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Friday, October 12, 2018

अन्तः स्रावी तन्त्र। ( Endocrine system )

ग्रंथि का अर्थ होता है गांठ किंतु मानव के परिपेक्ष में ग्रंथ का अर्थ कोशिकाओं की उन समूहों से है जो शरीर के विकास एवं उनके कार्यप्रणाली के लिए विभिन्न प्रकार के हार्मोन का स्राव करते हैं।


ग्रंथियों दो प्रकार की होती है ।

1.बहि: स्रावी ग्रंथियां (Exocrine Glands) -
 यह नलिका युक्त ग्रंथि होती है और यह एंजाइम का स्राव करती है इसमें मुख्य रूप से दुग्ध ग्रंथि, अश्रु ग्रंथि ,लार ग्रंथि व श्लेष्म ग्रन्थि आदि आते हैं।


2. अंतः स्रावी ग्रंथियां (Endocrine glands) -
यह नलिका विहीन होते हैं तथा हार्मोन का स्राव करती हैं ।हार्मोन रक्त प्लाज्मा द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में प्रवाहित होता है।


मुख्य अंतः स्रावी ग्रंथि-
1. पीयूष ग्रंथि (Pituitory gland)
2. अवटू ग्रन्थि ( Thyroid gland)
3. पराअवटू ग्रंथि  (Parathyroid gland)
3. अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland)
4. थाइमस ग्रंथि (Thymus gland)
5. पीनियल काय ग्रंथि (Pineal body)
6. जनन ग्रंथि ( Gonads )


पीयूष ग्रंथि -कपाल के डाएनसेेेफैैलॉन के स्फिनॉइड हड्डीडी के हाइपोफाईसियल के गर्त  sella   turcica में स्थित होता है  इसका भार लगभग 0.6 ग्राम होता है ,यह मास्टर ग्रंथि है।



पीयूष ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन-



STH हार्मोन ( somatotropin harmone )

TSH हार्मोन  ( THYROID STIMULATING HORMONE)

AETH हार्मोन ( ADRENOCARTI EOTROPIC HARMONE)

GTH हार्मोन (  GONADATROPIC HORMONE)

LTH  हार्मोन  ( LACTOGENIC HORMONE)

ADH हार्मोन ( ANTIDIWRETIC HORMONE)


STH - शरीर में विशेषकर हड्डियों के वृद्धि एवं नियंत्रण में सहायक होता है इसकी अधिकता से भीमकाय अथवा एक्रोमेगली विकार उत्पन्न हो जाता है, मनुष्य की लंबाई सामान्य से अधिक हो जाती है और इसकी कमी के कारण मनुष्य बौना हो जाता है।




TSH - यह एड्रेनल कोरटेक्स के स्राव पर नियंत्रण करता है।




GTH - यह जनन अंगों के कार्यों का नियंत्रण करता है
यह दो प्रकार का होता है
1. FSH ( FOLLICLE STIMULATING HARMONE)

2. LTH ( LACTOGENIC HARMONE)


FSH - शुक्राणु जनन में सहायक होता है तथा अंडाशय में फॉलिकल की वृद्धि में मदद करता है।

LTH - यह हार्मोन शिशुओं के लिए स्तनों में दूध का स्राव करता है।

ADH - छोटी छोटी रक्त धमनियों का संकीर्णन ।
रक्त दाब में बढ़ोतरी करना। शरीर में जल का संतुलन बनाये रखने में  सहायक।


अवटु ग्रन्थि -  यह सबसे बड़ी अंतः स्रावी ग्रंथि है जोोो मनुष्य के गले में श्वास नलिका ट्रेकिया के दोनों ओर लैरिंग्स के नीचे  स्थित होती है  इसमें  आयोडीन युक्त  थायरॉक्सिन व ट्रायोडोथायरोनिन    निकलता हैं जिस में आयोडीन की मात्रा अधिक होती है । तथा थायरोकैल्सिििटोनींन आयोडीन रहित




थायरोक्सिन के कार्य-
 कोशिकाओं में स्वसन की गति को तीव्र करता है शरीर की सामान्य वृद्धि विशेषता हड्डी बाल इत्यादि के विकास के लिए अनिवार्य है जनन अंगों के सामान्य कार्य उन्हीं की सक्रियता पर आधारित होते हैं पीयूष ग्रंथि के हार्मोन के साथ मिलकर यह शरीर के जल का संतुलन भी नियंत्रित करता है।


थायरोक्सिन की कमी से होने वाले रोग-

1. जड़ मानवता
2. मिक्सिडमा
3 हाइपोथायरायडिज्म
4 घेघा
5 हाशीमोटो रोग

थायराइड सिंह के अधिक के होने से होने वाले रोग -
1. टॉक्सिक गोइटर
2. एक्सोपथैलमिया





पराअवटु ग्रंथि - यह ग्रंथि गले में अवटू ग्रंथि के ठीक पीछे स्थित होता है इसमें से दो हार्मोन स्रावित होते हैं।
1. पैरा थायराइड हार्मोन तथा 2. कैल्सीटोनिन हार्मोन


पैरा थायराइड हार्मोन रुधिर में कैल्शियम की कमी होने पर स्रावित होता है तथा कैल्सीटोनिन रुधिर में कैल्शियम की अधिकता होने पर स्रावित होने लगता है।




अधिवृक्क ग्रंथि-  इसके 2 भाग होते
बाहरी भाग कोर्टेक्स तथा अंदरूनी भाग मेडुला ।

कॉर्टेक्स से निकलने वाले हार्मोन -

1. ग्लूकोकॉर्टिकॉइडस
2. मिनरलोकॉर्टिकॉइडस
3. लिंग हार्मोन


मेडुला द्वारा स्रावित होने वाले हार्मोन-
1. एपिनेफ्रीन 
2. नारएपिनेफ्रीन
 दोनों हार्मोन का कार्य समान हैं दोनों ही हृदय पेशियों की तीजन शीलता उत्तेजनशीलता एवं संकुनशीलता में वृद्धि करते हैं तथा रक्तचाप में वृद्धि करते हैं।



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