कम्प्यूटर की पीढियां
विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे अविष्कार कम्प्युटर के प्रगति पथ में बहुत सहयोगी रहे हैं| हर पीढ़ी में कम्प्युटर की तकनीकी एवं कार्यप्रणाली में कई आश्चर्यजनक एवं महत्त्वपूर्ण आविष्कार हुए, जिन्होंने कम्प्युटर तकनीकी की काया पलट कर दी| हर पीढ़ी के बाद कम्प्युटर की आकार-प्रकार, कार्यप्रणाली एवं कार्यक्षमता में सुधार होते गए| कम्प्युटर का विकास दो महत्वपूर्ण भागों में साथ-साथ विकास हुआ, एक तो आतंरिक संरचना एवं हार्डवेयर, और दूसरा सॉफ्टवेर, दोनों एक दुसरे पर निर्भर होने के साथ ही साथ एक दुसरे के पूरक भी हैं| जैसे-जैसे पीढ़ी दर पीढ़ी कम्प्यूटर क्षेत्र में तरक्की हुई उनकी मांग भी बढ़ने लगी और वे पहले की अपेक्षा सस्ते भी होते गए, आज कम्प्युटर घर-घर में पहुंचनें की वजह उनका किफायती होना ही है|
कम्प्युटर के पीढियों की कुछ आधारभूत जानकारी इस प्रकार है,
(1) पहली पीढ़ी (1941 से 1954) [आधार - वैक्युम ट्यूब]:
अपने समय के ये सर्वाधिक तेज कम्प्यूटर थे| कम्प्युटर की संरचना में कई हजार वक्क्यूम ट्यूब का मुख्य रूपसे इस्तेमाल किया गया|
जिस वजह से इनके द्वारा बिजली की खपत बहुत अधिक होती थी|
कई हजार वक्क्यूम ट्यूब का इस्तेमाल होने के कारण अत्याद्धिक उर्जा उत्पन्न होती थी|
वैक्यूम ट्यूब में उपयोग में लिए जाने वाले नाज़ुक शीशे के तार अधिक उर्जा से शीघ्र ही जल जाते थे| इनके बाकि कलपुर्जे जल्दी ही ख़राब हो जाते जिससे उन्हें तुंरत बदलना पड़ता था, इनके रख रखाव पर विशेष धयान देना पड़ता था|
जिस वजह से इन्हे जहाँ कहीं स्थापित किया जाता था वहाँ सुचारू रूप से वताकुलन की व्यवस्था करनी पड़ती थी|
RAM के मैमरी लिए विद्युतचुम्बकीय प्रसार (Relay) का उपयोग किया गया|
ये मशीनी भाषा पर निर्भर होते थे, जो निम्नतम स्तर के प्रोग्रामिंग भाषा के निर्देशों के आधार पर कार्य करते थे|
इनके उपयोग के लिए उपयुक्त निर्देश (PROGRAM) लिखना बेहद ही जटील होता था जिस वजह से इनकाव्यावसायिक उपयोग कम होता था|
इनपुट के लिए इनमें पंचकार्ड एवं पेपरटेप का उपयोग किया जाता था, और आउटपुट प्रिंटर के द्वारा प्रिंट कियाजाता था|
इनका आकार बहुत बड़ा होता था, जिस कारण इन्हें बड़े-बड़े कमरों में रखा जाता था, जिस वजह से इनका उत्पादन लागत बहुत ही अधिक था|
ZUSE-Z3, ENIAC, EDVAC, EDSAC, UNIVAK, IBM 701 आदि मशीन प्रमुख रहे|
(2) दूसरी पीढ़ी (1955 से 1964) [आधार - ट्रांजिस्टर]:
सन् 1947 में Bell Laboratories नें 'ट्रांजिस्टर' नामक एक नई switching device का आविष्कार किया जो इस पीढी के लिए वरदान से कम नहीं था|
ट्रांजिस्टर Germanium Semiconductor पदार्थ से बनते थे जिससे इनका आकार काफी छोटा होता था, परिणाम स्वरूप वैक्युम ट्यूब की जगह Switching device का उपयोग होने लगा|
ट्रांजिस्टर की स्विचिंग प्रणाली बेहद तीव्र थी, जिससे उनकी कार्यक्षमता वैक्युम ट्यूब के मुकाबले बेहद तीव्रहोती थी|
हालांकि प्रथम पीढी के मुकाबले इनसे कम उर्जा निकलती थी फिर भी ठंडक बनाये रखने के लिए वातानुकूलनकी व्यवस्था अब भी जरुरी था|
इनकी मैमरी में विद्युतचुम्बकीय प्रसार की जगह चुम्बकीय अभ्यंतर का उपयोग हुआ, जिससे निर्देशों को मैमरी में ही स्थापित करना हुआ| प्रथम पीढी के मुकाबले इनकी संचयन क्षमता कहीं ज्यादा थी|
गूढ़ मशीनी भाषा की जगह इनमें उपयोग के लिए सांकेतिक\असेम्बली भाषा का उपयोग हुआ, जिससे निर्देशोंको शब्दों में दर्ज करना सम्भव हुआ|
COBOL, ALGOL, SNOBOL, FORTRAN जैसे उच्चस्तरीय प्रोगामिंग भाषा तथा क्रमागत प्रचालन तंत्र (Batch Operating System) इसी दौरान अस्तित्व में आए|
इनका उत्पादन लागत कम हुआ, फलस्वरूप इनका व्यावासिक उपयोग औसत दर्जे का होने लगा|
(3) तीसरी पीढ़ी (1965से 1974) [आधार - इंटीग्रेटेड सर्किट-IC]:
यह चरण कम्प्युटर के विकास में बेहद ही रोमांचकारी रहा, अब तक के विकास पथ पर इतनि क्रांति पहले कभी नहीं आयी थी| इंटिग्रेटेड सर्किट IC, जो की कई सारे ट्रांसिस्टर्स, रेसिस्टर्स तथा कैपसीटर्स इन सबको एक ही सिलिकोन चिप पर इकठ्ठे स्थापित कर बनाये गए थे, जिससे की तारों का इस्तेमाल बिलकुल ही ख़त्म हो गया|
परिणामस्वरूप अधिक उर्जा का उत्पन्न होना बहुत ही घट गया, परन्तु वताकुलन की व्यवस्था अब भी जरुरी बना रहा|
लगभग 10 इंटिग्रेटेड सर्किटों को सिलिकोन की लगभग 5 मिमी सतह पर इकठ्ठे ही स्थापित करना संभव हुआ, इसलिए IC को "माइक्रोइलेक्ट्रोनिक्स" तकनीकी के नाम से भी जाना जाता है|इसे "स्माल स्केल इंटीग्रेशन" (SSI) जाना जाता है| आगे जाकर लगभग 100इंटिग्रेटेड सर्किटों को सिलिकोन चिप की एक ही सतह पर इकठ्ठेही स्थापित करपाना संभव हुआ, इसे मीडियम स्केल इंटीग्रेशन (MSI) जाना जाता है|
तकनीकी सुधारे के चलते इनकी मैमरी की क्षमता पहेले से काफी बढ़ गयी, अब लगभग 4 मेगाबाईट तक पहुँचगयी| वहीँ मग्नेटिक डिस्क की क्षमता भी बढ़कर 100 मेगाबाईट प्रति डिस्क तक हो गयी|
इनपुट के लिए कुंजीपटल का एवं आउटपुट के लिए मॉनिटर का प्रयोग होने लगा|
उच्चस्तरीय प्रोगामिंग भाषा में सुधार एवं उनका मानकीकरण होने से एक कम्प्युटर के लिए लिखे गए प्रोग्राम को दुसरे कम्प्युटर पर स्थापित कर चलाना सम्भव हुआ| FORTRAN IV, COBOL, 68 PL/1 जैसे उच्चस्तरीय प्रोगामिंग भाषा प्रचलन में आये|
इनका आकर प्रथम एवं द्वितीय पीढी के कम्प्युटर की अपेक्षा काफी छोटा हो गया|
जिससे मेनफ्रेम कम्प्युटर का व्यावासिक उत्पादन बेहद आसान हो गया और इनका प्रचलन भी बढ़ने लगा| इनके लागत में भी काफी कमी हुयी| जिसके परिणाम स्वरूप ये पहले के मुकाबले बेहद सस्ते हुए|
(4 ) चौथी पीढ़ी (1975 से 1989) [आधार: मैक्रोप्रोसेसर चिप - VLSI]:
माइक्रोप्रोसेसर के निर्माण से कम्प्युटर युग का कायापलट इसी दौर में शुरू हुआ, MSI सर्किट का रूपांतर LSI एवं VLSI सर्किट में हुआ जिसमे लगभग 5000ट्रांसिस्टर एक चिप पर इकठ्ठे स्थापित हुए|
तृतीय पीढ़ी के कम्प्युटर के मुकाबले इनकी विद्युत खपत बेहद घट गयी| एवं इनसे उत्पन्न होने वाली उर्जा भी कम हुयी| इस दौर में वताकुलन का इस्तेमाल अनिवार्य नहीं रहा|
इनके मैमरी में चुम्बकीय अभ्यंतर की जगह सेमीकंडक्टर मैमरी कण प्रयोग होने लगा, जिससे इनकी क्षमता में बहुत वृद्धि हुयी| हार्ड डिस्क की क्षमता लगभग 1 GB से लेकर 100 GB तक बढ़ गयी|
माइक्रोप्रोसेसर तथा मैमरी के अपार क्षमता के चलते, इस दौर के कम्प्युटर की कार्य क्षमता बेहद ही तीव्र हो गयी|
इस दौर में C भाषा चलन में आयी जो आगे चलकर C ++ हुयी, इनका उपयोग मुख्यरूप से होने लगा| प्रचालन तंत्र (Operating System) में भी काफी सुधार हुए, UNIX, MS DOS, apple's OS, Windows तथा Linux इसी दौर से में चलन में आये|
कम्प्युटर नेटवर्क ने कम्प्युटर के सभी संसाधनों को एक दुसरे से साझा करने की सुविधा प्रदान की जिससे एक कम्प्युटर से दुसरे कम्प्युटर के बिच जानकारियों का आदान-प्रदान संभव हुआ|
पर्सनल कम्प्युटर तथा पोर्टेबल कम्प्युटर इसी दौर से चलन में आया, जो की आकार में पिछली पीढी के कम्प्युटर से कहीं अधिक छोटा, परन्तु कार्यशक्ति में उनसे कहीं ज्यादा आगे था|
इनका उत्पादन लागत बेहद ही कम हो गया जिससे इनकी पहुँच आम लोगों तक संभव हुयी|
(5 ) पांचवीं पीढ़ी (1990से अब तक [आधार: ULSI]):
माइक्रोप्रोसेसर की संरचना में VLSI की जगह UVLSI चिप का प्रयोग होने लगा| माइक्रोप्रोसेसर की क्षमता में आश्चर्यजनक रूप से ईजाफा हुआ, यहाँ तक की 4 से 8 माइक्रोप्रोसेसर एक साथ एक ही चिप में स्थापित होने लगे, जीससे ये अपार शक्तिशाली हो गए हैं|
इनकी मेमरी की क्षमता में भी खूब ईजाफा हुआ, जो अब तक बढ़कर 4 GB से भी ज्यादा तक हो गयी है| हार्ड डिस्क की क्षमता 2 टेरा बाईट से भी कहीं ज्यादा तक पहुच गयी है|
इस दौर में मेनफ्रेम कम्प्युटर पहले के दौर के मेनफ्रेम कम्प्युटर से कई गुना ज्यादा तेज एवं क्षमतावान हो गए|
पोर्टेबल कम्प्युटर का आकर पहलेसे भी छोटा हो गया जिससे उन्हें आसानी से कहीं भी लाया लेजाया जाने लागा| इनकी कार्य क्षमता पहले से भी बढ़ गयी|
इन्टरनेट ने कम्प्युटर की दुनिया में क्रांति ला दिया| आज सारा विश्व मानों जैसे एक छोटे से कम्प्युटर में समा सा गया है| विश्वजाल (World Wide Web) के जरिये संदेशों एवं जानकारी का आदान-प्रदान बेहद ही आसान हो गया, चंद सेकंड्स में ही दुनिया के किसी भी छोर से संपर्क साधना सम्भव हो सका|
कम्प्युटर की उत्पादन लागत में भारी कमी आने के फलस्वरूप कम्प्युटर की पहुँच घर-घर तक होने लगी है| इनका उपोग हर क्षेत्र में होंने लगा|
इस पीढ़ी का विकासक्रम अभी भी चल रहा है और कम्प्युटर जगत नए-नए आयाम को छूने की ओर अब भी अग्रसर है|
इस पीढ़ी के कम्प्युटर ने अपना आकर बेहद ही कम कर लिया है, पाल्म् टॉप, मोबाइल तथा हैण्डहेल्ड जैसे उपकरण तो अब हमारे हथेली पर समाने लगे है|
कार्य के आधार पर कम्प्यूटर का वर्गीकरण
1. एनालाॅग (Analog Computer)
इसमें विद्युत के एनालाॅग रूप (भौतिक राशि जो लगातार बदलती रहती हैंद्ध का प्रयोग किया जाता है। इनकी गति अत्यंत धीमी होती है। अब इस प्रकार के कम्प्यूटर प्रचलन से बाहर हो गए हैं। एक साधारण घड़ी, वाहन का गति मीटर (Speedo-meter), वोल्टमीटर आदि एनालाॅग कम्प्यूटिंग के उदाहरण हैं।
2. डिजिटल कम्प्यूटर (Digital Computer)
ये इलेक्ट्राॅनिक संकेतों पर चलते हैं तथा गणना के लिए द्विआधारी अंक पद्धति Binary System 0 या 1 का प्रयोग किया जाता है। इनकी गति तीव्र होती है। वर्तमान में प्रचलित अधिकांश कम्प्यूटर इसी प्रकार के हैं।
3. हाइब्रिड कम्प्यूटर (Hybrid Computer)
यह डिजिटल व एनालाॅग कम्प्यूटर का मिश्रित रूप है। इसमें गण्ना तथा प्रोसेसिंग के लिए डिजिटल रूप का प्रयोग किया जाता है। जबकि इनपुट तथा आउटपुट में एनालाॅग संकेतों का उपयोग होता है। इस तरह के कम्प्यूटर का प्रयोग अस्पताल, रक्षा क्षेत्र व विज्ञान आदि में किया जाता है।
आकार के आधार पर कम्प्यूटर का वर्गीकरण
नोटबुक कंप्यूटर(Notebook Computers)
नोटबुक कंप्यूटर पोर्टेबल कंप्यूटर्स हैं, जो एक छोटी सी जगह में फिट होने के लिए काफी छोटा है, आसानी से चारों ओर ले जाने के लिए पर्याप्त हल्के वजन के है, और प्रभार्य बैटरी के साथ काम करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, ताकि उन जगहों पर भी उपयोग किया जा सके जहां कोई पावर प्वाइंट उपलब्ध न हो। वे आम तौर पर एमएस–डॉस और विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम चलाते हैं, और अधिकतर कमांड प्रोसेसिंग, स्प्रैडशीट कंप्यूटिंग, डाटा एंट्री, प्रेजेंटेशन सामग्री तैयार करने और प्रेजेंटेशन बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
नोटबुक कंप्यूटर के कई मॉडलों को एक नेटवर्क से जोड़ा जा सकता है, ताकि उन्हें नेटवर्क पर अन्य कंप्यूटरों से डाटा (फाइलें) डाउनलोड करने और जब ऐसी ज़रूरत हो, या इंटरनेट तक पहुंच प्राप्त कर सकें। उदाहरण के लिए मोबाइल और अचल कंप्यूटर।
पर्सनल कंप्यूटर(Personal Computers)
एक पर्सनल कंप्यूटर एक गैर पोर्टेबल, सामान्य प्रयोजन कंप्यूटर है, जो आसानी से एक सामान्य आकार के कार्यालय की मेज पर फिट हो सकता है (कुछ लेखन स्थान को लेखन पैड और अन्य कार्यालय स्थिर रखने के लिए छोड़कर), और व्यक्तिगत कंप्यूटर मुख्य रूप से व्यक्तियों की व्यक्तिगत कंप्यूटिंग आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग किया जाता है, या तो उनके काम के स्थानों में या घरों में।
वे आम तौर पर एमएस–डॉस, एमएस–विन्डोज, विंडोज एनटी, लिनक्स, या यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम चलाते हैं, और मल्टीटास्किंग का समर्थन करते हैं, जो उपयोगकर्ता के ऑपरेशन को आसान बनाता है और बहुत समय बचाता है, जब उपयोगकर्ता को दो या अधिक एप्लिकेशन के बीच स्विच करना होता है काम के लिए उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए -IBM PC
वर्कस्टेशन(Workstations)
एक वर्कस्टेशन एक शक्तिशाली डिस्टॉप कंप्यूटर है, जो इंजीनियरों, आर्किटेक्ट्स, और अन्य पेशेवरों की कंप्यूटिंग जरूरतों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिन्हें अधिक प्रोसेसिंग पावर, बड़ा स्टोरेज और बेहतर ग्राफिक्स डिस्प्ले सुविधा की आवश्यकता है जो पीसी प्रदान करते हैं। वर्कस्टेशन सामान्यतः कम्प्यूटर–एडेड डिजाइन, मल्टीमीडिया एप्लीकेशन और जटिल वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग समस्याओं का अनुकरण और अनुकरण के परिणाम के दृश्य के लिए उपयोग किया जाता है। वर्कस्टेशन आम तौर पर यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम चलाते हैं। वर्कस्टेशन के ऑपरेटिंग सिस्टम आम तौर पर एक बहुउपयोगी वातावरण का समर्थन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
मेनफ्रेम सिस्टम(Mainframe Systems)
मेनफ्रेम सिस्टम कंप्यूटर सिस्टम हैं, जो बैंकों, बीमा कंपनियों, अस्पतालों, रेलवे इत्यादि जैसे संगठनों के डेटा और इंफॉर्मेशन प्रोसेसिंग के बड़े पैमाने पर डेटा को संभालने के लिए मज़बूती से उपयोग किया जाता है। इन्हें ऐसे वातावरण में भी उपयोग किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में उपयोगकर्ताओं एक सामान्य कंप्यूटिंग सुविधा, जैसे अनुसंधान समूहों, शैक्षणिक संस्थानों, इंजीनियरिंग फर्मों आदि को साझा करने की आवश्यकता है। मेनफ्रेम सिस्टम के एक विशिष्ट कॉन्फ़िगरेशन में मेजबान कंप्यूटर, फ्रंट एंड कंप्यूटर, बैक–एंड कंप्यूटर, एक या अधिक चक्कर टर्मिनल, कई चुंबकीय डिस्क ड्राइव, कुछ टैब ड्राइव, एक चुंबकीय टेप लाइब्रेरी, कई उपयोगकर्ता टर्मिनलों, कई प्रिंटर और एक या अधिक प्लॉटर हैं, एक विशिष्ट मेनफ्रेम प्रणाली बड़ी फाइल कैबिनेट की एक पंक्ति को दिखती है और एक बड़े कमरे की जरूरत है छोटे कॉन्फ़िगरेशन वाले एक मेनफ्रेम सिस्टम (धीमी मेजबान और घुमंतू कंप्यूटर, कम भंडारण स्थान और कम उपयोगकर्ता टर्मिनल) को अक्सर एक माइक्रो कंप्यूटर प्रणाली के रूप में जाना जाता है। उदाहरण के लिए-IBM 360/370, DEC.
सुपरकंप्यूटर(Supercomputers)
किसी भी समय उपलब्ध सुपरकंप्यूटर सबसे शक्तिशाली और महंगा कंप्यूटर हैं। वे मुख्य रूप से जटिल वैज्ञानिक अनुप्रयोगों के प्रसंस्करण के लिए उपयोग किए जाते हैं, जिनके लिए प्रसंस्करण शक्ति की आवश्यकता होती है, कुछ प्रसिद्ध सुपर कम्पूटिंग अनुप्रयोगों में भूकंपीय डेटा के बड़े संस्करणों का विश्लेषण, एक विमान के आसपास वायु प्रवाह का अनुकरण, एक ऑटोमोबाइल के डिजाइन की दुर्घटना अनुकरण, कॉमक्स संरचना इंजीनियरिंग की समस्याएं, और मौसम पूर्वानुमान मेनफ्रेम सिस्टम की तरह, सुपर कम्प्यूटर मल्टीप्रोग्राफिक का समर्थन करते हैं हालांकि, इन दोनों प्रकार के सिस्टम के बीच मुख्य अंतर यह है कि सुपर कंप्यूटर मुख्य रूप से प्रोसेसर–बाध्य अनुप्रयोगों को संबोधित करते हैं, जबकि मेनफ्रेम सिस्टम इनपुट / आउटपुट–बाउंड अनुप्रयोगों के लिए उन्मुख होते हैं। उदाहरण के लिए CRAY-1, C-DAC’s PARAM.
क्लाइंट–सर्वर कंप्यूटर(Client-server Computers)
क्लाइंट–सर्वर कंप्यूटिंग परिवेश में, क्लाइंट आम तौर पर एक एकल–उपयोगकर्ता पीसी या वर्कस्टेशन होता है, जो अंत उपयोगकर्ता के लिए अत्यधिक उपयोगकर्ता–अनुकूल इंटरफ़ेस प्रदान करता है। यह क्लाइंट प्रक्रियाओं को चलाता है, जो सर्वर को सेवा अनुरोध भेजती है। एक सर्वर आम तौर पर एक अपेक्षाकृत बड़ा कंप्यूटर है, जो एक साझा संसाधन का प्रबंधन करता है और ग्राहकों को साझा उपयोगकर्ता सेवाओं का एक सेट प्रदान करता है। यह सर्वर को प्रबंधित करने वाले संसाधनों के उपयोग के लिए अनुरोध करता है, जो कि सर्वर प्रक्रिया को चलाता है।
1 फ़ाइल सर्वर(File Server): यह नेटवर्क पर कई उपयोगकर्ताओं की फ़ाइलों को स्टोर करने के लिए एक केंद्रीय भंडारण सुविधा प्रदान करता है।
2 डाटाबेस सर्वर(Database Server): यह एक केंद्रीकृत डेटाबेस का प्रबंधन करता है, और नेटवर्क पर कुछ उपयोगकर्ताओं को एक ही डाटाबेस के लिए साझा एक्सेस करने में सक्षम बनाता है।
3 प्रिंट सर्वर(Print server): यह एक या अधिक प्रिंटर का प्रबंधन करता है, और नेटवर्क में किसी भी उपयोगकर्ता से प्रिंट अनुरोध स्वीकार करता है और प्रक्रिया करता है।
4 नाम सर्वर(Name server): यह पुरूषों को नेटवर्क पते में तब्दील करता है, एक दूसरे के साथ संवाद करने के लिए नेटवर्क पर विभिन्न कंप्यूटरों को सक्षम बनाता है।
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