गर्भाधान के तीसरे माह में पुत्र की प्राप्ति के लिए यह संस्कार संपन्न किया जाता है। पुंसवन का अर्थ है वह अनुष्ठान या कर्म जिसके द्वारा पुत्र की उत्पत्ति हो । इस संस्कार के माध्यम से उन देवी देवताओं को पूजा द्वारा प्रसन्न किया जाता है जो गर्भ में शिशु की रक्षा करते थे। चंद्रमा के पुष्य नक्षत्र में होने पर यह संस्कार संपन्न किया जाता था । क्योंकि यह समय पुत्र प्राप्ति के लिए उपयुक्त माना गया है ।
रात्रि के समय वट वृक्ष की छाल का रस निचोड़ कर स्त्री के नाक के दाहिने छिद्र में डाला जाता था इससे गर्भपात की आशंका समाप्त हो जाती थी। तथा सभी बाधाएं दूर हो जाती थी। हिंदू समाज का पुत्र का बड़ा ही महत्व है । उसी से परिवार की निरंतरता बनी रहती थी। इस प्रकार पुंसवन संस्कार का उद्देश्य परिवार तथा इसके माध्यम से समाज का कल्याण करना।
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