शरीर के विभिन्न तंत्र एवं उनके कार्य
कंकाल तंत्र - मानव शरीर को सख्त संरचना या रूपरेखा प्रदान करता है जो शरीर की रक्षा करता है। यह अस्थियों, उपास्थियों, शिरा (टेंडन) और स्नायु/ अस्थिरज्जु (लिगमेंट) जैसे संयोजी ऊतकों से बना है।
पेशीय तंत्र - हमारे शरीर मैं लगभग 600 पेशियाँ मिलकर पेशी तंत्र का निर्माण करती है ये हड्डियों से जुडी रहती है ये सभी पेशियाँ फैलकर और सिकुड़कर अंगो को चालाती है इन्ही के फैलने-सिकुड़ने के कारन हम चल पाते है, हॅंस पाते है और इधर-उधर देख पाते है1
त्वचा- शरीर का बाह्य आवरण होती है जिसे बाह्यत्वचा (एपिडरमिस) भी कहते हैं। यह वेष्टन प्रणाली का सबसे बड़ा अंग है जो उपकला ऊतकों की कई परतों द्वारा निर्मित होती है और अंतर्निहित मांसपेशियों, अस्थियों, अस्थिबंध (लिगामेंट) और अन्य आंतरिक अंगों की रक्षा करती है।
पाचन तंत्र - भोजन के जटिल पोषक पदार्थो व बड़े अणुओं को विभिन्न रासायनिक क्रियाओं और एंजाइम की सहायता से सरल, छोटे व घुलनशील अणुओं में बदलना पाचन कहलाता है। तथा जो तंत्र यह कार्य करता है। पाचन तंत्र कहलाता है।
परिसंचरण तंत्र - आक्ससीजन , अवशिष्ट पदार्थ एवं भोज्य पदार्थ को ( पाचन के बाद ) एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना ।
श्वसन तंत्र - शरीर मे गैसों का आदान प्रदान करना।
उत्सर्जन तंत्र - शरीर से मल मूत्र का परित्याग करना।
अंत:स्रावी तंत्र - शरीर के विभिन्न अंगों के परिचालन एवं रासायनिक सन्देशवाहक का निर्माण करना।
तंत्रिका तंत्र - केवल जंतुओं में होता है। इसके अंतर्गत, सारे शरीर में महीन धागे के समान तंत्रिकाएँ फैली रहती है, ये वातावरणीय परिवर्तनों की सूचनाओं को संवेदी अंगों से प्राप्त करके, विद्युत् आवेगों अर्थात प्रेरणाओं के रूप में इनका द्रुतगति से प्रसारण करती हैं और पेशियों तथा ग्रंथियों की क्रियाओं को प्रभावित करके शरीर के विभिन्न भागों के बीच कार्यात्मक समन्वय स्थापित करती हैं।
प्रजनन तंत्र - नर एवं मादा लैंगिक कोशिकाओं का निर्माण करना
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