Tuesday, August 29, 2017

यज्ञ की वैज्ञानिकता

यज्ञ हिन्दू धर्म का एक अभिन्न अंग है इसकी महिमा का वर्णन वेदों और पुराणों में किया गया है। जो पूर्ण रूप से वैज्ञानिकता पर आधारित है ।

आज यज्ञ पर अमेरिका , भारत, ब्रिटेन, फ़्रांस, आदि अनेक देशो में अनुसन्धान हो रहा है।

अमेरिका ने अनुसन्धान कर यज्ञ को वायु , जल, को शुद्ध करने वाला वातावरण को संतुलित व् कीटाणुओ का नाश करने वाला पाया।

प्राचीन काल में महामारियो व् अकाल से बचने के लिए यज्ञ किये जाते थे । आज वैज्ञानिक शोधो द्वारा सिद्ध हो गया कि यज्ञ से निकलने वाले धुएं व् नैनो पार्टिकल महामारिओ को दूर करने , वातावरण संतुलन वर्षा कराने में सक्षम है।

डॉ. हैफकिन के अनुसार - हवन से निकलने वाला धुँआ चेचक के कीटाणुओ को नष्ट करने में सक्षम है।

प्रो. ट्रिलविर्ट के अनुसार - जलती हुयी शक्कर टीवी , चेचक , हैजा की बीमारी को दूर करने में सक्षम है।

डॉ. कर्नल किंग के अनुसार - घी , चावल, और केसर को मिला कर जलाने से प्लेग के कीटाणु मर जाते है।

विभिन्न शोधो से पता चल चूका है कि
हवन के धुएं से मस्तिष्क, फेफड़े , चर्म, श्वांस नली , नाक, कान आदि से सम्बन्धित 200 से अधिक बीमारियों से न केवल बचाने में अपितु उनका सफल उपचार करने में भी सक्षम है ।
सर्दी , जुकाम, सभी प्रकार के बुखार, डायबिटीज, टीवी, दमा, बाझपन , आदि जैसी बहुत सी बीमारियों को दूर करने में सक्षम है।

यज्ञ द्वारा कैसे होता है उपचार -
 
जब किसी बीमारी के लिए हम दवा ठोस के रूप में लेते है यानी की गोली के रूप में लेते है तो वह असर करने में कुछ समय लेता है ।
जब द्रव के रूप में इन्जेक्शन लेते है तो गोली से कुछ कम समय में ही लाभ दिखने लगता है।
और जब गैस के रूप में लेते है तो बहुत जल्दी ही लाभ हो जाता है जैसे कोई नशा करने वाला नाक से कोई नशा लेता है तो जल्दी ही नशा हो जाता है।

हवन के धुएं से गैस के रूप में ही उपचार होता है

हवन में 4 प्रकार के द्रव्यों का उपयोग किया जाता है।

1.सुगन्धित- केसर, अगर, तगर, चन्दन, जायफर, कपूर, जबित्री, छड़ीला, कचरी, बालझड, पानडी आदि

2.पुष्टिकारक- घी, गुग्गल, सूखे फल, जौ, तिल, चावल, शहद, नारियल आदि।

3.मिष्ट- शक्कर, छुहारा, गुड आदि।

4.रोगनाशक- गिलोय, जायफर, सोमबल्ली, ब्राम्ही, तुलसी, अगर, तगर, आंवला, हरताल, आदि बहुत सी जड़ी बूटियाँ।

यज्ञ को जलाने के लिए आम, मदार, शमी, पीपल , गुलर, आदि की लकड़ीयो को उपयोग अनुष्ठान के प्रयोजन के आधार पर किया जाता है।

अलग अलग प्रकार के रोगों को दूर करने के लिए अलग अलग द्रव्यों की हवन समग्री बनाई जाती है।
उसी प्रकार वर्षा करने व् वर्षा को रोकने के लिए भी विशिष्ट प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग किया जाता रहा है।

कुछ रोगों के उपचार के लिए हवन सामग्री -

१. सर के रोग:- सर दर्द, अवसाद, उत्तेजना, उन्माद मिर्गी आदि के लिए ब्राह्मी, शंखपुष्पी , जटामांसी, अगर , शहद , कपूर , पीली सरसो

२ स्त्री रोगों, वात पित्त, लम्बे समय से आ रहे बुखार हेतु बेल, श्योनक, अदरख, जायफल, निर्गुण्डी, कटेरी, गिलोय इलायची, शर्करा, घी, शहद, सेमल, शीशम

३ पुरुषों को पुष्ट बलिष्ठ करने और पुरुष रोगों हेतु सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , अश्वगंधा , पलाश , कपूर , मखाने, गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , लौंग , बड़ी इलायची , गोला

४. पेट एवं लिवर रोग हेतु भृंगराज , आमला , बेल , हरड़, अपामार्ग, गूलर, दूर्वा , गुग्गुल घी , इलायची

५ श्वास रोगों हेतु वन तुलसी, गिलोय, हरड , खैर अपामार्ग, काली मिर्च, अगर तगर, कपूर, दालचीनी, शहद, घी, अश्वगंधा, आक, यूकेलिप्टिस

इसी प्रकार जलाने के लिए लकड़ी का भी प्रयोग प्रयोजन के आधार पर किया जाता है।
वायु जल शुद्धिकरण के लिए आम की लकड़ी , का उपयोग किया जाता है इसको जलाने पर फार्मेलडिहाइड गैस निकलती है जो बैक्टेरिया को नष्ट करने और नकारात्मक उर्जा का नाश कर सकारात्मक उर्जा भरती है।

रोगों के उपचार के लिए मुख्यता मदार के लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।
प्राचीन समय में होने वाले संस्कार यज्ञ द्वारा सम्पन्न कराये जाते थे ये संस्कार गर्भाधान से लेकर बच्चे के 12 वर्ष तक होने तक किये जाते थे ।

इनमे होने वाले यज्ञ हवन व् होम वर्तमान टीकाकरण के समान ही था।

हवन के साथ मंत्रोचारण का औचित्य पर हम अपनी अगली पोस्ट में बात करेंगे ।

अपना बहुमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद।

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