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Saturday, September 23, 2017

ऐसे ही नही कहा जाता दिन दूना रात चौगुना बढ़ो, ( पिटूइटेरी ग्रंथि)

आपने अक्सर सुना होगा की बड़े बूढ़े आशीर्वाद देते है कि दिन दूना रात चौगुना बढ़ो ।

ये सिर्फ आशीर्वाद नही है, बल्कि हम सच में दिन दूना तो रात चौगुना ही बढ़ते है ।
हमारे आस पास की छोटी छोटी बातो पर मैंने सोचना ,समझना और खोजना शुरु किया , तो पाया कि हमारे आस- पास जो भी बाते होती है उसे अक्सर हम फालतू की बात समझते है । किन्तु 90% बातो और रीतियो का मुझे कोई न कोई वैज्ञाानिक कारण मिला है।

दिन दूना रात चौगुना भी इसी में एक है।

दरअसल हमारी growth दिन की बजाय  रात को ज्‍यादा होती है। ऐसा हमारे brain कमें मौजूद पिटूइटेरी ग्रंथि(pituitary gland) की वजह से होता है जो रात को सोते समय growth hormone को छोड़ती है।

क्या है पिटूइटेरी ग्रन्थि - इसे हाइपोफाइसिस (Hypophysis) नाम से भी जाना जाता है। यह खोपड़ी के आधार (base) की स्फीनॉइड हड्डी के सेला टर्शिका (sella turcica) या हाइपोफाइसियल फोसा में हाइपोथैलेमस के नीचे स्थित एक छोटी-सी (मटर के दाने के बराबर) भूरे रंग की ग्रन्थि होती है। यह मस्तिष्क के तल भाग पर ऑप्टिक चियाज्मा से न्यूरल स्टाक द्वारा जुडी़ रहती है। यह एक बहुत ही खास अन्तःस्रावी ग्रन्थि मानी जाती है। इससे पैदा होने वाले हॉर्मोन अन्य अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की सक्रियता को उत्तेजित करते हैं।

       यह ग्रन्थि दो खण्डों में बंटी रहती है-

(1)अग्रखण्ड (anterior lobe) या एडीनोहा इपोफाइसिस (Adenohypophysis)

(2) पश्च खण्ड (posterior lobe) या न्यूरोहाइपोफाइसिस (Neurohypophysis)। इन दोनों खण्डों (lobes) के मध्य में एक बारीक सा स्थान रहता है जिसे ‘मध्यांश’ (Pars intermedia) कहते हैं।

मनुष्यों में यह क्या करता है इसके बारे में किसी को ज्ञात नहीं है। अग्रखण्ड अपने वास्तविक अर्थ में अन्तःस्रावी ग्रन्थि है, जबकि पश्च खण्ड मस्तिष्क से सम्बन्धित रहता है और तन्त्रिका ऊतक (nervous tissue) का बना होता है। यह प्रत्यक्ष रूप से हाइपोथैलेमस से जुड़ा रहता है। इन्हें सामान्यतया अग्र एवं पश्च पिट्यूटरी ग्रन्थियां कहा जाता है।

अग्रखण्ड सात हॉर्मोन्स का निर्माण करता है-

(1). वृद्धि हॉर्मोन (Growth hormone-GH) या सोमेटोट्रॉपिक हॉर्मोन (Somatotropic hormone)- किसी विशेष लक्ष्य अंग (target organ) को प्रभावित करने के बजाय, यह हॉर्मोन शरीर के सारे भागों जो वृद्धि से संबंध रखते हैं, को प्रभावित करता है। यह वृद्धि की दर को बढ़ाता है और जब एक बार परिपक्वता की स्थिति बन जाती है तो उसे बनाये रखता है। इससे शरीर की वृद्धि और विशेषकर लम्बी हड्डियों की वृद्धि का नियमन होता है। शैशवावस्था (शिशु अवस्था) में कंकालीय (skeletal) वृद्धि और परिवर्धन को उत्तेजित करता है।

       यह अधिवर्ध (epiphysis) और अस्थितंत्र के दूसरे अस्थि-विकास केन्द्रों पर वृद्धि दर को नियंत्रण में करता है। अगर किसी युवा व्यक्ति के शरीर में इस हॉर्मोन की कमी होती है तो एपिफाइसियल डिस्क्स (epiphyseal disks) जुड़कर बन्द हो जाती हैं और शरीर की लंबाई बढ़ना रुक जाती है तथा व्यक्ति बौना ही रह जाता है। इसके विपरीत, यदि इस हॉर्मोन का स्राव युवावस्था (adolescence) की समाप्ति तक कम नहीं होता तो भीमकाय स्थिति (Giantism) पैदा हो जाती है और व्यक्ति 7-8 फीट लम्बा हो जाता है। सामान्य वृद्धि रुकने के बाद जब वृद्धि हॉर्मोन का स्राव अधिक होता है तो एक्रोमेगैली (Acromegaly) नामक स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसमें हड्डियां लम्बाई में न बढ़कर मोटी और खुरदरी हो जाती हैं। इससे निचला जबड़ा, हाथ और पांव विशेष रूप से प्रभावित होते हैं।

     वृद्धि हॉर्मोन के स्राव का नियंत्रण हाइपोथैलेमस द्वारा बनने वाले दो हॉर्मोनों द्वारा होता है- ‘

(1)ग्रोथ हॉर्मोन रिलीजिंग हॉर्मोन’ (GHRH)

(2) ‘ग्रोथ हॉर्मोन इनहिबिटिंग हॉर्मोन’(GHIN)।

और यह ग्रन्थि रात को ज्यादा तेजी से कार्य करती है इसी लिए हम दिन में दूना और रात में चौगुना बढ़ते है ।
तो अगली बार बड़ो से आशीर्वाद लेना मत भूलना।

इसके 6 और हार्मोन्स का श्र्व्व करती है ।

(2) TSH: थाइरोइड स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन : यह थाइरोइड ग्रंथि को नियंत्रित करता है. आम तौर पर अगर कोई व्यक्ति थाइरोइड हॉर्मोन की कमी का शिकार हो तो उसके रक्त जाँच  में TSH का स्तर बढ़ा होता है.

(3)  ACTH: यह किडनी के ऊपर स्थित एक ग्रंथि  एड्रिनल ग्लैंड को नियंत्रित करता है. हम इसके बारे में फिर कभी बात करेंगे

(4)  LH/ FSH: ये दो हॉर्मोन हैं जो पीयूष ग्रंथि से स्रावित हो दूरस्थ ovary और testes को नियंत्रित करते हैं. शरीर के यौन विकास  और यौन स्वास्थय के लिए इनका बेहद महत्वपूर्ण  योगदान होता है.

(5) Prolactin: प्रोलैक्टिन : यह एक ऐसा हॉर्मोन है जो माँ  और पिता में बच्चों के लिए जो स्वभाविक  स्नेह और प्यार होता है, का कारण है. प्रसूति के पश्चात  माँ के स्तन में दूध आने के लिए इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है. .

(6)  ऑक्सीटोसिन (oxytocin ) : सामाजिक एवं यौन सम्बन्ध व् सुख के लिए इसकी भूमिका है. माँ के दूध होने के लिए भी ये ज़रूरी है.

(7) वैसोप्रेसिन - vassopresin : यह हमारे शरीर में पानी की मात्रआ  को और रक्त चाप को नियंत्रित करता है.

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