सन 1964 में हैरी हेस ने सागर नितल प्रसरण की परिकल्पना दी। इनके अनुसार सागरीय तह गतिसील है और मध्य महासागरीय कटक के ऊपर सँवहन धाराओं के द्वारा पृथ्वी के मेंटल से गर्म मैग्मा ऊपर उठता है और वहां से दोनों किनारों की ओर फैलता है तथा महाद्वीपों के किनारे स्थित ट्रेंच में जाकर विलीन हो जाता है।
इसी प्रसरण विधि द्वारा महाद्वीपीय तल का निर्माण हुआ है इस तरह समुद्री तल अपेक्षाकृत एक नवीन संरचना है जिनका मध्य महासागरीय कटक पर निर्माण होता है तथा प्रसरण विधि द्वारा महाद्वीपों के नीचे प्रविष्ट होने से इनका क्षय होता है।
हेस के अनुसार मध्य सागरीय कटक का प्रसार 1 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की दर से हो रहा है इस दर से पूरे सागरीय क्रस्ट के निर्माण के लिए 200 मिलियन वर्ष काफी है जबकि पृथ्वी की आयु 4600 मिलियन वर्ष है ।
अतः किसी न किसी प्रक्रम द्वारा नवनिर्मित क्रस्ट सन्तुलित दर से नष्ट हो रहा है। हेस ने सुझाव दिया कि विनाशी प्रक्रम महासागरों के किनारे स्थित गहरी ट्रेनों में होता है जहां क्रष्ट महाद्वीप के नीचे मेंटल में विलीन हो जाता है। जिससे महाद्वीपों के किनारे मोटे हो जाते हैं और पर्वतमालाओं का निर्माण होता है।
महासागरीय भूपटल की नवीनता सागरीय कटक से बढ़ती दूरी के साथ चट्टानों की आयु में वृद्धि ,चट्टानों के चुंबकत्व की दिशा में उत्क्रमण आदि हेस के सिद्धांत का समर्थन करते हैं इसकी सागर नितल प्रसरण की कल्पना को प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण आधार माना जाता है।
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