मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास काफी प्रभावशाली रहा है। अपने समय के सबसे प्रतापी राजा सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य 324 ईस्वी पूर्व में गद्दी पर बैठे थे। कुछ लोग चंद्रगुप्त को मुरा नाम की शूद्र स्त्री के गर्भ से उत्पन्न नंद सम्राट की संतान बताते हैं।
संस्कृत नाटक मुद्राराक्षस में उन्हें ‘नंदनवय’ यानी नंद के वंशज कहा गया है।
ब्राम्हण ग्रन्थों में उन्हें सूद्र व नीची जाति का बताया गया है जबकि जैन और बौद्ध ग्रन्थों में उच्च कुल का क्षत्रिय कहा गया है ।
मुद्राराक्षस में उन्हें कुलहीन और वृषाला भी कहा गया है। भारतेंदु हरीशचंद्र के अनुसार उनके पिता नंद के राजा महानंदा और उनकी माता मोरा थी, इसी वजह से उनका उपनाम मौर्य पड़ा। जस्टिन ने दावा किया था की चंद्रगुप्त एक नम्र प्रवृत्ति के शासक थे।
कुछ विद्वानों का मानना है कि नंद प्रसिद्ध एवं खानदानी कुल था।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार, चंद्रगुप्त को मोरिया का वंशज (क्षत्रिय) बताया गया है। चंद्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय समुदाय से थे और उनके पुत्र बिंदुसार और बिंदुसार के पुत्र अशोका भी क्षत्रिय वंशज ही माने जाते हैं।
चंद्रगुप्त के पिता बचपन में एक झगड़े में मारे गए थे और उनकी मां अपने भाइयों के साथ कुसुमपुर पाटलिपुत्र नगर में आईं और वहीं चंद्रगुप्त को जन्म दिया।
चंद्रगुप्त के पिता बचपन में एक झगड़े में मारे गए थे और उनकी मां अपने भाइयों के साथ कुसुमपुर पाटलिपुत्र नगर में आईं और वहीं चंद्रगुप्त को जन्म दिया।
चंद्रगुप्त के मामा ने उनकी जीवन की सुरक्षा को देखते हुए उनको एक गोशाला में छोड़ दिया, जहां गाय पालने वाले ने उनका पालन-पोषण किया और बड़ा होने पर एक शिकारी को सौंप दिया। बताया जाता है कि चंद्रगुप्त ने एक राजकीलम नामक खेल शुरू किया था, जिसको खेलने के दौरान ही चाणक्य ने उन्हें देखा और अपना शिष्य बनाया।
चन्द्रगुप्त के क्षत्रिय होने के प्रमाण -
चन्द्रगुप्त मौर्य चाणक्य का शिष्य था , चाणक्य रूढ़ि वादी ब्राम्हण था , वह नीची जाति के व्यक्ति को अपना शिष्य नही बना सकता था।
चन्द्रगुप्त के वंशज विन्दुसार, अशोक स्वयं को खुले रूप से क्षत्रिय बतलाते हैं।
चंद्रगुप्त ने ब्राम्हण धर्म को छोड़ कर जैन धर्म ग्रहण कर लिया था, कदाचित इस वजह से भी ब्राम्हण ग्रन्थों में उन्हें सूद्र एवं नीची जाति का बताया गया हो।
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