यह हिंदू धर्म का चौथा संस्कार है । शिशु के जन्म के समय जात कर्म नामक संस्कार संपन्न होता था। सामान्यतः यह बच्चे की नाल काटने की पूर्व ही इसे किया जाता था । उसका पिता सविधि स्नान करके उसके पास जाता था तथा पुत्र को स्पर्श करता था एवं उसे सुघता था। इस अवसर पर वह उसके कानों में आशीर्वादात्मक मंत्रों का उच्चारण करता था जिसके माध्यम से दीर्घायु एवं बुद्धि की कामना की जाती थी । तत्पश्चात बच्चे को मधु तथा घृत चटाया जाता था फिर प्रथम बार वह मां का स्तनपान करता था संस्कार की समाप्ति के बाद ब्राह्मणों को उपहार दिए जाते थे तथा भिक्षा बांटी जाती थी । सभी माता एवं शिशु की दीर्घ एवं स्वास्थ्य जीवन की कामना करते थे।
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