पृथ्वी के आंतरिक भागों की वास्तविक स्थिति तथा उसकी संरचना के विषय में सही ज्ञान प्राप्त करना अत्यंत कठिन कार्य है क्योंकि पृथ्वी का आंतरिक भाग मानव के लिए दृश्य नहीं है ।
हालांकि पृथ्वी की आंतरिक संरचना के अध्ययन के संबंध में अनेक प्रयास किए गए हैं किंतु भूकंपीय तरंगों के अध्ययन के आधार पर हाल के वर्षों में पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में जो नवीन जानकारी प्राप्त हुई है वह सर्वाधिक विश्वसनीय है ।
भूकंपीय तरंगों का अध्ययन पृथ्वी के आंतरिक भागों का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है भूकंप क्रियाओं के कारण तरंगे उत्पन्न होती है जिन्हें भूकंपीय तरंगे कहते हैं सिस्मोग्राफ यंत्र द्वारा इन भूकंपीय तरंगों का अध्ययन किया जाता है भूकंपीय तरंगे दो प्रकार की होती हैं।
1 भूगर्भिक तरंगे
2 धरातलीय तरंगे
भूगर्भीय तरंगे भी दो प्रकार की होती हैं इन्हे P तथा S तरंगे कहा जाता है P तिरंगे तीव्र गति से चलने वाली तरंगे हैं और धरातल पर सबसे पहले पहुंचती हैं इसे प्राथमिक तरंगे भी कहा जाता है । P तरंगें ध्वनि तरंगों की भाँति होती हैं यह ठोस तरल और गैस तीनों मध्य में संचरण करती हैं।
S तरंगे धरातल पर कुछ समय बाद पहुंचती हैं यह द्वितीयक तरंगे कहलाती हैं जो प्रकाश तरंगों के समान होती हैं इस तरंगे केवल ठोस भाग में गमन करती हैं।
धरातलीय तरंगे ( L ) तरंगें सामान्यत: पृथ्वी की ऊपरी भाग पर ही प्रभावित करती हैं उनकी गति सबसे कम होती है लेकिन यह सार्वधिक प्रचंड होती हैं।
पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानने के लिए P तथा S तरंगे विशेष रूप से सहायक हैं। भूगर्भ में गहराई के साथ भूकंप तरंगों के वेग में अंतर आता है इसी के आधार पृथ्वी की आंतरिक संरचना को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है। जिसे क्रस्ट, मेंटल, व कोर कहते हैं। इन तीनों संकेन्द्रय परतों में भूकंप तरंगों का वेग भिन्न भिन्न होता है । इस प्रकार परतों की सीमाओं का भूकंप व असंगति मिलती है जहां भूकंपीय तरंगों का वेग अचानक परिवर्तित होता है यह भूकम्पीय असंगति आंतरिक कोर व बाह्य कोर तथा बाह्य कोर व मेंटल के बीच स्पष्ट है। क्रस्ट के परतों के मध्य भी असंगति पाई जाती है जिससे यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना में बहुत अंतर है ।
एक स्वभाव वाले ठोस में ये लहरे एक सीधी रेखा में चलती हैं अगर पृथ्वी की एक ही प्रकार की घनत्व वाली चट्टानों से निर्मित होती तो भूकंपीय तरंगें पृथ्वी को एक सीधी रेखा में पहुंचती। किन्तु इन तरंगों की दिशा सीधी रेखा ना हो वक्राकार है यह प्रमाणित करता है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना में घनत्व सम्बन्धी भिन्नता है। ओल्डहम ने प्रमाणित किया कि भूकंप केंद्र में 103 की दूरी परS लहरे दुर्बल होती हैं तथा पृथ्वी के कोर में S लहरों का पूर्ण आभाव होता है जिस से यह प्रतीत होता है कि पृथ्वी की आंतरिक भाग तरल अवस्था में है जो कि 2900 किलोमीटर से अधिक गहराई में केंद्र के चारों ओर स्थित है ।
भूकंप के अध्ययन के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना को तीन भागों में विभक्त किया जाता है
1 भूपर्पटी - यह ठोस पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग है इसकी औसत मोटाई 33 किलोमीटर है भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों और महासागरों के नीचे भिन्न भिन्न है महाद्वीपीय भाग में इसकी मोटाई लगभग 48 किलोमीटर तक पाई जाती है जबकि महासागर के नीचे इसकी औसत मोटाई 5 किलोमीटर तक है।
क्रस्ट का महाद्वीपीय भाग ग्रेनाइट चट्टानों से जबकि महासागरीय भाग बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित है भूपर्पटी को दो भागों में बांटा जाता है।
1 ऊपरी सतह
2 निचली सतह
ऊपरी सतह मुख्यता महाद्वीप भागों द्वारा निर्मित है और यह असतत है जिसका औसत घनत्व 2.65 है जबकि निचली सतह सतत है जो महाद्वीपों के नीचे महासागरीय तल पर पाई जाती है उसका औसत घनत्व 3 है महाद्वीपीय पटल की संरचना बनावट तथा उत्पत्ति महासागरीय तल से भिन्न है । क्रस्ट की ये दोनों परते सियाल व सीमा से निर्मित है।
2 मेंटल - क्रस्ट के नीचे मध्यवर्ती परत को मेंटल कहा जाता है वह मोहोअसंबद्धता द्वारा यह क्रस्ट से अलग होता है इसकी मोटाई लगभग 2900 किलोमीटर है यह ठोस है इसमें P व s दोनों प्रकार की तरंगों का तीव्र गति से परागमन होता है।
मेंटल के ऊपरी भाग का घनत्व 3.9 तथा निचले भाग का घनत्व 5.5 तक है यह अधिक घनत्व वाली कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित है मेंटल के रासायनिक संगठन में भिन्नता है अतः इसे मध्यमंडल और दुर्बल मंडल में विभाजित किया जाता है।
दुर्बल मंडल का निचला भाग भी मध्य मंडल की तरह ठोस है किंतु दुर्बल मंडल का ऊपरी भाग प्लास्टिक अवस्था में है इस मंडल में भूकंप की तरंगों का वेग कम हो जाता है जिसे निम्न वेग प्रदेश कहते हैं इस प्रदेश में P तथा S तरंगों का वेग कम हो जाता है दुर्बल मंडल के नीचे घनत्व तथा तरंगों की तीव्र वृद्धि हो जाती है जो मेंटल की सीमा तक रहती है।
3 कोर - यह पृथ्वी की सबसे आंतरिक परत है जिसका विस्तार 2900 किलोमीटर से पृथ्वी के केंद्र तक है गुटेनबर्ग असंबद्धता द्वारा या मेंटल से अलग होता है ।यहां S तरंगे लुप्त हो जाती हैं और P तरंगों के वेेग में भी कमी आती है जिससे पता चलता है कि कोर की बाहरी सीमा तरल अवस्था में है 5150 किलो मीटर की गहराई पर P तरंगों का वेग में थोड़ी सी वृद्धि हो जाती है जिससे पता चलता है कि कोर का आंतरिक भाग ठोस है । बाहरी कोर व आंतरिक कोर के मध्य असंगति को लेहमन असंबद्धता कहा जाता है इस प्रकार कोर को बाहरी कोर और आंतरिक कोर के रूप में विभाजित किया जाता है।
हालांकि पृथ्वी की आंतरिक संरचना के अध्ययन के संबंध में अनेक प्रयास किए गए हैं किंतु भूकंपीय तरंगों के अध्ययन के आधार पर हाल के वर्षों में पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में जो नवीन जानकारी प्राप्त हुई है वह सर्वाधिक विश्वसनीय है ।
भूकंपीय तरंगों का अध्ययन पृथ्वी के आंतरिक भागों का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है भूकंप क्रियाओं के कारण तरंगे उत्पन्न होती है जिन्हें भूकंपीय तरंगे कहते हैं सिस्मोग्राफ यंत्र द्वारा इन भूकंपीय तरंगों का अध्ययन किया जाता है भूकंपीय तरंगे दो प्रकार की होती हैं।
1 भूगर्भिक तरंगे
2 धरातलीय तरंगे
भूगर्भीय तरंगे भी दो प्रकार की होती हैं इन्हे P तथा S तरंगे कहा जाता है P तिरंगे तीव्र गति से चलने वाली तरंगे हैं और धरातल पर सबसे पहले पहुंचती हैं इसे प्राथमिक तरंगे भी कहा जाता है । P तरंगें ध्वनि तरंगों की भाँति होती हैं यह ठोस तरल और गैस तीनों मध्य में संचरण करती हैं।
S तरंगे धरातल पर कुछ समय बाद पहुंचती हैं यह द्वितीयक तरंगे कहलाती हैं जो प्रकाश तरंगों के समान होती हैं इस तरंगे केवल ठोस भाग में गमन करती हैं।
धरातलीय तरंगे ( L ) तरंगें सामान्यत: पृथ्वी की ऊपरी भाग पर ही प्रभावित करती हैं उनकी गति सबसे कम होती है लेकिन यह सार्वधिक प्रचंड होती हैं।
पृथ्वी की आंतरिक संरचना को जानने के लिए P तथा S तरंगे विशेष रूप से सहायक हैं। भूगर्भ में गहराई के साथ भूकंप तरंगों के वेग में अंतर आता है इसी के आधार पृथ्वी की आंतरिक संरचना को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है। जिसे क्रस्ट, मेंटल, व कोर कहते हैं। इन तीनों संकेन्द्रय परतों में भूकंप तरंगों का वेग भिन्न भिन्न होता है । इस प्रकार परतों की सीमाओं का भूकंप व असंगति मिलती है जहां भूकंपीय तरंगों का वेग अचानक परिवर्तित होता है यह भूकम्पीय असंगति आंतरिक कोर व बाह्य कोर तथा बाह्य कोर व मेंटल के बीच स्पष्ट है। क्रस्ट के परतों के मध्य भी असंगति पाई जाती है जिससे यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना में बहुत अंतर है ।
एक स्वभाव वाले ठोस में ये लहरे एक सीधी रेखा में चलती हैं अगर पृथ्वी की एक ही प्रकार की घनत्व वाली चट्टानों से निर्मित होती तो भूकंपीय तरंगें पृथ्वी को एक सीधी रेखा में पहुंचती। किन्तु इन तरंगों की दिशा सीधी रेखा ना हो वक्राकार है यह प्रमाणित करता है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना में घनत्व सम्बन्धी भिन्नता है। ओल्डहम ने प्रमाणित किया कि भूकंप केंद्र में 103 की दूरी परS लहरे दुर्बल होती हैं तथा पृथ्वी के कोर में S लहरों का पूर्ण आभाव होता है जिस से यह प्रतीत होता है कि पृथ्वी की आंतरिक भाग तरल अवस्था में है जो कि 2900 किलोमीटर से अधिक गहराई में केंद्र के चारों ओर स्थित है ।
भूकंप के अध्ययन के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना को तीन भागों में विभक्त किया जाता है
1 भूपर्पटी - यह ठोस पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग है इसकी औसत मोटाई 33 किलोमीटर है भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों और महासागरों के नीचे भिन्न भिन्न है महाद्वीपीय भाग में इसकी मोटाई लगभग 48 किलोमीटर तक पाई जाती है जबकि महासागर के नीचे इसकी औसत मोटाई 5 किलोमीटर तक है।
क्रस्ट का महाद्वीपीय भाग ग्रेनाइट चट्टानों से जबकि महासागरीय भाग बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित है भूपर्पटी को दो भागों में बांटा जाता है।
1 ऊपरी सतह
2 निचली सतह
ऊपरी सतह मुख्यता महाद्वीप भागों द्वारा निर्मित है और यह असतत है जिसका औसत घनत्व 2.65 है जबकि निचली सतह सतत है जो महाद्वीपों के नीचे महासागरीय तल पर पाई जाती है उसका औसत घनत्व 3 है महाद्वीपीय पटल की संरचना बनावट तथा उत्पत्ति महासागरीय तल से भिन्न है । क्रस्ट की ये दोनों परते सियाल व सीमा से निर्मित है।
2 मेंटल - क्रस्ट के नीचे मध्यवर्ती परत को मेंटल कहा जाता है वह मोहोअसंबद्धता द्वारा यह क्रस्ट से अलग होता है इसकी मोटाई लगभग 2900 किलोमीटर है यह ठोस है इसमें P व s दोनों प्रकार की तरंगों का तीव्र गति से परागमन होता है।
मेंटल के ऊपरी भाग का घनत्व 3.9 तथा निचले भाग का घनत्व 5.5 तक है यह अधिक घनत्व वाली कठोर चट्टानों द्वारा निर्मित है मेंटल के रासायनिक संगठन में भिन्नता है अतः इसे मध्यमंडल और दुर्बल मंडल में विभाजित किया जाता है।
दुर्बल मंडल का निचला भाग भी मध्य मंडल की तरह ठोस है किंतु दुर्बल मंडल का ऊपरी भाग प्लास्टिक अवस्था में है इस मंडल में भूकंप की तरंगों का वेग कम हो जाता है जिसे निम्न वेग प्रदेश कहते हैं इस प्रदेश में P तथा S तरंगों का वेग कम हो जाता है दुर्बल मंडल के नीचे घनत्व तथा तरंगों की तीव्र वृद्धि हो जाती है जो मेंटल की सीमा तक रहती है।
3 कोर - यह पृथ्वी की सबसे आंतरिक परत है जिसका विस्तार 2900 किलोमीटर से पृथ्वी के केंद्र तक है गुटेनबर्ग असंबद्धता द्वारा या मेंटल से अलग होता है ।यहां S तरंगे लुप्त हो जाती हैं और P तरंगों के वेेग में भी कमी आती है जिससे पता चलता है कि कोर की बाहरी सीमा तरल अवस्था में है 5150 किलो मीटर की गहराई पर P तरंगों का वेग में थोड़ी सी वृद्धि हो जाती है जिससे पता चलता है कि कोर का आंतरिक भाग ठोस है । बाहरी कोर व आंतरिक कोर के मध्य असंगति को लेहमन असंबद्धता कहा जाता है इस प्रकार कोर को बाहरी कोर और आंतरिक कोर के रूप में विभाजित किया जाता है।
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