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Friday, September 22, 2017

गुप्त साम्राज्य

गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी शताब्दी के अंत में प्रयाग के निकट कौशांबी में हुआ ।

गुप्त वंश का संस्थापक श्री गुप्त (240 -280 ई)था।

।श्रीगुप्त का उत्तराधिकारी घटोत्कच (280-320ई)हुआ।
गुप्त वंश का प्रथम महान सम्राट चंद्रगुप्त प्रथम था।
वह 320 ईस्वी में गद्दी पर बैठा इसने लिच्छवी राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया।
इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।

गुप्त संवत (319-320)की शुरुआत चंद्रगुप्त प्रथम ने की।
चंद्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त हुआ जो 335 ईस्वी में राज गद्दी पर बैठा ।
इसने आर्यवर्त के 9  और दक्षिणावर्त के 12 शासको को पराजित किया इन्हीं विजयों के कारण इसे भारत का नेपोलियन कहा जाता है।

समुद्रगुप्त विष्णु का उपासक था ।
समुद्रगुप्त का दरबारी कवि हरिसेण था जिसने इलाहाबाद प्रशस्ति लेख की रचना की ।
समुद्रगुप्त ने अश्वमेधकर्ता की उपाधि धारण की।

समुद्रगुप्त संगीत प्रेमी था ऐसा अनुमान उसके सिक्कों पर वीणा वादन करते दिखाया जाने से लगाया गया है। समुद्रगुप्त ने विक्रमांक की उपाधि धारण की ।
इसे कविराज भी कहा जाता है।

समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी चंद्रगुप्त द्वितीय हुआ जो 380 ईसवी में राज गद्दी पर बैठा।
चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान भारत आया ।
शकों पर विजय के उपलक्ष्य में चंद्रगुप्त द्वितीय ने चांदी के सिक्के चलाए ।
चंद्रगुप्त द्वितीय का उत्तराधिकारी कुमारगुप्त प्रथम या गोविंद गुप्ता(415-454ई) हुआ।
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त ने की थी।
कुमारगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी स्कन्ध गुप्त हुआ स्कन्धगुप्त ने गिरनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनरुद्धार गया है ।
स्कंदगुप्त ने पर्णदत्त को स्वराष्ट्र के गवर्नर नियुक्त किया ।
स्कंधगुप्त के शासनकाल में ही हूणों का आक्रमण हुआ था ।

अंतिम गुप्त शासक भानुगुप्त था।

साम्राज्य की सबसे बड़ी प्रादेशिक इकाई देश थी जिसके शासक को गुप्ता कहा जाता था ।
दूसरी प्रदेशिक इकाई भुक्ति थी जिसके शासक को उपरिक कहा जाता था।
भुक्ति के नीचे विषय नाम की प्रशासनिक इकाई होती थी जिसके प्रमुख विषयपति कहलाते थे ।
पुलिस विभाग का मुख्य अधिकारी दंडपाशिक कहलाता था ।

पुलिस विभाग के साधारण कर्मचारियों को चाट एवं भाट कहा जाता था ।
प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी और ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा संचालित होता था । ग्राम सभा का मुख्य ग्रामीण कहलाता था।

एवं अन्य सदस्य महत्तर कहलाते थे । ग्राम समूहो की  छोटी छोटी इकाइयों को पेठ कहा जाता था ।

गुप्त शासक कुमारगुप्त के  दामोदरपुर ताम्रपत में भूमि  विक्री से संबंधित अधिकारियों  के क्रियाकलापों का उल्लेख है।
भू राजस्व उत्पादन का एक चोथाई  भाग से 1/6 भाग होता था।
आर्थिक उपयोगिता के आधार पर निम्न प्रकार की भूमि थी।
(1) क्षेत्र - कृषि योग्य भूमि

(2) वास्तु- वास करने योग्य भूमि

(3) चारागाह भूमि- पशुओ के चारा योग्य भूमि

(4) खिल्य - न जोतने योग्य भूमि

(5) अप्रहत - जंगली भूमि

सिंचाई के लिए रहट या घंटी यंत्र का प्रयोग होता था।
श्रेणी के प्रधान को ज्येष्टक कहा जाता था ।
गुप्त काल में उज्जैन सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था।
गुप्त राजाओं ने सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएं जारी की उनके स्वर्ण मुद्राओं को अभिलेखों में दिनार कहा गया है।
कायस्थों का सर्वप्रथम वर्णन याज्ञवल्क्य स्मृति में है।

जाति के रूप में कायस्थों का सर्वप्रथम वर्णन ओशनम स्मृति में है ।
विन्ध्य जंगल में सबर जाति के लोग अपने देवताओं को मनुष्य का मांस चढ़ाते थे ।पहली बार किसी के सती होने का प्रमाण 510 ईसवी में भानुगुप्त की एरण अभिलेख से मिलता है जिसमें किसी भोजराज की मृत्यु पर उसकी पत्नी के सती होने का उल्लेख है।

गुप्तकाल में वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं को गणिका कहा जाता था वृद्ध वेश्याओं को कुट्ट्नी कहा जाता था ।
गुप्त साम्राज्य वैष्णव धर्म के अनुयाई थे तथा उन्होंने इसी राजधर्म बनाया था विष्णु का वाहन गरुड़ गुप्तो का राजचिन्ह था।
गुप्तकाल में वैष्णव धर्म संबंधित सबसे महत्वपूर्ण अवशेष  देवगढ़ झांसी का दशावतार मंदिर है ।

अजन्ता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में से केवल 6 ही शेष  हैं जिनमें गुफा संख्या 16 एवं 17 ही गुप्तकालीन है ।

इनमें गुफा संख्या 16 में उत्कीर्ण मरणासन्न राजकुमारी का चित्र प्रशंसनीय है ।गुफा संख्या 17 के चित्र को चित्रशाला कहा गया है इस चित्रशाला में बुद्ध की जन्म जीवन महाभिनिष्क्रमण एवं महापरिनिर्वाण की घटनाओं से संबंधित चित्र उदृत किए हैं ।अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म की महायान शाखा से संबंधित है।
गुप्त काल में निर्मित अन्य गुफा बाघ की गुफा है जो ग्वालियर के समीप बाघ नामक स्थान पर विंध्य पर्वत को काटकर बनाई गई थी ।

चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध कवि कालिदास था ।
चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में रहने वाले आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरी थे।
गुप्तकाल में विष्णु शर्मा द्वारा लिखित पंचतंत्र संसार का सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ माना जाता है बाइबल के बाद स्थान दूसरा है इसे पांच भागों में बांटा गया है

(1)मित्रभेद  (2) मित्रलाभ  (3) संधि विग्रह  (4)लब्द प्रणाश  (5) अपरिक्षाकारित्व

आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीयम एवं सूर्य सिद्धांत नामक ग्रंथ लिखे ।
इसी ने सर्वप्रथम बताया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है

चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में रहने वाले कुछ प्रमुख विद्वान थे
(1)आर्यभट्ट
(2) वराह मिहिर
(3)धन्वंतरि
(4)ब्रम्हगुप्त

पुराणों की वर्तमान रूप की रचना गुप्त काल में हुई इसमें ऐतिहासिक परंपराओं का उल्लेख है।
गुप्त काल के चाँदी के सिक्कों को रुप्यका कहा जाता था ।
याज्ञवल्क्य भारद्वाज एवं वृहस्पति स्मृतियों  की रचना गुप्त काम में हुई थी ।
मंदिर बनाने की कला गुप्तकाल में ही विकसित हुयी थी सांस्कृतिक उपलब्धियों के कारण गुप्त काल को भारतीय इतिहास श्वर्ण काल कहा जाता है।

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