हिंदू धर्म का सातवा संस्कार यह बच्चे के जन्म के छठे मास में अन्नप्राशन नामक संस्कार होता था। जिसमें प्रथम बार उसे पक्का हुआ अन्य खिलाया जाता था । इसमें दूध, घी ,दही तथा पका हुआ चावल खिलाने का विधान था। गृह सूत्रों में इस संस्कार के समय विभिन्न पक्षियों के मांस एवं मछली खिलाए जाने का भी विधान मिलता है । उनकी वाणी में प्रवाह लाने के लिए भारद्वाज पक्षी का मांस तथा उसमें कोमलता लाने के लिए मछली खिलाई जाती थी। इसका उद्देश्य बच्चे को शारीरिक तथा बौद्धिक दृष्टि से स्वस्थ बनाना था । बाद में केवल दूध और चावल खिलाने की प्रथा प्रचलित हो गई ।
अन्नप्राशन संस्कार के दिन भोजन को पवित्र ढंग से वैदिक मंत्रों के बीच पकाया जाता था। सर्वप्रथम वाग्देवी को आहुति दी जाती थी अंत में बच्चे का पिता सभी अन्नो को मिला कर बच्चे को उसे ग्रहण कर आता था । तत्पश्चात ब्राह्मणों को भोज देकर यह संस्कार की समाप्ति की जाती थी। इस संस्कार का उद्देश्य था कि एक उचित समय पर बच्चा मां का दूध पीना छोड़ कर अन्न आदि से अपना निर्वाह करने योग्य बन सके।
अन्नप्राशन संस्कार के दिन भोजन को पवित्र ढंग से वैदिक मंत्रों के बीच पकाया जाता था। सर्वप्रथम वाग्देवी को आहुति दी जाती थी अंत में बच्चे का पिता सभी अन्नो को मिला कर बच्चे को उसे ग्रहण कर आता था । तत्पश्चात ब्राह्मणों को भोज देकर यह संस्कार की समाप्ति की जाती थी। इस संस्कार का उद्देश्य था कि एक उचित समय पर बच्चा मां का दूध पीना छोड़ कर अन्न आदि से अपना निर्वाह करने योग्य बन सके।
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