नमस्कार का संधि विच्छेद करें तो होता है नमः + कार |
अर्थात नमन करता हूँ |
वहीँ नमस्ते का संधि विच्छेद होता है नमः + ते |
अर्थात नमन है आपको |
दोनो के ही अर्थ समान ही है किंतु दोनो में अंतर होता है।
नमस्कार किसी भी समूह या समुदाय को नमन करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
नमस्ते शब्द का प्रयोग किसी व्यक्ति विशेष को नमन करने के लिए बोला जाता है।
नमस्कार के मुख्यत: तीन प्रकार हैं:- सामान्य नमस्कार, पद नमस्कार और साष्टांग नमस्कार।
सामान्य नमस्कार : किसी से मिलते वक्त सामान्य तौर पर दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़कर नमस्कार किया जाता है। प्रतिदिन हमसे कोई न कोई मिलता ही है, जो हमें नमस्कार करता है या हम उसे नमस्कार करते हैं।
पद नमस्कार : इस नमस्कार के अंतर्गत हम अपने परिवार और कुटुम्ब के बुजुर्गों, माता-पिता आदि के पैर छूकर नमस्कार करते हैं। परिवार के अलावा हम अपने गुरु और आध्यात्मिक ज्ञान से संपन्न व्यक्ति के पैर छूते हैं।
साष्टांग नमस्कार : यह नमस्कार सिर्फ मंदिर में ही किया जाता है। षड्रिपु, मन और बुद्धि, इन आठों अंगों से ईश्वर की शरण में जाना अर्थात साष्टांग नमन करना ही साष्टांग नमस्कार है।
नमस्कार के लाभ : अच्छी भावना और तरीके से किए गए नमस्कार का प्रथम लाभ यह है कि इससे मन में निर्मलता बढ़ती है। निर्मलता से सकारात्मकता का विकास होता है। अच्छे से नमस्कार करने से दूसरे के मन में आपके प्रति अच्छे भावों का विकास होता है।
इस तरह नस्कार का आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों ही तरह का लाभ मिलता है। इससे जहां दूसरों के प्रति मन में नम्रता बढ़ती है वहीं मंदिर में नमस्कार करने से व्यक्ति के भीतर शरणागत और कृतज्ञता के भाव का विकास होता है। इससे मन और मस्तिष्क शांत होता है और शीघ्र ही आध्यात्मिक सफलता मिलती है।
इस तरह नस्कार का आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों ही तरह का लाभ मिलता है। इससे जहां दूसरों के प्रति मन में नम्रता बढ़ती है वहीं मंदिर में नमस्कार करने से व्यक्ति के भीतर शरणागत और कृतज्ञता के भाव का विकास होता है। इससे मन और मस्तिष्क शांत होता है और शीघ्र ही आध्यात्मिक सफलता मिलती है।
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