प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत प्लेटो के स्वभाव एवं प्रवाह से संबंधित अध्ययन है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन 1960 के दशक में किया गया है हैरी हेस , विल्सन , मॉर्गन, मैकेंजी तथा पार्कर आदि विद्वानों ने इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा समुद्री तल प्रसार, महाद्वीपीय विस्थापन, भूपटलिय संरचना ,भूकंप एवं ज्वालामुखी क्रिया आदि की व्याख्या की जा सकती है । यह संकल्पना समुद्री नितल प्रसार की परिकल्पना का विस्तारित एवं परिष्कृत रूप है।
इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का भूपटल मुख्यता 6 बड़े और 6 छोटे प्लेटो में विभाजित है ।
मुख्य प्लेट ( बड़ी प्लेट )
1 भारतीय प्लेट
2 अफ्रीकन प्लेट
3 यूरेशियन प्लेट
4 अमेरिकन प्लेट
5 प्रशांत प्लेट
6 स्कोशिया प्लेट
कुछ विद्वान अमेरिकन प्लेट को उत्तरी एवम दक्षिणी प्लेट अलग अलग मानते हैं और प्लेटो की संख्या 7 मानते हैं।
छोटी प्लेट
1 अरवियन प्लेट
2 फ़िलीपीन्स प्लेट
3 कैरेवियन प्लेट
4 नाज्का प्लेट
5 काकोस प्लेट
6 अंटार्कटिक प्लेट
यह प्लेटें लगातार गति कर रही हैं यह प्लेटें एक दूसरे के संदर्भ तथा पृथ्वी के घूर्णन अक्ष के संदर्भ में निरंतर गति कर रही हैं प्लेटो में यह तीन प्रकार से संचालित होती है।
1 अपसारी गति
2 अभिसारी गति
3 संरक्षी गति
अपसारी गति में प्लेटें एक दूसरे से विपरीत दिशा में गति करती हैं इसमें दोनों प्लेटो के मध्य गर्त का निर्माण होता है।
जिसके सहारे मैग्मा का प्रवाह पृथ्वी की सतह पर होता है। इससे नवीन भूपर्पटी का निर्माण होता है मध्य अटलांटिक कटक इस गति का सर्वोत्तम उदाहरण है जहां कटक के निर्माण के साथ ज्वालामुखियों क्रिया एवं समुद्री नितल प्रसार की क्रिया हो रही है।
अभिसारी गति में दो प्लेटें अभिसरित होकर एक दूसरे में टकराती हैं इस प्रक्रिया में अधिक घनत्व वाला प्लेट कम घनत्व वाले प्लेट के नीचे क्षेपित हो जाता है एवं अधिक गहराई पर पहुंचने के पश्चात ताप के प्रभाव से पिघल जाता है । विश्व में वलित पर्वत ज्वालामुखी, भूकंप व द्वीप चाप की व्याख्या इसी गति के द्वारा संभव है।
यह अभिसरण तीन प्रकार से होता है।
1 महासागरीय - महाद्वीपीय प्लेट
2 महासागरीय -महासागरीय प्लेट
3 महाद्वीपीय - महाद्वीपीय प्लेट
● अधिक घनत्व वाला प्लेट नीचे क्षेपित हो जाता है तथा कम घनत्व वाला प्लेट संपीड़ित होकर वलित हो जाता है।
● प्लेट का क्षेत्रफल लगभग 45 अंश पर होता है तथा अधिक गहराई में "वेनी ऑफ़ जोन" में जाकर प्लेटे पिघल जाती हैं।
● जब दो समान घनत्व की प्लेटे होती हैं तो मोटे भूपृष्ठ का निर्माण होता है ।
महाद्वीपीय -महाद्वीपीय प्लेट अभिसरण की स्थिति में अंतरमहाद्वीपीय पर्वतों का निर्माण होता है जैसे हिमालय , आल्प्स आदि।
हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण भारतीय प्लेट तथा यूरेशियाई प्लेटो के अभिसरण गति के फल स्वरुप टेथिस सागर के मलबों एवं भूपटल की मोड के फल स्वरुप हुआ।
अफ्रीका एवं यूरेशियाई प्लेट के अभिसरण के फल स्वरुप आल्प्स एवं एटलस पर्वत का निर्माण हुआ है ।
राकी एवं एंडीज पर्वत का निर्माण महाद्वीपीय- महासागरीय गति के परिणाम स्वरुप हुआ है महाद्वीपीय- महासागरीय प्लेटो के अभिसरण में अधिक घनत्व वाली महासागरीय प्लेट का महाद्वीपीय प्लेट के नीचे क्षेपण हो जाता है तथा अत्यधिक संपीडन के कारण प्लेटों के किनारों के पदार्थ का वलन होता है जिससे मोड़दार पर्वत की उत्पत्ति होती है ।अधिक घनत्व वाली प्लेट के नीचे धसने से गर्त का निर्माण होता है अधिक गहराई में महासागरीय प्लेट "वेणी आफ जोन " में जाकर पिघल जाती है । यह पिघली हुई चट्टाने मैग्मा के रूप में धरातल पर उद्गमित होती हैं। एंडीज पर्वत श्रेणी पर ज्वालामुखी की उपस्थिति तथा पेरू ट्रेंच की व्याख्या इसी गति के द्वारा होती है।
जब दोनों प्लेटें महासागरीय होती हैं तो टकराव की स्थिति में एक प्लेट का अग्रभाग दूसरे प्लेट के नीचे क्षेपित हो जाता है एवं उत्पन्न संपीड़न से द्वीपीय तोरण एवं द्वितीय चाप की उत्पत्ति होती है जापान द्वीप एवं चाप का निर्माण इसी गति के फलस्वरुप हुआ है इस गति में क्षेपित प्लेट अधिक गहराई में जाकर पिघलती है जिससे ज्वालामुखी क्रिया होती है एवं ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण होता है।
संरक्षी गति में प्लेटे एक दूसरे के साथ क्षैतिज दिशा में प्रवाहित होती हैं इस प्रक्रिया में ना तो नए क्रस्ट का निर्माण होता है और ना ही विनाश ।
प्लेटो के घर्षण के कारण इन क्षेत्रों में भूकंप उत्पन्न होता है सैन एंड्रियाज भ्रंश का निर्माण इसी गति के कारण हुआ है।
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा समुद्री तल प्रसार, महाद्वीपीय विस्थापन, भूपटलिय संरचना ,भूकंप एवं ज्वालामुखी क्रिया आदि की व्याख्या की जा सकती है । यह संकल्पना समुद्री नितल प्रसार की परिकल्पना का विस्तारित एवं परिष्कृत रूप है।
इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का भूपटल मुख्यता 6 बड़े और 6 छोटे प्लेटो में विभाजित है ।
मुख्य प्लेट ( बड़ी प्लेट )
1 भारतीय प्लेट
2 अफ्रीकन प्लेट
3 यूरेशियन प्लेट
4 अमेरिकन प्लेट
5 प्रशांत प्लेट
6 स्कोशिया प्लेट
कुछ विद्वान अमेरिकन प्लेट को उत्तरी एवम दक्षिणी प्लेट अलग अलग मानते हैं और प्लेटो की संख्या 7 मानते हैं।
छोटी प्लेट
1 अरवियन प्लेट
2 फ़िलीपीन्स प्लेट
3 कैरेवियन प्लेट
4 नाज्का प्लेट
5 काकोस प्लेट
6 अंटार्कटिक प्लेट
1 अपसारी गति
2 अभिसारी गति
3 संरक्षी गति
अपसारी गति में प्लेटें एक दूसरे से विपरीत दिशा में गति करती हैं इसमें दोनों प्लेटो के मध्य गर्त का निर्माण होता है।
जिसके सहारे मैग्मा का प्रवाह पृथ्वी की सतह पर होता है। इससे नवीन भूपर्पटी का निर्माण होता है मध्य अटलांटिक कटक इस गति का सर्वोत्तम उदाहरण है जहां कटक के निर्माण के साथ ज्वालामुखियों क्रिया एवं समुद्री नितल प्रसार की क्रिया हो रही है।
अभिसारी गति में दो प्लेटें अभिसरित होकर एक दूसरे में टकराती हैं इस प्रक्रिया में अधिक घनत्व वाला प्लेट कम घनत्व वाले प्लेट के नीचे क्षेपित हो जाता है एवं अधिक गहराई पर पहुंचने के पश्चात ताप के प्रभाव से पिघल जाता है । विश्व में वलित पर्वत ज्वालामुखी, भूकंप व द्वीप चाप की व्याख्या इसी गति के द्वारा संभव है।
यह अभिसरण तीन प्रकार से होता है।
1 महासागरीय - महाद्वीपीय प्लेट
2 महासागरीय -महासागरीय प्लेट
3 महाद्वीपीय - महाद्वीपीय प्लेट
● अधिक घनत्व वाला प्लेट नीचे क्षेपित हो जाता है तथा कम घनत्व वाला प्लेट संपीड़ित होकर वलित हो जाता है।
● प्लेट का क्षेत्रफल लगभग 45 अंश पर होता है तथा अधिक गहराई में "वेनी ऑफ़ जोन" में जाकर प्लेटे पिघल जाती हैं।
● जब दो समान घनत्व की प्लेटे होती हैं तो मोटे भूपृष्ठ का निर्माण होता है ।
महाद्वीपीय -महाद्वीपीय प्लेट अभिसरण की स्थिति में अंतरमहाद्वीपीय पर्वतों का निर्माण होता है जैसे हिमालय , आल्प्स आदि।
हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण भारतीय प्लेट तथा यूरेशियाई प्लेटो के अभिसरण गति के फल स्वरुप टेथिस सागर के मलबों एवं भूपटल की मोड के फल स्वरुप हुआ।
अफ्रीका एवं यूरेशियाई प्लेट के अभिसरण के फल स्वरुप आल्प्स एवं एटलस पर्वत का निर्माण हुआ है ।
राकी एवं एंडीज पर्वत का निर्माण महाद्वीपीय- महासागरीय गति के परिणाम स्वरुप हुआ है महाद्वीपीय- महासागरीय प्लेटो के अभिसरण में अधिक घनत्व वाली महासागरीय प्लेट का महाद्वीपीय प्लेट के नीचे क्षेपण हो जाता है तथा अत्यधिक संपीडन के कारण प्लेटों के किनारों के पदार्थ का वलन होता है जिससे मोड़दार पर्वत की उत्पत्ति होती है ।अधिक घनत्व वाली प्लेट के नीचे धसने से गर्त का निर्माण होता है अधिक गहराई में महासागरीय प्लेट "वेणी आफ जोन " में जाकर पिघल जाती है । यह पिघली हुई चट्टाने मैग्मा के रूप में धरातल पर उद्गमित होती हैं। एंडीज पर्वत श्रेणी पर ज्वालामुखी की उपस्थिति तथा पेरू ट्रेंच की व्याख्या इसी गति के द्वारा होती है।
जब दोनों प्लेटें महासागरीय होती हैं तो टकराव की स्थिति में एक प्लेट का अग्रभाग दूसरे प्लेट के नीचे क्षेपित हो जाता है एवं उत्पन्न संपीड़न से द्वीपीय तोरण एवं द्वितीय चाप की उत्पत्ति होती है जापान द्वीप एवं चाप का निर्माण इसी गति के फलस्वरुप हुआ है इस गति में क्षेपित प्लेट अधिक गहराई में जाकर पिघलती है जिससे ज्वालामुखी क्रिया होती है एवं ज्वालामुखी पर्वतों का निर्माण होता है।
संरक्षी गति में प्लेटे एक दूसरे के साथ क्षैतिज दिशा में प्रवाहित होती हैं इस प्रक्रिया में ना तो नए क्रस्ट का निर्माण होता है और ना ही विनाश ।
प्लेटो के घर्षण के कारण इन क्षेत्रों में भूकंप उत्पन्न होता है सैन एंड्रियाज भ्रंश का निर्माण इसी गति के कारण हुआ है।
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