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Monday, September 25, 2017

दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश ( पल्लव वंश )

पल्लव वंश का संस्थापक सिंहविष्णु (575 -600ई) था उसकी राजधानी कांची (तमिलनाडु के कांचीपुरम) थी ।

यह  वैष्णव धर्म का अनुयायी था।
किरातार्जुनीयम के लेखक भारवि सिंहविष्णु के दरबार में रहते थे ।

पल्लव वंश के प्रमुख शासक हुए क्रम-

(1)  महेंद्र वर्मन प्रथम (600 -630 ई.)

(2) नरसिंह सिंह वर्मन प्रथम( 630 668 ई.)

(3) महेंद्र वर्मन द्वितीय (668 से 670)

(4) परमेश्वर वर्मन प्रथम (670-680ई.)

(5) नरसिंह वर्मन द्वितीय (704- 728ई.)

(6)  नंदी वर्मन द्वितीय (731 से 795 ई.)

पल्लव वंश का अंतिम शासक अपराजित ( 879 से 897) हुआ।

मतविलास प्रहसन की रचना महेंद्र वर्मन ने की थी। महाबलीपुरम के एकाश्म मंदिर जिसे रथ कहा गया है का निर्माण पल्लव राजा नरसिंह वर्मन प्रथम के द्वारा कराया गया था ।
रथ मंदिरों में सबसे छोटा द्रौपदी रथ है जिसमें किसी प्रकार का अलंकरण नहीं मिलता।

वातापीकोंड की उपाधि नरसिंहवर्मन प्रथम ने धारण की थी ।अरबों के आक्रमण के समय पल्लवो का शासक नरसिंह वर्मन द्वितीय था ।उसने राजासिंह ( राजाओ में सिंह), आगमप्रिय (शास्त्रों का प्रेमी), शंकरभक्त (भगवान शिव का उपासक )आदि की उपाधि धारण की।

उसने कांची के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण कराया जिसे राजसिद्धेश्वर मंदिर भी कहा जाता है ।इसी मंदिर के निर्माण में द्रविड़ स्थापत्य कला की शुरुआत हुई (महाबलीपुरम में शोर मंदिर)

दशकुमारचरित के लेखक दण्डी नरसिंह वर्मन द्वितीय के दरबार में रहते थे । कांची के मुक्तेश्वर मंदिर तथा बैकुंठ पेरुमल मंदिर का निर्माण नंदी वर्मन द्वितीय ने कराया। प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरुमङगई अलवार नन्दी वर्मन के समकालीन थे।

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