Sunday, September 3, 2017

1962 के युद्ध में चीन के जीत की पृष्टभूमि भारत में ही हुयी थी तय।

1956 में चीनी प्रमुख चाऊ इन लाई भारत यात्रा पर आये । पूरा भारत हिन्दी - चीनी भाई भाई के गूंज उठा था भारत और चीन सम्बन्धो को एक नया आयाम मिलते देखा जा रहा था।
इस तरह के बन रहे सम्बन्धो के बीच ऐसा क्या हुआ की चीन ने भारत पर हमला कर दिया??

दरअसल 1956 की इस मुलाकात में भारतीय प्रमुख नेहरु और चाऊ इन लाई ने मैक मोहन रेखा पर सहमती जताई थी ।और इस रेखा को मान्यता देने का भरोसा दिलाया।

उधर तिब्बत में भी 1950 से ही चीन बराबर सैनिक दखल दे रहा था । 1958 में तिब्बती खम्पा लोगो ने सशस्त्र विद्रोह किया , शुरुआत में खम्पा लोगो को सफलता मिली किन्तु कुछ ही समय पश्चात उन्होंने घुटने टेक दिए ।

इधर जहाँ भारत चीन द्वारा मैक मोहन रेखा को मान्यता देने की उम्मीद लगाये बैठा था वही चीन की एक सरकारी पत्रिका में एक नक्शा छपा जिसमे नेफा ( नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी ) को चीन का भाग बताया गया साथ ही मैक मोहन रेखा को ब्रिटिश द्वारा बनाया जाने के कारण मानने से इनकार कर दिया।

22 मार्च 1959 में नेहरु ने चीन को एक पत्र लिखा जिसमे नेफा ( वर्तमान अरुणाचल प्रदेश ) के भारत के अभिन्न अंग होने के प्रमाण थे । उन्हें विस्वास था कि इस पत्र के बाद चीन और भारत के सम्बन्धो में सुधार आयेंगे।

चीन की तरफ से कोई जबाब आने से पहले दलाई लामा भारत में शरण हेतु आये । भारत ने दलाई लामा को  शरण तो दिया किन्तु तिब्बत को चीन के खिलाफ किसी भी प्रकार की सहायता से इनकार कर दिया ।

इसी बीच भारत और चीन के सम्बन्धो को ख़राब करने का ठीकरा चीन ने  भारत के सर फोड़ा , इसी समय विपक्ष द्वारा दबाव पड़ने पर नेहरु सरकार ने एक श्वेत पत्र जारी किया जिसमे 1954 से 1959 के बीच चीन से हुए पत्राचार को सार्वजनिक किया गया।

जिससे भारतीय जनता को सरकार के सीमा विवाद के निपटारे के लिए नरम रवैये और पत्र लेखनी राजनीति का पता चला और चीन विरोध में जगह जगह जुलुस हुए ।

मुम्बई दूतावास में माओ से तुंग की तस्वीर पर सडे हुए टमाटर फेके गये । इस पर कड़ी कारवाही करने के चीन ने न केवल दबाव डाला बल्कि भयंकर परिणाम होने की खुली चेतावनी भी दी।

भारतीय सेना में चाटुकारिता का माहोल भी था हार का जिम्मेदार -

1959 से ही सीमा पर दोनों सेना में झडपे शुरू हो गयी थी ।
सेनाध्यक्ष मिथैया ने चीन की ओर से किसी भी समय  होने वाले हमले के लिए तैयारी के लिए तत्कालीन रक्षा मंत्री  मेनन से बात की।

मेनन , नेहरु के बहुत ही खास लोगो में से एक थे और वह वामपंथी विचारधारा के थे उनकी सहनुभूति सदैव चीन की ओर रही।
उन्होंने चीन के ओर से होने वाले किसी भी सम्भावित खतरे को एक सिरे से ख़ारिज कर दिया भारत की ज्यादातर सेना पाकिस्तानी सीमा पर तैनात थी।

इधर नेहरु सामने की वस्तिकता से आँख मुद कर पत्राचार से हल निकलने पर लगे हुए थे।

इसी बीच मेनन द्वारा अगस्त 1969 में अपने कृपा पात्र बीएम कौल को लेफ्टिनेंट जनरल बना दिया । वरिष्ठ लोगो की अनदेखी के कारण मिथैया और मेनन में विवाद और बढ़ गया । मिथैया ने इस्तीफा दे दिया किन्तु बाद में नेहरु द्वारा उनको मना लिया गया।

1960 में चाऊ एन लाई नेहरु के न्योता पर भारत आये    हिन्दू महासभा ने चाऊ एन लाई के विरोध में काले झंडे दिखाए. जहां 1956 में उनकी भारत यात्रा के दौरान 'हिंदी-चीनी भाई भाई' जैसे नारे दिए गए थे वहीं इस बार यह नारे बदलकर 'हिंदी-चीनी बाय बाय' हो चुके थे. चाऊ एन लाई की इस यात्रा के बाद भी भारत-चीन सीमा विवाद जस का तस ही बना रहा. दोनों देश इस यात्रा और बातचीत के बाद भी किसी सहमति तक नहीं पहुंच पाए.

1962 मई जून में चीन ने भारत पर हमला कर दिया
भारतीय सेना ऐसे किसी भी हमले के लिए तैयार नही थी । भारत की अधिकतर सेना पाकिस्तान सीमा पर लगी थी वही सेना के अफसरों के बीच भी आपसी मत भेद व्याप्त थे । मेनन द्वारा इस क्षेत्र को बीएम् कौल को शौपा गया था जबकि कौल किसी प्रकार के युद्ध का कोई अनुभव नही था ।

वह अचानक से बीमार हो गये और दिल्ली चले गये मेनन द्वारा घोषणा की गयी कि युद्ध का संचालन कौल दिल्ली से ही करेंगे । जहाँ भारतीय सेना सीमा पर सैनिक व् हथियारों की कमी से जूझ रही थी वही अब वह बिना नेतृत्व की भी थी।

इसी तरह भारतीय सेना ने 5 महीने तक युद्ध किया यह युद्ध , युद्ध न होकर एक आत्महत्या सी थी जिसके लिए केवल मेनन जिम्मेदार थे।
चीनी सैनिक फेमा से असम तक पहुच चुके थे ।
नेहरु द्वारा रूस और अमेरिका से सहायता मांगी गयी।

इसी बीच सर्दियों का मौसम आ गया यह क्षेत्र सर्दियों में बर्फ से ढक जाता है ऐसी स्थिति में चीन का पीछे हटना लाजमी था
22 नवम्बर को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी ।
और मैक मोहन रेखा के पीछे लौट गया ।

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