राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक दंतिदुर्ग(752ई.) था ।
इसकी राजधानी मनकिर या मान्यखेत ( वर्तमान मालखेड , शोलापुर के निकट) थी।
राष्ट्रकूट वंश के प्रमुख शासक थे
(1) कृष्ण प्रथम
(2) ध्रुव
(3) गोविंद तृतीय
(4) अमोघवर्ष
(5) कृष्ण द्वितीय
(6) इंद्र तृतीय
(7) कृष्ण तृतीय
एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण कृष्ण प्रथम ने कराया था ।
ध्रुव राष्ट्रकूट वंश का पहला शासक था जिसने कन्नौज पर अधिकार करने हेतु त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया और प्रतिहार नरेश वत्सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया ।
ध्रुव को धारावर्ष भी कहा जाता था ।
गोविंद तृतीय ने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर चक्रायुद्ध एवं उसके संरक्षक तथा प्रतिहार वंश के शासक नागभट्ट द्वितीय को पराजित किया ।
पल्लव ,पांड्य, केरल एवं गंग शासकों के संघ को गोविंद तृतीय नष्ट किया ।
अमोघवर्ष जैन धर्म का अनुयायी था उसने कन्नड़ में कविराजमार्ग की रचना की ।
आदिपुराण की रचनाकार जिनसेंन,
गणितासार संग्रह के लेखक महावीराचार्य एवं अमोघवृति के लेखक सक्त्याना अमोघवर्ष के दरबार में रहते थे ।
अमोधवर्ष ने तुंगभद्रा नदी में जल समाधि लेकर अपने जीवन का अंत किया।
इंद्र तृतीय शासन काल में अरब निवासी आलमसुदी भारत आया। इसमें तत्कालीन राष्ट्रकूट शासक को भारत का सर्वश्रेष्ठ शासक कहा ।राष्ट्रकूट वंश का अंतिम महान शासक कृष्ण तृतीय था । इसी के दरबार में कन्नड़ भाषा की कवि पोन्न रहते थे । जिन्होंने शांतिपूराण की रचना की ।
कल्याणी के चालुक्य तैलप- द्वितीय ने 973 ई. में कर्क को हराकर राष्ट्रकूट राज्य पर अपना अधिकार कर लिया और कल्याणी के चालुक्य वंश की नींव डाली।
एलोरा एवं एलीफेंटा महाराष्ट्र वह मंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूटों के समय में ही हुआ एलोरा की 34 शैलाकृत गुफाएं हैं जिनमें 1 से 12 तक बौद्धों, 13 से 29 तक हिंदुओं एवं 30 से 34 जैनों की गुफाएं है ।
राष्ट्रकूट ,शैव ,वैष्णव ,शाक्त संप्रदाय के साथ-साथ जैन धर्म के भी उपासक थे। राष्ट्रकूटों ने अपने राज्य में मुसलमान व्यापारियों को बसने तथा इस्लाम का प्रचार करने की स्वीकृति दी।
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