Sunday, July 28, 2019

नामकरण संस्कार

हिंदू धर्म का यह पांचवा संस्कार है इसमें बच्चे के जन्म के दसवे अथवा बारहवें दिन नामकरण संस्कार होता था। जिसमें उसका नाम रखा जाता था।  प्राचीन हिंदू समाज में नामकरण का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान था । बृहस्पति के अनुसार नाम ही लोक व्यवहार का प्रथम साधन है। यह गुण एवं भाग्य का भी आधार होता है  । इसी से मनुष्य यश प्राप्त करता है प्राचीन शास्त्रों में इस संस्कार का विस्तृत विवरण मिलता है।  इस संस्कार में के लिए शुभ तिथि नक्षत्र एवं मुहूर्त का चयन किया जाता था यह ध्यान रखा जाता था कि बच्चे का नाम, परिवार समुदाय एवं वर्ण  का बोधक हो।  नक्षत्र मास तथा कुल देवता के नाम पर अथवा व्यवहारिक नाम ही बच्चे को प्रदान किया जाता था । कन्या का नाम मनोहर मंगल सूचक स्पष्ट अर्थ वाला तथा  अंत में दीर्घ अक्षर वाला रखे जाने का विधान था मनु के अनुसार बच्चे का नाम उसके वर्ण का दो तक होना चाहिए ।उनके अनुसार ब्राह्मण का नाम मंगल सूचक ,क्षत्रिय का नाम बल सूचक, वैश्य का नाम धन सूचक तथा शूद्र का नाम निंदा सूचक होना चाहिए । विष्णु पुराण में उल्लेख मिलता है कि ब्राह्मण अपने नाम के अंत में शर्मा,  क्षत्रिय वर्मा, वैश्य गुप्त और शूद्र दास लिखें।




नामकरण संस्कार के पूर्व घर को धोकर पवित्र किया जाता था माता तथा शिशु स्नान करते थे तत्पश्चात माता बच्चे के सिर को जल से भिगोकर तथा साफ कपड़े से उसे ढक कर उसके पिता को दे दी थी।  फिर प्रजापति, नक्षत्र देवताओं अग्नि, सोम आदि को बलि दी जाती थी। पिता बच्चे को स्वास को स्पर्श करता था तथा फिर उसका नामकरण किया जाता था संस्कार के अंत में ब्राह्मणों को ब दिया जाता था

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