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Monday, August 27, 2018

भू संचलन

भूतल पर परिवर्तन दो बलों के कारण होता है |
1. अंतर्जात बल
2. बहिर्जात बल

 जैसा कि शब्दों से स्पष्ट है पृथ्वी के आंतरिक भाग से उत्पन्न होने वाले बल को अंतर्जात बल जबकि पृथ्वी की सतह पर उत्पन्न होने वाले बल को बहिर्जात बल कहते हैं ।

अंतर्जात बल का संबंध पृथ्वी के भूगर्भ से होता है जबकि बहिर्जात बल का संबंध मुख्यता वायुमंडल से है ।
अंतर्जात बल से पृथ्वी में क्षैतिज तथा लंबवत संचलन उत्पन्न होते हैं  बहिर्जात बल, अंतर्जात बलों द्वारा भूतल पर उत्पन्न विषमताओं को दूर करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं इसलिए बहिर्जात बल  को समतल स्थापक बल भी कहते हैं।


तीव्रता के आधार पर अंतर्जात बलों से उत्पन्न संचलन को दो भागों में बांटा जाता है।
1. पटल विरूपण संचलन
2. आकस्मिक संचलन

 पटल विरूपण संचलन मंद गति से होने वाले संचलन है जिसका प्रभाव सैकड़ों हजारों वर्षों द्वारा परिलक्षित होता है इससे विशाल आकार वाले स्थल रूपों का निर्माण होता है क्षेत्रीय विस्तार की दृष्टि से पटल विरूपण संचलन को दो भागों (1) महादेश जनक संचलन तथा (2)  पर्वत निर्माणकारी संचलन में बांटा जाता है।

 महादेशजनक संचलन से महाद्वीपों में उत्थान तथा अवतल तथा निर्गमन और निमज्जन क्रियाएं होती हैं।

 दिशा की आधार पर महादेश जनक संचलन को ऊपर मुखी तथा अधोमुखी संचलन में विभक्त किया जाता है।

 जब कोई महाद्वीप या उसका कोई भाग अपनी समीपवर्ती सतह  से  ऊंचा उठ जाता है तो उसे उत्थान कहते हैं जबकि महाद्वीप का तटीय भाग समुद्र तल से ऊपर उठ जाता है तो इसे निर्गमन कहते हैं इस तरह उत्थान और निर्गमन ऊपर मुखी संचलन का भाग है।


 इसके विपरीत अधोमुखी संचलन के अंतर्गत अवतलन तथा निमज्जन को सम्मिलित किया जाता है यदि स्थलीय खंड अपनी समीपवर्ती क्षेत्रों की तुलना में सतह से नीचे धंस जाता है तो इसे अवतलन कहते हैं जबकि कोई स्थलीय खंड यदि सागर तल से नीचे चला जाता है तो इसे निमज्जन कहते हैं निमज्जन की  क्रिया तटीय भागों में या सागरीय भागों में होती है।



पर्वत निर्माणकारी संचलन के अंतर्गत बल क्षैतिज रूप में कार्य करता है।  जब बल दो विपरीत दिशाओं में करता है तो उसे तनाव मूलक बल कहते हैं। इससे धरातल में चटकन, भ्रंश  तथा दरारों का निर्माण होता है।


 जब बल आमने-सामने कार्य करता है तो उसे संपीडन बल कहते हैं संपीडन बल के कारण भूपटलीय  चट्टानों में जब लहरदार मोड़ पड जाते हैं तो इस मोड़ को वलन कहा जाता है।
अपनति एवं अभिनति

 वलन में ऊपर उठे भाग को अपनति तथा नीचे धसे हुए भाग को अभिनति कहते हैं । जब एक वृहद अपनतिमें अनेक छोटे-छोटे  अपनतियां और अभिनतियां निर्मित होती है तो उसे समपनति कहा जाता है तथा जब एक वृहद अभिनति में इसी तरह की आकृतियां निर्मित होती है तो उसे समभिनति कहते हैं।


संपीडन बल के कारण जब भूतल का विस्तृत भाग ऊपर उठ जाता है या नीचे धंस जाता है तो इसे संवलन कहते हैं इस तरह संवलन का प्रभाव विस्तृत क्षेत्र में होता है समवलन के अंतर्गत ऊपर उठे हुए भाग को उत्समवलन जबकि नीचे धसे हुए भाग को अवसमवलन कहते हैं।


वलन के प्रकार

वलन को निम्नलिखित रूपों में बांटा जा सकता है ।

1●  सममित वलन -  जिस वलन की दो भुजाएं समान रुप से झुकी हुई होती है उसे सममित वलन कहते हैं ।

2 ● असममित वलन - इस वलन में दोनों भुजाओं का झुकाव तथा लंबाई में असमानता होती है ।

3 ● एकदिग्नत वलन -  यदि वलन की एक  भुजा का झुकाव साधारण तथा दूसरी भुजा समकोण के साथ झुका हो तो उसे एकदिग्नत वलन कहते हैं।


4● समनत वलन - जब वलन की  दोनो  भुजाएं एक दूसरे के इतने समीप आ जाती है कि दोनों भुजाएं समांतर हो जाती है तो उसे समनत वलन कहते हैं ।
समनत वलन की भुजाएं समांतर होती हैं लेकिन क्षैतिज दिशा में नहीं होती ।


5● परिवलित वलन - जब वलन की दोनों भुजाएं परस्पर समांतर और क्षैतिज दिशा में होती हैं तो इसे परिवलित वलन कहते हैं।

6● प्रतिवलन  - अत्याधिक संपीड़न के कारण जब वलन की एक भुजा दूसरे पर पलट जाती है तो उसे प्रतिवलन कहते हैं ।

7● अवनमन वलन - यदि वलन के  अक्ष क्षैतिज तल के समांतर ना होकर उनके साथ कोण बनाएं तो उसे  अवनमन वलन कहते हैं।


 8● खुला वलन  - जब वलन के दोनों भुजाओं के बीच का कोण अधिक कोण हो तो उसे खुला वलन कहते हैं।

9●  बंद वलन - जब वलन कि दोनों भुजाओं के बीच का कोण न्यूनकोण हो तो उसे बंद वलन कहते हैं।





 भ्रंश जब भूपटल में एक तल के सहारे चट्टानों का स्थानांतरण होता है तो इस स्थांतरण से उत्पन्न संरचना को भ्रंश कहते हैं । हालांकि भ्रंश का निर्माण क्षैतिज संचलन के दोनों बल संपीड़न एवं तनाव मुलक से होता है लेकिन तनाव मुलके बल इसमें ज्यादा महत्वपूर्ण होता है ।

भ्रंश के प्रकार
सामान्य भ्रंश

1● सामान्य भ्रंश -  चट्टानों में दरार पड़ जाने के बाद जब उसके दोनों खंड विपरीत दिशा में सरक जाते हैं तो इसे सामान्य भ्रंश कहते हैं ।

व्यूतक्रम भ्रंश

2● व्युत्क्रम भ्रंश - जब चट्टानों में दरार पड़ने के बाद दोनों खंड आमने-सामने खिसकते हैं तो इससे निर्मित भ्रंश को व्युत्क्रम भ्रंश कहते हैं।  व्युत्क्रम भ्रंश में एक खंड दूसरे खंड पर चढ़ जाता है  व्युत्क्रम भ्रंश का निर्माण मुख्यता क्षैतिज संचलन के द्वारा उत्पन्न संपीड़न से होता है इसलिए संपीड़नात्मक भ्रंश भी कहते हैं। इसे क्षेपित भ्रंश भी कहा जाता है।

नतिलम्बी सर्पण भ्रंश


3●  नतिलम्बी सर्पण भ्रंश - जब भ्रंश तल के सहारे चट्टानों में क्षैतिज गति होती है तो इसे नतिलंबी सर्पण भ्रंश कहते हैं ।

सोपानी भ्रंश

4● सोपानी भ्रंश - जब सभी भ्रंश  तल के एक ही दिशा में हो तो उसे सोपानी भ्रंश कहते हैं।


 भ्रंशन से  कई प्रकार की आकृतियों का विकास होता है जैसे - भ्रंश घाटी , रैम्प घाटी,  भ्रंशोत्थ पर्वत , होर्स्ट पर्वत आदि।



1● भ्रंश घाटी - जब दो भ्रंश रेखाओं के बीच का चट्टानी भाग नीचे धंस जाता है तो उसे भ्रंश घाटी कहते हैं । उदाहरण - अफ्रीका की महान भ्रंश घाटी, जर्मन की राइन भ्रंश घाटी, भारत की नर्मदा व ताप्ती नदी घाटी।


2●  रैम्प घाटी - जब दो समांतर भ्रंशों के दोनों ओर के भूखंड ऊपर उठ जाते हैं तथा मध्यवर्ती खंड यथावत रहता है तो ऐसी घाटी को रैंप घाटी कहते हैं। उदाहरण - ब्रम्हपुत्र नदी घाटी।


3● भ्रंशोत्थ पर्वत -  जब दो भ्रंशों के बीच का भाग यथावत रहता है तथा किनारे के भाग नीचे जाते हैं तो ऊपर उठे भाग को भ्रंशोत्थ पर्वत कहते हैं।  उदाहरण - यूरोप में वासजेस और ब्लैक फॉरेस्ट।


4●  होर्स्ट पर्वत - जब दो भ्रंशों के किनारे की भागवत रहें एवं बीच का भाग ऊपर उठ जाए तो इससे होर्स्ट पर्वत का निर्माण होता है। उदाहरण - जर्मनी का होर्स्ट पर्वत।


हालांकि  भ्रंश घाटी और रैंप घाटी  तथा ब्लॉक पर्वत और होर्स्ट पर्वत आकृति की दृष्टि से समान प्रतीत होते हैं लेकिन संचलन की दृष्टि से इनमे अंतर होता है।

1 comment:

  1. शानदार सारा कन्फ्यूजन दूर हो गया शब्दावली के चकर मे हर बार गलत हो जाता था

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