Monday, August 6, 2018

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत

महाद्वीपों के प्रवाहित होने की संभावना का सुझाव सर्वप्रथम फ्रांसीसी विद्वान एंटोनियो स्नाइडर में 1858 में दिया किंतु वैज्ञानिकता के अभाव में इस संभावना को नकार दिया गया ।

1910 में टेलर ने स्थल भाग के क्षैतिज स्थानांतरण को मोड़दार पर्वत की व्याख्या के क्रम में प्रस्तुत किया किंतु कई कारणों से इस की संकल्पना भी मान्यता प्राप्त नहीं कर सकी ।

इसके बाद अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 में महाद्वीपीय प्रवाह को सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया तथा 1915 में इसकी विस्तृत विवेचना की । वेगनर के अनुसार कार्बोनीफेरस युग में संसार के सभी महादेश एक साथ एकत्रित थे और एक स्थल खंड के रूप में विद्यमान थे । वेगनर ने इसे पेंजिया कहा । पेंजिया में विभाजन कार्बोनीफेरस युग में प्रारंभ हुआ और महाद्वीपों का वर्तमान स्वरूप पेंजिया के विखंडन तथा इस विखंडित हुए स्थल खंडों के प्रवाहित होकर अलग होने के फलस्वरुप हुआ ।

वेगनर के अनुसार पेंजिया चारों तरफ से जल से घिरा हुआ था जिसे उसने पैंथालासा कहा उनके अनुसार महाद्वीपों ठोस भाग सियाल तथा महासागरीय भूभाग सीमा का बना हुआ है तथा सियाल सीमा पर तैर रहा है । सीमा के ऊपर तैरते हुए पेंजिया का विखंडन और प्रवाह मुख्यता गुरुत्वाकर्षण शक्तियों की असमानता के कारण हुआ ।
वेगनर के अनुसार जब पंजिया में विभाजन हुआ तब 2 दिशाओं में प्रवाह हुआ उत्तर या विषुवत रेखा की ओर तथा पश्चिम की ओर ।


विषुवत रेखा की ओर प्रवाह गुरुत्व बल तथा प्लवनशीलता के बल के कारण हुआ महाद्वीपों का पश्चिम दिशा की ओर प्रवाह सूर्य तथा चंद्रमा के ज्वारीय बल के कारण हुआ । पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की दिशा की ओर घूमती है और ज्वारीय बल पृथ्वी के भ्रमण पर ब्रेक लगाते हैं इस कारण महाद्वीपीय भाग पीछे छूट जाते हैं तथा स्थल भाग पश्चिम की ओर प्रवाहित होने लगते हैं ।
पैंजिया का  गुरुत्व बल व प्लवनशीलता के बल के कारण दो भागों में भी खंडित हुआ उत्तरी भाग लारेंसशिया या अंगारालैंड तथा दक्षिण का भाग गोंडवानालैंड कहलाया बीच का भाग टेथिस सागर के रूप में बदल गया।

 जुरासिक काल में गोंडवानालैंड का विभाजन हुआ तथा ज्वारीय बल के कारण प्रायद्वीपीय भारत , मेडागास्कर ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका गोंडवानालैंड से अलग होकर प्रवाहित हो गए। इसी समय उत्तर व दक्षिण अमेरिका ज्वारीय बल के कारण पश्चिम की ओर प्रवाहित हो गए।  पश्चिम दिशा में प्रवाहित होने के क्रम में सीमा की रूकावट के कारण पश्चिम भाग में राकी तथा एंडीज पर्वतों का निर्माण हुआ । प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर की ओर प्रवाहित होने के कारण हिंद महासागर तथा दोनों अमेरिकी महाद्वीपों की पश्चिम की ओर प्रवाहित होने के कारण अटलांटिक महासागर का निर्माण हुआ आर्कटिक सागर तथा उत्तरी ध्रुव सागर का निर्माण महाद्वीपों के उत्तरी ध्रुव से हटने के फलस्वरुप हुआ।  कई दिशाओं में महाद्वीपों के अतिक्रमण के कारण पेन्थालाशा का आकार संकुचित हो गया तथा प्रशांत महासागर बना इस प्रकार स्थल व जल का वर्तमान रूप प्लायोसीन युग तक पूर्ण हो गया।



सिद्धांत के पक्ष में प्रमाण - वेगनर के अनुसार आरंभ में सभी स्थलीय भाग पेंजिया के रूप में थे इसके लिए उन्होंने कई प्रमाण प्रस्तुत की है वेगनर के अनुसार अटलांटिक महासागर के दोनों तटों के भौगोलिक एकरूपता पाई जाती है इस एकरूपता के कारण उन्हें आसानी से जोड़ा जा सकता है ।

दक्षिण अमेरिका के पूर्वी तट और अफ्रीका के पश्चिमी तट से मिलाया जा सकता है और इसी प्रकार उत्तरी अमेरिका के पूर्वी यूरोप के पश्चिमी तट से जोड़ा जा सकता है इस स्थिति को जिग सा फिट करते हैं ।

भूगर्भिक प्रमाणों के आधार पर अटलांटिक महासागर के दोनों तटों के कैलिडोनियन तथा हर्सिनियन पर्वत क्रमों में समानता पाई जाती है । दक्षिणी अटलांटिक महासागर के तट पर स्थित अफ्रीका ब्राजील की संरचना और चट्टानों में भी समानताहै।

 दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी अफ्रीका के पश्चिमी तटों का अध्ययन यह प्रमाणित करता है कि दोनों तटों की संरचना में एकरूपता प्राप्त होता है । इसके अलावा भारत, दक्षिण अफ्रीका , फॉकलैंड ,ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका में यह प्रमाणित करता है कि सभी एक ही भाग से जुड़े हुए थे ।


आलोचना - इस सिद्धांत की आलोचना प्रवाह की शक्तियों के संदर्भ में की गई हैं जिनको महाद्वीपों के प्रवाह के लिए उत्तरदाई बताया है वह उपयुक्त नहीं है इसके अलावा वेगनर के सिद्धांत में परस्पर विरोधी बातें भी दिखाई देती हैं पहले उन्होंने कहा कि सियाल सीमा पर बिना रुकावट तैर रहा है और फिर कहा कि सीमा से सियाल  पर रुकावट आई ।


वेगनर ने उस बल के बारे में भी नहीं बताया जिससे कार्बोनिफेरस युग में पहले पैंजिया स्थिर अवस्था में था ।

अटलांटिक तटो के आधार पर वेगनर ने एकरूपता पर जितना जोर दिया है वास्तव में बहुत हद तक सही नहीं है क्योंकि दोनों तटों का भूगर्भिक बनावट सभी जगह मेल नहीं खाती।

 लेकिन इस आलोचनाओं के बावजूद भी वेगनर के सिद्धांत का अपना अलग महत्व है इस सिद्धांत के द्वारा अनेक भौगोलिक और भूवैज्ञानिक समस्याओं को सुलझाने में मदद मिली है।  समय के साथ  नये अनुसंधानो ने  इसकी पुष्टि की है और प्लेट विवर्तनिकी व पूरा- चुमकत्व सिद्धांत द्वारा इस सिद्धांत के समर्थन के कई प्रमाण मिले हैं।

2 comments:

आप इस विषय पर चर्चा ,सुझाव य किसी प्रकार के प्रश्न के लिए सादर आमंत्रित है।
यह पोस्ट अधिक से अधिक लोगो तक पहुचाने में हमारी मदद करे ।

यथा संभव आप प्रश्न हमारे व्हाट्सएप ग्रुप में पूछे

धन्यवाद ।

सीहोर यात्रा

 लोग कहते हैं जब भगवान की कृपा होती है तो बाबा बुला ही लेते है। बस ऐसा ही मेरे साथ हुआ। मैं बड़ी माँ के यहाँ गया था ( बड़ी माँ और मैं एक ही शह...