Saturday, May 12, 2018

सन्धि

सन्धि की परिभाषा- संधि का सामान्य अर्थ है मेल या मिलाना जब दो शब्द पास पास आते हैं तो एक दूसरे की निकटता के कारण पहले शब्द के अंतिम वर्ण तथा दूसरे शब्द के प्रथम वर्णन में अथवा दोनों में कुछ परिवर्तन हो जाता है इस प्रकार होने वाले परिवर्तन या विकार को संधि कहते हैं जैसे हिमालय  के अंतिम वर्ण अ तथा आलय के प्रथम वर्ण आ  के मिलाने पर हिमालय रूप बना 

संधि दो शब्दोंं का मेल ना हो कर दो वर्णों का मेल होता है 

यह तीन प्रकार के होते हैं 
1 स्वर संधि 
2 व्यंजन संधि 
3 विसर्ग संधि




स्वर सन्धि की परिभाषा -  स्वरों का स्वरों के साथ मेेल होने पर जो उसमें ध्वनि संबंधी परिवर्ततन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं स्वर संधि केे मुख्य रूप से पांच भेद होतेे

1  दीर्घ संधि 
2  गुण संधि 
3  यण संधि 
4  अयादि संधि 
5  वृद्धि सन्धि


दीर्घ सन्धि - यदि  ह्रस्व या दीर्घ  स्वर ( अ , इ ,उ , ऋ , ऌ  ) के बाद क्रमशः  अ , इ ,उ , ऋ , ऌ आये तो दोनों वर्णो के मिलने पर   क्रमशः  दीर्घ स्वर आ ,ई , ऊ और ॡ‌  बन जाता है।

अ + अ = आ
आ + अ = आ
अ + आ = आ
आ + आ = आ

जैसे -

धर्म + अर्थ = धर्मार्थ।    अ + अ = आ


विद्या + अध्ययनम   = विद्याध्ययनम     आ + अ = आ


धन + आगम = धनागम       अ + आ = आ

विद्या + आलय   = विद्यालय।   आ + आ = आ



इ + इ = ई

इ + ई = ई

ई + इ = ई

ई + ई = ई



जैसे - 

कवि + इंद्र = कवीन्द्र     इ + इ = ई

वारि + ईश  = वारीश     इ + ई = ई

मालती + इच्छित = मालतीच्छित।    ई + इ = ई

मही + ईश = महीश।   ई + ई= ई




उ + उ = ऊ

उ + ऊ = ऊ

ऊ + उ = ऊ

ऊ + ऊ = ऊ





 ऋ + ऋ = ॠ

ऋ + ॠ = ॠ

ॠ+ ऋ = ॠ

ॠ  ॄ+ ॠ =ॠ



जैसै -

पितृ + ऋणम = पीतॄणम   ऋ + ऋ = ॠ



ऌ + ऌ = ॠ

जैसै - 

होतृ + ऌकार = होतृकार


विशेष - ऋ और लृ सवर्ण संज्ञक है अतः दोनो समान स्वर माने जाते हैं।







गुण सन्धि -  जब अ अथवा आ के बाद  कोई भी ह्रस्व या दीर्घ स्वर   इ ,उ , ऋ , ऌ आये तो वहां क्ररमशः  ए ,ओ , अर ,अल हो जााता है।


इ या ई ,  ए हो जाता है

उ या ऊ , ओ हो जाता है

ऋ , अर हो जाता है

लृ , अल हो जाता है


जैसे -

देव + इंद्र = देवेंद्र         अ + इ = ए


भाग्य + उदय = भाग्योदय ।   अ + उ = ओ

वसन्त + ऋतु = वसन्तर,तु:     अ + ऋ = अर

मम + लृकार = ममल्कार      अ + लृ = अल




यण सन्धि - यदि ह्रस्व या दीर्घ इ , उ, ऋ या लृ के बाद को असमान स्वर आ जाए   तो

इ या ई  का य

उ या ऊ का व

ऋ का र

लृ का ल हो जाता है

जिस व्यजंन में ये स्वर संयुक्त होते हैं उसमें हलन्त लग जाता है।



जैसे - अति + आचार = अत्याचार


इसमें अति का इ बदल कर य हो जाएगा

इ स्वर त व्यंजन में संयुक्त है तो  त पर हलन्त लग जायेगा अर्थात आधा वर्ण हो जाएगा।

आचार में स्वर आ है तो आ की मात्रा लग जायेगा।



लघु + आकृति = लघ्वाकृति

लघु का उ बदल कर व हो जाएगा

घ पर स्वर है तो घ पर हलन्त लग जायेगा

आकृति में आ है तो व पर आ की मात्रा लग जायेगा।


अयादि सन्धि - यदि ए, ऐ ,ओ ,औ के बाद कोई भी स्वर आये तो 

ए का अय

ऐ का आय

ओ का अव

औ का आव

हो जाता है।


हरे + ए = हरये

हरे का ए , अय हो जाएगा

नया सन्धि = हर + अय + ए = हरये


नौ + इक:  = नाविक

औ का आव हो जाएगा

न + आव + इक:  = नाविक




वृद्धि सन्धि -

अ आ का ए ऐ से मेल होने पर ऐ अ आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं ।

(अ + ए = ऐ) एक + एक = एकैक ।
(अ + ऐ = ऐ) मत + ऐक्य = मतैक्य ।
(आ + ए = ऐ) सदा + एव = सदैव ।
(आ + ऐ = ऐ) महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य ।

(अ + ओ = औ) वन + ओषधि = वनौषधि ।
(आ + ओ = औ) महा + औषधि = महौषधि ।
(अ + औ = औ) परम + औषध = परमौषध ।
(आ + औ = औ) महा + औषध = महौषध ।

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