक = आँवला
48. आर्य = आरज
49. आश्रय = आसरा
50. आश्विन = आसोज
51. आभीर = अहेर

इ , ई से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
52. इक्षु = ईंख
53. ईर्ष्या = इरषा
54. इष्टिका = ईंट

उ , ऊ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
55. उलूक = उल्लू
56. ऊँचा = उच्च
57. उज्ज्वल = उजला
58. उष्ट्र = ऊँट
59. उत्साह = उछाह
60. ऊपालम्भ = उलाहना
61. उदघाटन = उघाड़ना
62. उपवास = उपास
63. उच्छवास = उसास
64. उद्वर्तन = उबटन
65. उलूखल = ओखली
66. ऊषर = ऊँट

ए , ऐ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
67. एकादश = ग्यारह
68. एला = इलायची

ऋ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
69. ऋक्ष = रीछ

क , ख से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
70. किरण = किरन
71. कुपुत्र = कपूत
72. कर्म = काम
73. काक = कौआ
74. कपोत = कबूतर
75. कदली = केला
76. कपाट = किवाड़
77. कीट = कीड़ा
78. कूप = कुआँ
79. कोकिल = कोयल
80. कर्ण = कान
81. कृषक = किसान
82. कुम्भकर = कुम्हार
83. कटु = कडवा
84. कुक्षी = कोख
85. क्लेश = कलेश
86. काष्ठ = काठ
87. कृष्ण = किसन
88. कुष्ठ = कोढ़
89. कृतगृह = कचहरी
90. कर्पूर = कपूर
91. कार्य = काज
92. कार्तिक = कातिक
93. कुक्कुर = कुत्ता
94. कन्दुक = गेंद
95. कच्छप = कछुआ
96. कंटक = काँटा
97. कुमारी = कुँवारी
98. कृपा = किरपा
99. कपर्दिका = कौड़ी
100. कुब्ज = कुबड़ा
101. कोटि = करोड़
102. कर्तव्य = करतब
103. कंकण = कंगन
104. किंचित = कुछ
105. केवर्त = केवट
106. खटवा = खाट

ग , घ से शुरु होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
107. घोटक = घोडा
108. गृह = घर
109. घृत = घी
110. ग्राम = गाँव
111. गर्दभ = गधा
112. घट = घडा
113. ग्रीष्म = गर्मी
114. ग्राहक = गाहक
115. गौ = गाय
116. घृणा = घिन
117. गर्जर = गाजर
118. ग्रन्थि = गाँठ
119. घटिका = घड़ी
120. गोधूम = गेंहूँ
121. ग्राहक = गाहक
122. गौरा = गोरा
123. गृध = गीध
124. गायक = गवैया
125. ग्रामीण = गँवार
126. गोमय = गोबर
127. गृहिणी = घरनी
128. गोस्वामी = गुसाई
129. गोपालक = ग्वाला
130. गर्मी = घाम

च , छ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
131. चन्द्र = चाँद
132. छिद्र = छेद
133. चर्म = चमडा
134. चूर्ण = चूरन
135. छत्र = छाता
136. चतुर्विंश = चौबीस
137. चतुष्कोण = चौकोर
138. चतुष्पद = चौपाया
139. चक्रवाक = चकवा
140. चर्म = चाम
141. चर्मकार = चमार
142. चंचु = चोंच
143. चतुर्थ = चौथा
144. चैत्र = चैत
145. चंडिका = चाँदनी
146. चित्रकार = चितेरा
147. चिक्कण = चिकना
148. चवर्ण = चबाना
149. चक = चाक
150. छाया = छाँह

ज , झ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
151. जिह्वा = जीभ
152. ज्येष्ठ = जेठ
153. जमाता = जवाई
154. ज्योति = जोत
155. जन्म = जनम
156. जंधा = जाँध
157. झरन = झरना
158. जीर्ण = झीना

त , थ से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
159. तैल = तेल
160. तृण = तिनका
161. ताम्र = ताँबा
162. तिथिवार = त्यौहार
163. ताम्बूलिक = तमोली
164. तड़ाग = तालाब
165. त्वरित = तुरंत
166. तपस्वी = तपसी
167. तुंद = तोंद
168. तीर्थ = तीरथ

द , ध से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
169. दूर्वा = दूब
170. दधि = दही
171. दुग्ध = दूध
172. दीपावली = दीवाली
173. धर्म = धरम
174. दंत = दांत
175. दीप = दीया
176. धूम्र = धुआँ
177. धैर्य = धीरज
178. दिशांतर = दिशावर
179. धृष्ठ = ढीठ
180. दंतधावन = दतून
181. दंड = डंडा
182. द्वादश = बारह
183. द्विगुणा = दुगुना
184. दंष्ट्रा = दाढ
185. दिपशलाका = दिया सलाई
186. द्विप्रहरी = दुपहरी
187. धरित्री = धरती
188. दंष = डंका
189. द्विपट = दुपट्टा
190. दुर्बल = दुर्बला
191. दुःख = दुख
192. द्वितीय = इजा
193. दक्षिण = दाहिना
194. धूलि = धुरि
195. धन्नश्रेष्ठी = धन्नासेठी
196. दौहित्र = दोहिता
197. देव = दई

न , प से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
198. पक्षी = पंछी
199. नयन = नैन
200. पत्र = पत्ता
201. नृत्य = नाच
202. निंद्रा = नींद
203. पद = पैर
204. नव्य = नया
205. प्रस्तर = पत्थर
206. नासिका = नाक
207. पिपासा = प्यास
208. पक्ष = पंख
209. नवीन = नया
210. नग्न = नंगा
211. पुत्र = पूत
212. प्रहर = पहर
213. पितृश्वसा = बुआ
214. प्रतिवेश्मिक = पड़ोसी
215. प्रत्यभिज्ञान = पहचान
216. प्रहेलिका = पहेली
217. पुष्प = फूल
218. पृष्ठ = पीठ
219. पौष = पूस
220. पुत्रवधू = पतोहू
221. पंच = पाँच
222. नारिकेल = नारियल
223. निष्ठुर = निठुर
224. पश्चाताप = पछतावा
225. प्रकट = प्रगट
226. प्रतिवासी = पड़ोसी
227. पितृ = पिता
228. पीत = पीला
229. नापित = नाई
230. पर्यंक = पलंग
231. पक्वान्न = पकवान
232. पाषाण =पाहन
233. प्रतिच्छाया = परछाई
234. निर्वाह = निवाह
235. निम्ब = नीम
236. नकुल = नेवला
237. नव = नौ
238. परीक्षा = परख
239. पुष्कर = पोखर
240. पर्ण = परा
241. पूर्व = पूरब
242. पंचदष = पन्द्रह
243. पक्क = पका
244. पट्टिका = पाटी
245. पवन = पौन
246. प्रिय = पिय
247. पुच्छ = पूंछ
248. पर्पट = पापड़
249. फणी = फण
250. पद्म = पदम
251. परख: = परसों
252. पाष = फंदा
253. प्रस्वेदा = पसीना

फ , ब से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
254. बालुका = बालू
255. बिंदु = बूंद
256. फाल्गुन = फागुन
257. बधिर = बहरा
258. बलिवर्द = बैल
259. बली वर्द = बींट

भ , म से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
260. मयूर = मोर
261. मुख = मुँह
262. मक्षिका = मक्खी
263. मस्तक = माथा
264. भिक्षुक = भिखारी
265. मृत्यु = मोत
266. भिक्षा = भीख
267. मातुल = मामा
268. भ्राता = भाई
269. मिष्ट = मीठा
270. मृत्तिका = मिट्टी
271. भुजा = बाँह
272. भगिनी = बहिन
273. मृग = मिरग
274. मनुष्य = मानुष
275. भक्त = भगत
276. भल्लुक = भालू
277. मार्ग = मग
278. मित्र = मीत
279. मुष्टि = मुट्ठी
280. मूल्य = मोल
281. मूषक = मूस
282. मेघ = मेह
283. भाद्रपद = भादौं
284. मौक्तिक = मोती
285. मर्कटी = मकड़ी
286. मश्रु = मूंछ
287. भद्र = भला
288. भ्रत्जा = भतीजा
289. भ्रमर = भौरां
290. भ्रू = भौं
291. मुषल = मूसल
292. महिषी = भैंस
293. मरीच = मिर्च

य , र से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
294. रात्रि = रात
295. युवा = जवान
296. यश = जस
297. राशि = रास
298. रोदन = रोना
299. योगी = जोगी
300. राजा = राय
301. यमुना = जमुना
302. यज्ञोपवीत = जनेऊ
303. यव = जौ
304. राजपुत्र = राजपूत
305. यति = जति
306. यूथ = जत्था
307. युक्ति = जुगति
308. रक्षा = राखी
309. रज्जु = रस्सी
310. रिक्त = रीता
311. यषोदा = जसोदा

ल , व से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
312. वानर = बन्दर
313. लौह = लोहा
314. वत्स = बच्चा
315. विवाह = ब्याह
316. वधू = बहू
317. वाष्प = भाप
318. विद्युत् = बिजली
319. वार्ता = बात
320. लक्ष = लाख
321. लक्ष्मण = लखन
322. व्याघ्र = बाघ
323. वणिक = बनिया
324. वाणी = बैन
325. वरयात्रा = बारात
326. वर्ष = बरस
327. वैर = बैर
328. लज्जा = लाज
329. लवंग = लौंग
330. लोक = लोग
331. वट = बड
332. वज्रांग = बजरंग
333. वल्स = बछड़ा
334. लोमशा = लोमड़ी
335. वक = बगुला
336. वंष = बांस
337. वृश्चिका = बिच्छु
338. लवणता = लुनाई
339. लेपन = लीपना
340. विकार = विगाड
341. व्यथा = विथा
342. वर्षा = बरसात

स , श , ष , श्र से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
343. सूर्य = सूरज
344. स्वर्ण = सोना
345. स्तन = थन
346. सूची = सुई
347. सुभाग = सुहाग
348. शिक्षा = सीख
349. शुष्क = सूखा
350. सत्य = सच
351. सर्प = साँप
352. श्रंगार = सिंगर
353. शत = सौ
354. सप्त = सात
355. शर्कर = शक्कर
356. शिर = सिर
357. श्रृंग = सींग
358. श्रेष्ठी = सेठ
359. श्रावण = सावन
360. शाक = साग
361. शलाका = सलाई
362. श्यामल = साँवला
363. शून्य = सूना
364. शप्तशती = सतसई
365. स्फोटक = फोड़ा
366. स्कन्ध = कंधा
367. स्नेह = नेह
368. श्यालस = साला
369. शय्या = सेज
370. स्वसुर = ससुर
371. श्रंखला = साँकल
372. श्रृंगाल = सियार
373. शिला = सिल
374. सूत्र = सूत
375. शीर्ष = सीस
376. स्थल = थल
377. स्थिर = थिर
378. ससर्प = सरसों
379. सपत्नी = सौत
380. स्वर्णकार = सुनार
381. शूकर = सूअर
382. शाप = श्राप
383. श्याली = साली
384. श्मषान = समसान
385. शुक = सुआ

ह , क्ष से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
386. हास्य = हँसी
387. क्षीर = खीर
388. क्षेत्र = खेत
389. हिरन = हरिण
390. हस्त = हाथ
391. हस्ती = हाथी
392. क्षत्रिय = खत्री
393. क्षार = खार
394. क्षत = छत
395. हरिद्रा = हल्दी
396. क्षति = छति
397. क्षीण = छीन
398. क्षत्रिय = खत्री
399. हट्ट = हाट
400. होलिका = होली
401. ह्रदय = हिय
402. हंडी = हांड़ी

त्र से शुरू होने वाले तत्सम = तद्भव शब्द :-
403. त्रिणी = तीन

404. त्रयोदष = तेरह

Tuesday, January 15, 2019

मुहावरे एवं उनका अर्थ

अंगारों पर पैर रखना           -       कठिन कार्य करना

अंगारे सिर पर रखना      -      विपत्ति मोल लेना

अँगूठा चूसना        -      नासमझी करना

अम्बर के तारे गिनना      -      नींद न आना

अक्ल के पीछे लाठी लिए फिरना -     मूर्खता पूर्ण कार्य करना

अपना सा मुँह लेकर रह जाना      - लज्जित होना

अपना घर समझना     -     संकोच न करना

आंख मिलाना      -     सामने आना

आँखों मे सरसो फूलना    -    मस्ती होना

आंखों का पानी ढलना     -   निर्लज्ज होना

आठ आठ आँसू बहाना    -   बहुत रोना

आसमान पर दिमाग चढ़ना    - बहुत घमण्ड होना

अंगुली पकड़ के पहुँचा पकड़ना   - थोड़ा प्राप्त होने पर पूरा अधिकार जमाना


कसाई के खूंटे से बंधना    - निर्दयी व्यक्ति को सौंपना

कुँए में बाँस डालना       - बहुत तलाश करना

कूप मण्डूक होना।   - संकुचित विचार वाला होना

खटाई में डालना    -   उलझन पैदा करना

खून सूख जाना    -   भयभीत होना

खेत रहना   - लड़ाई में मारा जाना

गाल बजाना  -  डींग मारना

गुड़ गोबर करना  - काम बिगाड़ना

घर की खेती   -  सहज प्राप्त होने वाला पदार्थ

घर फूंक तमाशा देखना  -  क्षणिक आनन्द के लिये बहुत खर्च करना

घी के दिये जलाना   -खुशी मनाना

चाँद पर थूकना    -    निर्दोष को दोष देना

छाती पर मूंग दलना  -  बहुत परेशान करना

छाती पर सांप लोटना   -  ईर्ष्या से हृदय जल उठना

जहर उगलना  -  जली कटी बोलना

जहाज का पंछी होना  -  मजबूरी में आश्रय लेना

जीती मक्खी निगलना   -  अहित की बात स्वीकार करना

झक मारना  -  व्यर्थ समय गवाना

टेढ़ी खीर   -  कठिन कार्य

टोपी उछालना   -  इज्जत से खिलवाड़ करना

ठकुरसुहाती करना  -  चापलूसी करना

ढाई ईंट की मस्जिद अलग बनाना  -  सार्वजनिक मत के विरुद्ध कार्य करना

तीन तेरह करना  -  गायब करना, तितर वितर करना


तीन का तेरह    -  बढ़ा चढा के बताना

तीन पांच करना  - इधर उधर की बात करना

थाली का बैंगन होंना  - पछ बदलते रहना

दिल भर आना  - दुखी हो जाना





Saturday, August 4, 2018

मुहावरे एवं लोकोक्तियां

भाषा को सशक्त एवं प्रवाहमयी बनाने के लिए मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग किया जाता है। वार्तालाप के बीच में इनका प्रयोग बहुत सहायक होता है कभी-कभी तो मात्र मुहावरे और लोकोक्तियों के कथन से ही बात बहुत अधिक स्पष्ट हो जाती है और वक्ता का उद्देश्य भी सिद्ध हो जाता है। इन के प्रयोग से हास्य, क्रोध, घृणा ,प्रेम ,ईर्ष्या आदि भावों को सफलतापूर्वक प्रकट किया जा सकता है।

मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग करने से भाषा में निम्नलिखित गुणों में वृद्धि होती है।
1. वक्ता का आशिक कम से कम शब्दों में स्पष्ट हो जाता है
2. वक्ता अपने हृदयस्थ भाव को कम से कम शब्दों में प्रकट कर सकता है ।
3. भाषा सबल सशक्त एवं प्रभावोत्पादक बन जाती है ।
4. भाषा की व्यंजना शक्ति का विकास होता है

मुहावरे एवं लोकोक्तियां का अर्थ

मुहावरा अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है अभ्यास'
हिंदी में यह शब्द रूढ़ हो गया है जिसका अर्थ है- ' लक्षणा या व्यंजना द्वारा सिद्ध वाक्य'  जो किसी एक की ही बोली या लिखी जाने वाली भाषा में प्रचलित हो और जिसका अर्थ प्रत्यक्ष अर्थ से विलक्षण हो।


लोकोक्तियां यह दो शब्दों से मिलकर बना है लोके + उक्ति

अर्थात  किसी क्षेत्र विशेष में कही हुई बात।

 इसके अंतर्गत किसी कवि की प्रसिद्ध उक्ति भी आ सकती है लोकोक्ति किसी भी प्रासंगिक घटना पर आधारित होती है समाज के प्रबुद्ध इतिहासकारों साहित्यकारों कवियों के द्वारा जब किसी प्रकार के लोग अनुभव को एक ही वाक्य में व्यक्त कर दिया जाता है तो उनको प्रयुक्त करना सुगम हो जाता है यह वाक्य अथवा लोकोक्तियां गद्य एवं पद्य दोनों में ही देखने को मिलती हैं इस प्रकार ऐसा वाक्य कथन अथवा उक्ति जो अपने विशिष्ट अर्थ के आधार पर संक्षेप में ही किसी सच्चाई को प्रकट कर सके लोगों की अथवा कहावत कही जाती है।

मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर -मुहावरा देखने में छोटा होता है अर्थात या पूरे वाक्य का एक अंग मात्र होता है साथ ही इसके लाक्षणिक अर्थ की प्रधानता होती है जैसे - लाठी खाना  इस वाक्य में खाना का लक्ष्यकि प्रहार  सहने से है।
लाठी खाने की चीज नहीं है।

 परंतु लोकोक्ति में जिस अर्थ प्रकट किया जाता है वह लगभग पूर्ण होता है इसमें अधूरापन नहीं होता जैसे- उल्टा चोर कोतवाल को डांटे इस उदाहरण में अर्थ का अधूरापन नहीं है ना ही वाक्य ही अधूरा है।

Thursday, August 2, 2018

हिंदी में प्रथम

हिन्दी में प्रथम डी. लिट् - डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल


विज्ञान में शोधप्रबंध हिंदी में देने वाले प्रथम विद्यार्थी - मुरली मनोहर जोशी


अन्तरराष्ट्रीय संबन्ध पर अपना शोधप्रबंध लिखने वाले प्रथम व्यक्ति - वेद प्रताप वैदिक


हिंदी में बी.टेक. का प्रोजेक्ट रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले प्रथम विद्यार्थी : श्यामरूद्र पाठक (सन् १९८५)


डॉक्टर आफ मेडिसिन (एमडी) की शोधप्रबन्ध पहली बार हिन्दी में प्रस्तुत करने वाले - डॉ० मुनीश्वर गुप्त (सन् १९८७)



हिन्दी माध्यम से एल-एल०एम० उत्तीर्ण करने वाला देश का प्रथम विद्यार्थी - चन्द्रशेखर उपाध्याय


प्रबंधन क्षेत्र में हिन्दी माध्यम से प्रथम शोध-प्रबंध के लेखक - भानु प्रताप सिंह (पत्रकार) ; विषय था - उत्तर प्रदेश प्रशासन में मानव संसाधन की उन्नत प्रवत्तियों का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन- आगरा मंडल के संदर्भ में


हिन्दी का पहला इंजीनियर कवि - मदन वात्स्यायन



हिन्दी में निर्णय देने वाला पहला न्यायधीश -- न्यायमूर्ति श्री प्रेम शंकर गुप्त



सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में हिन्दी के प्रथम वक्ता -- नारायण प्रसाद सिंह (सारण-दरभंगा ; 1926)



लोकसभा में सबसे पहले हिन्दी में सम्बोधन : सीकर से रामराज्य परिषद के सांसद एन एल शर्मा पहले सदस्य थे जिन्होने पहली लोकसभा की बैठक के प्रथम सत्र के दूसरे दिन 15 मई 1952 को हिन्दी में संबोधन किया था।



हिन्दी में संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देने वाला प्रथम राजनयिक -- अटल बिहारी वाजपेयी


हिन्दी का प्रथम महाकवि -- चन्दबरदाई


हिंदी का प्रथम महाकाव्य -- पृथ्वीराजरासो


हिंदी का प्रथम ग्रंथ -- पुमउ चरउ (स्वयंभू द्वारा रचित)


हिन्दी का पहला समाचार पत्र -- उदन्त मार्तण्ड (पं जुगलकिशोर शुक्ल)


हिन्दी की प्रथम पत्रिका
सबसे पहला हिन्दी-आन्दोलन : हिंदीभाषी प्रदेशों में सबसे पहले बिहार प्रदेश में सन् 1835 में हिंदी आंदोलन शुरू हुआ था। इस अनवरत प्रयास के फलस्वरूप सन् 1875 में बिहार में कचहरियों और स्कूलों में हिंदी प्रतिष्ठित हुई।



समीक्षामूलक हिन्दी का प्रथम मासिक -- साहित्य संदेश ( आगरा, सन् 1936 से 1942 तक)



हिन्दी का प्रथम आत्मचरित - अर्धकथानक ( कृतिकार हैं - जैन कवि बनारसीदास (कवि) (वि.सं. १६४३-१७००))



हिन्दी का प्रथम व्याकरण - 'उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण' (दामोदर पंडित)


हिन्दी का प्रथम मानक शब्दकोश -- हिंदी शब्दसागर


हिन्दी का प्रथम विश्वकोश -- हिन्दी विश्वकोश


हिन्दी का प्रथम कवि - राहुल सांकृत्यायन की हिन्दी काव्यधारा के अनुसार हिन्दी के सबसे पहले मुसलमान कवि अमीर खुसरो नहीं, बल्कि अब्दुर्हमान हुए हैं। ये मुलतान के निवासी और जाति के जुलाहे थे। इनका समय १०१० ई० है। इनकी कविताएँ अपभ्रंश में हैं। -(संस्कृति के चार अध्याय, रामधारी सिंह दिनकर, पृष्ठ ४३१ )




हिन्दी की प्रथम कहानी - हिंदी की सर्वप्रथम कहानी कौनसी है, इस विषय में विद्वानों में जो मतभेद शुरू हुआ था वह आज भी जैसे का तैसा बना हुआ है. हिंदी की सर्वप्रथम कहानी समझी जाने वाली कड़ी के अर्न्तगत सैयद इंशाअल्लाह खाँ की 'रानी केतकी की कहानी' (सन् 1803 या सन् 1808 ), राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद की 'राजा भोज का सपना' (19 वीं सदी का उत्तरार्द्ध), किशोरी लाल गोस्वामी की 'इन्दुमती' (सन् 1900), माधवराव सप्रेकी 'एक टोकरी भर मिट्टी' (सन् 1901), आचार्य रामचंद्र शुक्ल की 'ग्यारह वर्ष का समय' (सन् 1903) और बंग महिला की 'दुलाई वाली' (सन् 1907) नामक कहानियाँ आती हैं.





हिन्दी का प्रथम उपन्यास -- 'देवरानी जेठानी की कहानी' (लेखक - पंडित गौरीदत्त ; सन् १८७०) । श्रद्धाराम फिल्लौरी की भाग्यवती और लाला श्रीनिवास दास की परीक्षा गुरू को भी हिन्दी के प्रथम उपन्यस होने का श्रेय दिया जाता है।


हिंदी का प्रथम विज्ञान गल्प -- ‘आश्चर्यवृत्तांत’ (अंबिका दत्त व्यास ; 1884-1888)


हिंदी का प्रथम नाटक -- नहुष (गोपालचंद्र , १८४१)


हिंदी का प्रथम काव्य-नाटक -- ‘एक घूँट’ (जयशंकर प्रसाद ; 1915 ई.)


हिन्दी का प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता -- सुमित्रानंदन पंत (१९६८)



हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास - भक्तमाल / इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐन्दूई ऐन्दूस्तानी (अर्थात "हिन्दुई और हिन्दुस्तानी साहित्य का इतिहास", लेखक गार्सा-द-तासी )



हिन्दी कविता के प्रथम इतिहासग्रन्थ के रचयिता -- शिवसिंह सेंगर ; रचना - शिवसिंह सरोज



हिन्दी साहित्य का प्रथम व्यवस्थित इतिहासकार -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल



हिन्दी का प्रथम चलचित्र (मूवी) -- सत्य हरिश्चन्द्र



हिन्दी की पहली बोलती फिल्म (टाकी) -- आलम आरा



हिन्दी का अध्यापन आरम्भ करने वाला प्रथम विश्वविद्यालय - कोलकाता विश्वविद्यालय (फोर्ट विलियम् कॉलेज)


देवनागरी के प्रथम प्रचारक -- गौरीदत्त


हिन्दी का प्रथम चिट्ठा (ब्लॉग) - 

हिंदी गद्य के विकास - क्रम का काल विभाजन

हिन्दी गद्य का काल विभाजन
  • पूर्व भारतेंदु युग अथवा हिन्दी गद्य साहित्य का प्रारंभिक काल  - 13वी शताब्दी के मध्य से सन 1868 तक
  • भारतेंदु युग अथवा पुनर्जागरण काल -  सन 1868 से 1900 तक
  • द्विवेदी युग - सन 1900 से 1922 तक
  • शुक्ल युग अथवा छायावादी युग - 1919 से 1938 तक
  • छायावादोत्तर युग - 1938 से वर्तमान तक

Saturday, May 12, 2018

सन्धि

सन्धि की परिभाषा- संधि का सामान्य अर्थ है मेल या मिलाना जब दो शब्द पास पास आते हैं तो एक दूसरे की निकटता के कारण पहले शब्द के अंतिम वर्ण तथा दूसरे शब्द के प्रथम वर्णन में अथवा दोनों में कुछ परिवर्तन हो जाता है इस प्रकार होने वाले परिवर्तन या विकार को संधि कहते हैं जैसे हिमालय  के अंतिम वर्ण अ तथा आलय के प्रथम वर्ण आ  के मिलाने पर हिमालय रूप बना 

संधि दो शब्दोंं का मेल ना हो कर दो वर्णों का मेल होता है 

यह तीन प्रकार के होते हैं 
1 स्वर संधि 
2 व्यंजन संधि 
3 विसर्ग संधि




स्वर सन्धि की परिभाषा -  स्वरों का स्वरों के साथ मेेल होने पर जो उसमें ध्वनि संबंधी परिवर्ततन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं स्वर संधि केे मुख्य रूप से पांच भेद होतेे

1  दीर्घ संधि 
2  गुण संधि 
3  यण संधि 
4  अयादि संधि 
5  वृद्धि सन्धि


दीर्घ सन्धि - यदि  ह्रस्व या दीर्घ  स्वर ( अ , इ ,उ , ऋ , ऌ  ) के बाद क्रमशः  अ , इ ,उ , ऋ , ऌ आये तो दोनों वर्णो के मिलने पर   क्रमशः  दीर्घ स्वर आ ,ई , ऊ और ॡ‌  बन जाता है।

अ + अ = आ
आ + अ = आ
अ + आ = आ
आ + आ = आ

जैसे -

धर्म + अर्थ = धर्मार्थ।    अ + अ = आ


विद्या + अध्ययनम   = विद्याध्ययनम     आ + अ = आ


धन + आगम = धनागम       अ + आ = आ

विद्या + आलय   = विद्यालय।   आ + आ = आ



इ + इ = ई

इ + ई = ई

ई + इ = ई

ई + ई = ई



जैसे - 

कवि + इंद्र = कवीन्द्र     इ + इ = ई

वारि + ईश  = वारीश     इ + ई = ई

मालती + इच्छित = मालतीच्छित।    ई + इ = ई

मही + ईश = महीश।   ई + ई= ई




उ + उ = ऊ

उ + ऊ = ऊ

ऊ + उ = ऊ

ऊ + ऊ = ऊ





 ऋ + ऋ = ॠ

ऋ + ॠ = ॠ

ॠ+ ऋ = ॠ

ॠ  ॄ+ ॠ =ॠ



जैसै -

पितृ + ऋणम = पीतॄणम   ऋ + ऋ = ॠ



ऌ + ऌ = ॠ

जैसै - 

होतृ + ऌकार = होतृकार


विशेष - ऋ और लृ सवर्ण संज्ञक है अतः दोनो समान स्वर माने जाते हैं।







गुण सन्धि -  जब अ अथवा आ के बाद  कोई भी ह्रस्व या दीर्घ स्वर   इ ,उ , ऋ , ऌ आये तो वहां क्ररमशः  ए ,ओ , अर ,अल हो जााता है।


इ या ई ,  ए हो जाता है

उ या ऊ , ओ हो जाता है

ऋ , अर हो जाता है

लृ , अल हो जाता है


जैसे -

देव + इंद्र = देवेंद्र         अ + इ = ए


भाग्य + उदय = भाग्योदय ।   अ + उ = ओ

वसन्त + ऋतु = वसन्तर,तु:     अ + ऋ = अर

मम + लृकार = ममल्कार      अ + लृ = अल




यण सन्धि - यदि ह्रस्व या दीर्घ इ , उ, ऋ या लृ के बाद को असमान स्वर आ जाए   तो

इ या ई  का य

उ या ऊ का व

ऋ का र

लृ का ल हो जाता है

जिस व्यजंन में ये स्वर संयुक्त होते हैं उसमें हलन्त लग जाता है।



जैसे - अति + आचार = अत्याचार


इसमें अति का इ बदल कर य हो जाएगा

इ स्वर त व्यंजन में संयुक्त है तो  त पर हलन्त लग जायेगा अर्थात आधा वर्ण हो जाएगा।

आचार में स्वर आ है तो आ की मात्रा लग जायेगा।



लघु + आकृति = लघ्वाकृति

लघु का उ बदल कर व हो जाएगा

घ पर स्वर है तो घ पर हलन्त लग जायेगा

आकृति में आ है तो व पर आ की मात्रा लग जायेगा।


अयादि सन्धि - यदि ए, ऐ ,ओ ,औ के बाद कोई भी स्वर आये तो 

ए का अय

ऐ का आय

ओ का अव

औ का आव

हो जाता है।


हरे + ए = हरये

हरे का ए , अय हो जाएगा

नया सन्धि = हर + अय + ए = हरये


नौ + इक:  = नाविक

औ का आव हो जाएगा

न + आव + इक:  = नाविक



Friday, March 9, 2018

बिंदु ( अनुस्वार ) का प्रयोग , पंचमाक्षर

विंदु ( अनुस्वार )

हम अकसर देखते हैं कि हिंदी के शब्दों में अत्यधिक बिंदुओं का प्रयोग होने लगा है।

जैसे - हिन्दी को हिंदी भी लिखा जा रहा है।

सम्बन्ध को संबन्ध लिखा जा रहा है ।

हम इसे बिल्कुल ठीक ढंग से पढ़ते भी है।

हिंदी    में   बिंदु को  आधा न पढ़ते हैं ।

संबन्ध में   बिंदु को आधा  म पढ़ते हैं।

गंगा में  बिंदु को   आधा  ङ पढ़ते हैं ।



क्या आपको पता है हम ऐसा क्यों पढ़ते हैं ??


बिंदु ( अनुस्वार ) का अर्थ होता है  कि बिंदु जिस वर्ण के पहले आया है उस वर्ण के सबसे अंतिम अर्थात पाँचवे वर्ण का आधा उच्चारण।

जैसे - (1) बिंदु या बिंदी क , ख , ग , घ  के पहले आती है तो क वर्ग का पाँचवा वर्ण ङ का आधा उच्चारण होगा।

उदाहरण - गंगा  - में ग के पहले बिंदी है अतः क वर्ग का पंचम अक्षर ङ का आधा उच्चारण होता है ।




(2)  यदि बिंदी च वर्ग अर्थात च , छ ,ज, झ के पहले आता है तो ञ का आधा उच्चारण किया जाता है।

उदाहरण -  चंचल में बिंदु च के पहले आता है अतः यहाँ बिंदु को आधा ञ पढ़ा जाता है।




(3) यदि बिंदी ट वर्ग अर्थात ट, ठ, ड ,ढ के पहले आता है तो पाँचवे अक्षर ण का आधा उच्चारण होता है ।

उदहारण - ठंडा में बिंदु ड के पहले आया है अतः ण का आधा उच्चारण होता है। ठण्डा



(4) यदि बिंदी त वर्ग अर्थात त ,थ ,द ,ध के पहले आता है तो न का आधा उच्चारण होता है ।

उदहारण - हिंदी में बिंदी द के पहले आया है अतः बिंदी को आधा न पढ़ा जाएगा।


(5) यदि बिंदी प वर्ग अर्थात प, फ, ब ,भ ,के पहले आता है तो वहां पाँचवे अक्षर म का आधा उच्चारण होता है ।

उदहारण - संबन्ध में बिंदी ब के पहले आया है अतः बिंदु को आधा म पढ़ते हैं ।



इसमे पांचवे अक्षर के आधे को बिंदु से लिखते हैं । अतः इस नियम को पञ्चमाक्षर का नियम कहते हैं।




बिंदु ( अनुस्वार ) को लिखने का नियम


जब किसी वर्ग का अंतिम अक्षर या पाँचवे अक्षर का आधा उच्चारण आता है और उसके बाद उसी वर्ग का कोई वर्ण आता है तो हम आधे वर्ण की जगह बिंदु लगा सकते हैं।

जैसे - गङ्गा में  आधे ङ का उच्चारण है और उसके बाद  उसी वर्ग का वर्ण ग है अतः हम इसे गंगा लिख सकते हैं।



किन्तु यदि पाँचवे अक्षर के आधे उच्चारण के बाद उसी वर्ग का वर्ण नही आता है तो हम बिंदु नही लगा सकते।

जैसे -  अन्य में पाँचवा अक्षर आधा है किंतु  बाद में त वर्ग का वर्ण नही आ रहा है अतः यहां बिंदु नह लिख सकते।


 यदि पाँचवे अक्षर आधा आये और उसके बाद फिर वही पाँचवा अक्षर आये तो वहां भी बिंदु का प्रयोग नही किया जा सकता।

जैसे - सम्मिलित  में म का आधा उच्चारण है किन्तु आधे म के बाद फिर म का उच्चारण है अतः यहां बिंदु नही लगाया जा सकता।







Saturday, September 16, 2017

उपसर्ग

उपसर्ग की परिभाषा (Prefixes)
उपसर्ग उस शब्दांश या अव्यय को कहते है, जो किसी शब्द के पहले आकर उसका विशेष अर्थ प्रकट करता है।
दूसरे शब्दों में - जो शब्दांश शब्दों के आदि में जुड़ कर उनके अर्थ में कुछ विशेषता लाते है, वे उपसर्ग कहलाते है।
जैसे- प्रसिद्ध, अभिमान, विनाश, उपकार।
इनमे कमशः 'प्र', 'अभि', 'वि' और 'उप' उपसर्ग है।
यह दो शब्दों (उप+ सर्ग) के योग से बनता है। 'उप' का अर्थ 'समीप', 'निकट' या 'पास में' है। 'सर्ग' का अर्थ है सृष्टि करना। 'उपसर्ग' का अर्थ है पास में बैठाकर दूसरा नया अर्थवाला शब्द बनाना। 'हार' के पहले 'प्र' उपसर्ग लगा दिया गया, तो एक नया शब्द 'प्रहार' बन गया, जिसका नया अर्थ हुआ 'मारना' । उपसर्गो का स्वतन्त्र अस्तित्व न होते हुए भी वे अन्य शब्दों के साथ मिलाकर उनके एक विशेष अर्थ का बोध कराते हैं।
उपसर्ग शब्द के पहले आते है। जैसे -'अन' उपसर्ग 'बन' शब्द के पहले रख देने से एक शब्द 'अनबन 'बनता है, जिसका विशेष अर्थ 'मनमुटाव' है। कुछ उपसर्गो के योग से शब्दों के मूल अर्थ में परिवर्तन नहीं होता, बल्कि तेजी आती है। जैसे- 'भ्रमण' शब्द के पहले 'परि' उपसर्ग लगाने से अर्थ में अन्तर न होकर तेजी आयी। कभी-कभी उपसर्ग के प्रयोग से शब्द का बिलकुल उल्टा अर्थ निकलता है।
उपसर्ग के प्रयोग से शब्दों को तीन स्थितियाँ होती है-
(i)शब्द के अर्थ में एक नई विशेषता आती है;
(ii)शब्द के अर्थ में प्रतिकूलता उत्पत्र होती है,
(iii)शब्द के अर्थ में कोई विशेष अन्तर नही आता।
उपसर्ग की संख्या
हिंदी में प्रचलित उपसर्गो को निम्नलिखित भागो में विभाजित किया जा सकता है-
(1) संस्कृत के उपसर्ग
(2) हिंदी के उपसर्ग
(3) उर्दू के उपसर्ग
(4) अंग्रेजी के उपसर्ग
(5) उपसर्ग के समान प्रयुक्त होने वाले संस्कृत के अव्यय
(1) संस्कृत के उपसर्ग-
उपसर्ग- अर्थ     -  उपसर्ग से बने शब्द
(1)अति -अधिक, ऊपर, उस पार  - अतिकाल, अत्याचार, अतिकर्मण,अतिरिक्त, अतिशय, अत्यन्त, अत्युक्ति, अतिक्रमण, इत्यादि ।
(2) अधि -  ऊपर, श्रेष्ठ -अधिकरण, अधिकार, अधिराज, अध्यात्म, अध्यक्ष, अधिपति इत्यादि।
(3) अप -  बुरा, अभाव, हीनता, विरुद्ध -अपकार, अपमान, अपशब्द, अपराध, अपहरण, अपकीर्ति, अपप्रयोग, अपव्यय, अपवाद इत्यादि।
(4) अ -अभाव अज्ञान, अधर्म, अस्वीकार इत्यादि।
(5) अनु -पीछे, समानता, क्रम, पश्र्चात -अनुशासन, अनुज, अनुपात, अनुवाद, अनुचर, अनुकरण, अनुरूप, अनुस्वार, अनुशीलन इत्यादि।
(6) आ -ओर, सीमा, समेत, कमी, विपरीत -आकाश, आदान, आजीवन, आगमन, आरम्भ, आचरण, आमुख, आकर्षण, आरोहण इत्यादि।
(7) अव - हीनता, अनादर, पतन -अवगत, अवलोकन, अवनत, अवस्था, अवसान, अवज्ञा, अवरोहण, अवतार, अवनति, अवशेष, इत्यादि।
(8) उप -निकटता, सदृश, गौण, सहायक, हीनता- उपकार, उपकूल, उपनिवेश, उपदेश, उपस्थिति, उपवन, उपनाम, उपासना, उपभेद इत्यादि।
(9) नि -भीतर, नीचे, अतिरिक्त -निदर्शन, निपात, नियुक्त, निवास, निरूपण, निवारण, निम्र, निषेध, निरोध, निदान, निबन्ध इत्यादि।
(10) निर्- बाहर, निषेध, रहित -निर्वास, निराकरण, निर्भय, निरपराध, निर्वाह, निर्दोष, निर्जीव, नीरोग, निर्मल इत्यादि।
(11) परा- उलटा, अनादर, नाश- पराजय, पराक्रम, पराभव, परामर्श, पराभूत इत्यादि।
(12) परि -आसपास, चारों ओर, पूर्ण -परिक्रमा, परिजन, परिणाम, परिधि, परिपूर्ण इत्यादि।
(13) प्र -अधिक, आगे, ऊपर, यश- प्रकाश, प्रख्यात, प्रचार, प्रबल, प्रभु, प्रयोग, प्रगति, प्रसार, प्रयास इत्यादि ।
(14) प्रति- विरोध, बराबरी, प्रत्येक,- परिवर्तन प्रतिक्षण, प्रतिनिधि, प्रतिकार, प्रत्येक, प्रतिदान, प्रतिकूल, प्रत्यक्ष इत्यादि।
(15) वि - भित्रता, हीनता, असमानता, -विशेषता विकास, विज्ञान, विदेश, विधवा, विवाद, विशेष, विस्मरण, विराम, वियोग, विभाग, विकार, विमुख, विनय, विनाश इत्यादि।
(16)  सम्- पूर्णता, -संयोग संकल्प, संग्रह, सन्तोष, संन्यास, संयोग, संस्कार, संरक्षण, संहार, सम्मेलन, संस्कृत, सम्मुख, संग्राम इत्यादि।
(17) सु -सुखी, अच्छा भाव, सहज, -सुन्दर सुकृत, सुगम, सुलभ, सुदूर, स्वागत, सुयश, सुभाषित, सुवास, सुजन इत्यादि।
(18) अध- आधे के अर्थ में -अधजला, अधपका, अधखिला, अधमरा, अधसेरा इत्यादि।
(19) अ-अन निषेध के अर्थ में -अमोल, अपढ़, अजान, अथाह, अलग, अनमोल, अनजान इत्यादि।
(20) उन -एक कम -उत्रीस, उनतीस, उनचास, उनसठ, उनहत्तर इत्यादि।
(21) औ- हीनता, निषेध -औगुन, औघट, औसर, औढर इत्यादि।
(22) दु - बुरा, हीन -दुकाल, दुबला इत्यादि।
नि निषेध, अभाव, विशेष निकम्मा, निखरा, निडर, निहत्था, निगोड़ा इत्यादि।
(22( बिन-  निषेध -बिनजाना, बिनब्याहा, बिनबोया, बिनदेखा, बिनखाया, बिनचखा, बिनकाम इत्यादि।
(23) भर -पूरा, ठीक- भरपेट, भरसक, भरपूर, भरदिन इत्यादि।
(24) कु-क -  बुराई, - हीनता कुखेत, कुपात्र, कुकाठ, कपूत, कुढंग इत्यादि।
(2)हिंदी के उपसर्ग-
(1) अन -निषेध अर्थ में -अनमोल, अलग, अनजान, अनकहा, अनदेखा इत्यादि।
(2) अध् -आधे अर्थ में - अधजला, अधखिला, अधपका, अधकचरा, अधकच्चा, अधमरा इत्यादि।
(3) उन -एक कम - उनतीस, उनचास, उनसठ, इत्यादि।
(4) भर - पूरा ,ठीक - भरपेट, भरपूर, भरदिन इत्यादि।
(5) दु -बुरा, हीन, विशेष -दुबला, दुर्जन, दुर्बल, दुकाल इत्यादि।
(6) नि -आभाव, विशेष -निगोड़ा, निडर, निकम्मा इत्यादि।
(7) अ - अभाव, निषेध -अछूता, अथाह, अटल
(8) क -बुरा, हीन -कपूत, कचोट
(9) कु -बुरा -कुचाल, कुचैला, कुचक्र
(10) अव -हीन, निषेध -औगुन, औघर, औसर, औसान
(3)उर्दू के उपसर्ग-
(1) ला -बिना -लाचार, लाजवाब, लापरवाह, लापता इत्यादि।
(2) बद -बुरा -बदसूरत, बदनाम, बददिमाग, बदमाश, बदकिस्मत इत्यादि।
(3) बे -बिना -बेकाम, बेअसर, बेरहम, बेईमान, बेरहम इत्यादि।
(4) कम -थोड़ा, हीन -कमसिन, कामखयाल, कमज़ोर, कमदिमाग, कमजात, इत्यादि।
(5) ग़ैर -के बिना, निषेध -गैरकानूनी, गैरजरूरी, ग़ैर हाज़िर, गैर सरकारी, इत्यादि।
(6) खुश - श्रेष्ठता के अर्थ में खुशनुमा, खुशगवार, खुशमिज़ाज, खुशबू, खुशदिल, खुशहाल इत्यादि।
(7) ना -अभाव - नाराज, नालायक, नादनामुमकिन, नादान, नापसन्द, नादान इत्यादि।
(8) अल -निश्र्चित -अलबत्ता, अलगरज आदि।
(9) बर - ऊपर, पर, बाहर -बरखास्त, बरदाश्त, बरवक्त इत्यादि।
(10) बिल -के साथ -बिलआखिर, बिलकुल, बिलवजह
(11) हम - बराबर, समान - हमउम्र, हमदर्दी, हमपेशा इत्यादि।
(12) दर - में -दरअसल, दरहक़ीक़त
(13) फिल/फी -में प्रति - फिलहाल, फीआदमी
(14) ब -और, अनुसार -बनाम, बदौलत, बदस्तूर, बगैर
(15) बा -सहित - बाकायदा, बाइज्जत, बाअदब, बामौक़ा
(16) सर - मुख्य -सरताज, सरदार, सरपंच, सरकार
बिला बिना बिलावजह, बिलाशक
(17) हर -प्रत्येक -हरदिन हरसाल हरएक हरबार
(4) अंग्रेजी के उपसर्ग -
(1) सब -अधीन, नीचे -सब-जज, सब-कमेटी, सब-इंस्पेक्टर
(2) डिप्टी -सहायक- डिप्टी-कलेक्टर, डिप्टी-रजिस्ट्रार, डिप्टी-मिनिस्टर
(3) वाइस - सहायक -वाइसराय, वाइस-चांसलर, वाइस-पप्रेसीडेंट
(4( जनरल -प्रधान - जनरल मैनेजर, जनरल सेक्रेटरी
(5) चीफ - प्रमुख - चीफ-मिनिस्टर, चीफ-इंजीनियर, चीफ-सेक्रेटरी
(6) हेड - मुख्य -हेडमास्टर, हेड क्लर्क
(5) उपसर्ग के समान प्रयुक्त होने वाले संस्कृत के अव्यय -
(1) अधः - नीचे -अधःपतन, अधोगति, अधोमुखी, अधोलिखित
(2) अंतः - भीतरी -अंतःकरण, अंतःपुर, अंतर्मन, अंतर्देशीय
(3)   अ - अभाव - अशोक, अकाल, अनीति
(4) चिर -बहुत देर - चिरंजीवी, चिरकुमार, चिरकाल, चिरायु
(5) पुनर - फिर - पुनर्जन्म, पुनर्लेखन, पुनर्जीवन
बहिर बाहर बहिर्गमन, बहिर्जगत
(6) सत -सच्चा - सज्जन, सत्कर्म, सदाचार, सत्कार्य
(7)सम -समान - समकालीन, समदर्शी, समकोण, समकालिक
(8) सह -साथ -सहकार, सहपाठी, सहयोगी, सहचर

Friday, September 15, 2017

हिंदी वर्णमाला

वर्ण- भाषा की सबसे छोटी इकाई अथवा ध्वनि को वर्ण कहते है ।
वर्णमाला - वर्ण के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहा जाता है ।
हिंदी वर्णमाला में कुल 52 वर्ण तथा लेखन के लिए 54 वर्ण है ।
जिनमे उच्चारण के अनुसार 10 स्वर ( अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ )  तथा लेखन के लिए 13 स्वर ( अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: )
तथ 35 व्यंजन एवं 4 संयुक्त व्यंजन होते है ।
वर्णमाला के स्वर
वर्णमाला के व्यंजन
क वर्ग -क, ख, ग, घ, ङ
च वर्ग -च, छ, ज, झ, ञ
ट वर्ग- ट, ठ, ड, ढ, ण, (ड़,) (ढ़)
त वर्ग - त, थ, द, ध, न
प वर्ग - प, फ, ब, भ, म
अन्तःस्थ  -य, र, ल, व
उष्ण -श, ष, स
संयुक्त व्यंजन क्ष, त्र, ज्ञ, श्र
स्वर का वर्गीकरण
स्वरों को निम्न आधारों पर वर्गीकृत किया गया है ।
(1) उच्चारण काल के आधार पर -
हस्व स्वर - ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में कम समय लगता है  ( जैसे -अ, इ , उ )
दीर्घ स्वर - ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में अधिक ( दो हस्व स्वर के बराबर ) समय लगता है । ( जैसे - आ, ई, ऊ, ए, ऐ , औ, ऑ )
प्लुत स्वर - इनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय लगता है
(2) जीभ के प्रयोग के आधार पर -
अग्र स्वर - जिनके उच्चारण में जीभ के अग्रभाग का प्रयोग होता है  ( जैसे - इ, ई, ए, ऐ )
मध्य स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का मध्य भाग प्रयोग होता है ( जैसे - अ )
पश्च स्वर - इन स्वरों के उच्चारण में जीभ के पश्च भाग का प्रयोग होता है । ( जैसे - आ, उ, ऊ, ओ, औ, ऑ )
(3) मुख द्वार ( मुख विवर ) खुलने के आधार पर -
विवृत - जिन स्वरों के उच्चारण में पूरा मुह खुलता है ( जैसे - आ )
अर्द्ध विवृत - इन स्वरों के उच्चारण में आधा मुह खुलता है ( जैसे - अ, ऐ, औ, ऑ )
अर्द्ध संवृत - ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में आधा मुह बंद रहता है ( जैसे - ए , ओ )
संवृत - इन स्वरों के उच्चारण मुह लगभग बंद ही रहता है  ( जैसे - इ, ई, उ , ऊ )
(4) ओठो की स्थिती के आधार पर-
आवृत मुखी - जिन स्वरों के उच्चारण में ओठ गोलाकार नही बनते  ( जैसे - अ, आ, इ, ई, ए, ऐ )
वृत्त मुखी - इन के उच्चारण में ओठ गोलाकार हो जाते है ( जैसे - उ, ऊ, ओ, औ, ऑ )
(5) हवा के नाक व् मुह से निकलने के आधार पर -
निरनुनासिक स्वर - ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में हवा केवल मुह से निकलती है ( जैसे - अ, आ, इ )
अनुनासिक स्वर - ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में नाक एवं मुह दोनों से हवा निकलती है ( जैसे - अ, ऑ )
(6)घोषत्व के आधार पर  सभी स्वर घोषत्व होते है इनके उच्चारण में स्वरतन्त्रियो में श्वास कम्पन होता है।
व्यंजन - स्वर की सहायता से बोले जाने वाले वर्ण व्यंजन कहलाता है प्रत्येक व्यंजन में अ स्वर मिला होता है ।
व्यंजन को 3 भागो में बांटा गया है
(1) स्पर्श व्यंजन - जिन व्यंजनो के उच्चारण करते समय हवा फेफड़ो से निकलते समय किसी स्थान विशेष ( कंठ , तालू, मूर्धा, दांत, या होठ ,) पर स्पर्श हो ।
कंठय - ऐसे व्यंजनो के उच्चारण में वायु कंठ में स्पर्श करती है ( जैसे - क, ख, ग, घ, ड. )
तालव्य - फेफड़ो से निकली वायु का स्पर्श तालू में होता है ( जैसे - च, छ, ज, झ, ञ )
मूर्धन्य - वायु मूर्धा को स्पर्श करती है ।
( जैसे - ट, ठ, ड़, ढ़, ण )
दन्त्य - वायु दांत को स्पर्श करती है
( जैसे - त, थ, द, ध, न )
ओष्ठय - उच्चारण के समय वायु ओष्ठ को स्पर्श करती है  ( जैसे - प, फ, ब, भ, म )
(2) अन्तस्थ व्यंजन - जिन वर्णों का उच्चारण स्वर और व्यंजन के बीच होता है उसे अन्तस्थ व्यंजन कहा  जाता है ।
( जैसे - य, र, ल, व )
(3) उष्म / संघर्षी - जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु द्वारा मुख के किसी विशेष स्थान पर रगड से गर्मी उत्पन्न होती है उसे उष्म या संघर्षी व्यंजन कहा जाता है ।
( जैसे - श, ष, स, ह )

सीहोर यात्रा

 लोग कहते हैं जब भगवान की कृपा होती है तो बाबा बुला ही लेते है। बस ऐसा ही मेरे साथ हुआ। मैं बड़ी माँ के यहाँ गया था ( बड़ी माँ और मैं एक ही शह...