चीन ने आर्थिक मंदी से उबरने, बेरोजगारी से निपटने और अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना को पेश किया है. चीन ने एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सड़क मार्ग, रेलमार्ग, गैस पाइप लाइन और बंदरगाह से जोड़ने के लिए 'वन बेल्ट, वन रोड' के तहत सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट और मैरीटाइम सिल्क रोड परियोजना शुरू की है.
इसके तहत छह गलियारे बनाए जाने की योजना है. इसमें से कई गलियारों पर काम भी शुरू हो चुका है. इसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से गुजरने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी शामिल है, जिसका भारत कड़ा विरोध कर रहा है. भारत का कहना है कि पीओके में उसकी इजाजत के बिना किसी तरह का निर्माण संप्रभुता का उल्लंघन है. कुछ दिन पहले ही चीन ने भारत को शामिल करने के लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का नाम बदलने पर भी राजी हो गया था, लेकिन बाद में इससे पलटी मार गया.
इन गलियारों से जाल बिछाएगा चीन -
न्यू सिल्क रोडके नाम से जानी जाने वाली 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना के तहत छह आर्थिक गलियारे बन रहे हैं. चीन इन आर्थिक गलियारों के जरिए जमीनी और समुद्री परिवहन का जाल बिछा रहा है.
1.चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
2. न्यू यूराशियन लैंड ब्रिज
3. चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा
4. चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारा
5. बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारा
6. चीन-इंडोचाइना-प्रायद्वीप आर्थिक गलियारा
दुनिया की 60 फीसदी लोगों पर राज करेगा चीन-
चीन अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना के जरिए दुनिया की 60 फीसदी आबादी यानी 4.4 अरब लोगों पर शिकंजा कसने की कोशिश कर रहा है. वह इन पर एकछत्र राज करना चाहता है. वह इनको रोजगार देने का लालच दे रहा है. उसने इस परियोजना को लेकर अपनी नीतियां भी स्पष्ट नहीं की है. वह कभी-भी अपने वादे से मुकर सकता है और इन देशों की प्राकृतिक संपदा का दोहन करके आर्थिक लाभ कमा सकता है. ऐसे में इसके भावी परिणाम बेहद गंभीर साबित हो सकते हैं. इन देशों के लोग भविष्य में चीन के गुलाम बन कर रहे जाएंगे. चीन का रिकॉर्ड रहा है कि वह बिना स्वार्थ के कोई काम नहीं उठाता है. खासकर विदेशी निवेश को लेकर उसका रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है.
दुनिया के 65 देशों की सरकार को भी लालच
चीन ने वन बेल्ट वन रोडपरियोजना को अंजाम देने के लिए न सिर्फ 65 देशों की जनता को बरगला रहा है, बल्कि वह इन देशों की सरकारों को भी लालच दे रहा है. चीनी मीडिया का कहना है कि इस परियोजना के इन देशों की सरकारों को 1.1 अरब डॉलर टैक्स मिलेगा. इससे इनकी आय में इजाफा होगा. साथ ही बेरोजगारी कम होगी. फिलहाल भारत के सभी पड़ोसी देश इसमें फंसते नजर आ रहे हैं. खासकर नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार इस चीनी जाल में फंसते नजर आ रहे हैं. पाकिस्तान ने तो पहले ही इसकी मंजूरी दे चुका है. भविष्य में चीन इन देशों में आर्थिक नियंत्रण करने के बाद सत्ता में भी दखल बढ़ाने में कामयाब हो सकेगा.
चीन और पाकिस्तान एक-दूसरे को अपने सबसे करीबी दोस्त मानते हैं. चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़ा रहता है. चाहे फिर आतंकवाद का मसला हो या फिर कूटनीतिक. आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित सूची में शामिल कराने की भारत की कोशिश पर चीन का अड़ंगा इस बात का उदाहरण हैं. ऐसे में यह परियोजना पाकिस्तान के लिए फायदेमंद साबित हो रही है. दुनिया में अलग-थलग पड़े पाकिस्तान अब चीन के रहमोकरम पर खुद को आगे बढ़ा पाएगा, जो भारत के लिए घातक है.
अमेरिका ने भी लिया यू-टर्न -
'वन बेल्ट, वन रूट' परियोजना शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार करने वाले अमेरिका ने भी यू-टर्न ले लिया है. अब उसने इस शिखर सम्मेलन में शामिल होने का फैसला लिया है. अमेरिकी फैसले से भारत पर भी इसमें शामिल होने का दबाव बढ़ गया है. चीन ने भारत पर दबाव बनाने के लिए ही अमेरिका को इसमें शामिल होने के लिए राजी किया है. फिलहाल देखना यह है कि भारत इसके लिए क्या कदम उठाता है?
चीन की मंशा -
चीन इस परियोजना के जरिए वैश्विक बाजार का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनना चाहता है. इसके पीछे चीन का एक और भी स्वार्थ छिपा हुआ है. हाल ही में विश्व में चीनी वस्तुओं की मांग में भारी गिरावट आई है. इससे चीन के सामने अपने सामान को बेचने के लिए बाजार की तलाश है. चीनी सामानों की सप्लाई कम होने से वहां मौजूदा समय में बेरोजगारी का स्तर भी काफी बढ़ा है, जो चीन के लिए सिरदर्द बना हुआ है. हाल ही में कई चीनी कंपनियों को करोड़ों कर्मचारियों को निकालना पड़ा है. ऐसे में चीन इस परियोजना के जरिए वैश्विक बाजार में अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है, जहां वह अपने ओवर प्रोडक्शन को आसानी से सप्लाई कर सकेगा. चीन की इस परियोजना से अमेरिका भी बेहद चिंतित है. वह चीन की इस परियोजना की काट नहीं ढूंढ़ पा रहा है.
वन बेल्ट, वन रोड के माध्यम से एशिया के साथ-साथ विश्व पर भी अपना अधिकार कायम करना|
दक्षिणी एशिया एवं हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को कम करना|
वस्तुतः इस परियोजना के द्वारा चीन सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय समझोंते करके, उन्हे आर्थिक सहायता एवं ऋण उपलब्ध कराकर उन पर मनमानी शर्तें थोपना चाहता है जिसके फलस्वरूप वह सदस्य देशों के बाज़ारों में अपना प्रभुत्व बना सके|
असल में पिछले काफी सालों से चीन के पास स्टील, सीमेंट, निर्माण साधन इत्यादि की सामग्री का आधिक्य हो गया है| अत: चीन इस परियोजना के माध्यम से इस सामग्री को भी खपाना चाहता है|
इसके तहत छह गलियारे बनाए जाने की योजना है. इसमें से कई गलियारों पर काम भी शुरू हो चुका है. इसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से गुजरने वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी शामिल है, जिसका भारत कड़ा विरोध कर रहा है. भारत का कहना है कि पीओके में उसकी इजाजत के बिना किसी तरह का निर्माण संप्रभुता का उल्लंघन है. कुछ दिन पहले ही चीन ने भारत को शामिल करने के लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का नाम बदलने पर भी राजी हो गया था, लेकिन बाद में इससे पलटी मार गया.
इन गलियारों से जाल बिछाएगा चीन -
न्यू सिल्क रोडके नाम से जानी जाने वाली 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना के तहत छह आर्थिक गलियारे बन रहे हैं. चीन इन आर्थिक गलियारों के जरिए जमीनी और समुद्री परिवहन का जाल बिछा रहा है.
1.चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
2. न्यू यूराशियन लैंड ब्रिज
3. चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा
4. चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारा
5. बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारा
6. चीन-इंडोचाइना-प्रायद्वीप आर्थिक गलियारा
दुनिया की 60 फीसदी लोगों पर राज करेगा चीन-
चीन अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना के जरिए दुनिया की 60 फीसदी आबादी यानी 4.4 अरब लोगों पर शिकंजा कसने की कोशिश कर रहा है. वह इन पर एकछत्र राज करना चाहता है. वह इनको रोजगार देने का लालच दे रहा है. उसने इस परियोजना को लेकर अपनी नीतियां भी स्पष्ट नहीं की है. वह कभी-भी अपने वादे से मुकर सकता है और इन देशों की प्राकृतिक संपदा का दोहन करके आर्थिक लाभ कमा सकता है. ऐसे में इसके भावी परिणाम बेहद गंभीर साबित हो सकते हैं. इन देशों के लोग भविष्य में चीन के गुलाम बन कर रहे जाएंगे. चीन का रिकॉर्ड रहा है कि वह बिना स्वार्थ के कोई काम नहीं उठाता है. खासकर विदेशी निवेश को लेकर उसका रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है.
दुनिया के 65 देशों की सरकार को भी लालच
चीन ने वन बेल्ट वन रोडपरियोजना को अंजाम देने के लिए न सिर्फ 65 देशों की जनता को बरगला रहा है, बल्कि वह इन देशों की सरकारों को भी लालच दे रहा है. चीनी मीडिया का कहना है कि इस परियोजना के इन देशों की सरकारों को 1.1 अरब डॉलर टैक्स मिलेगा. इससे इनकी आय में इजाफा होगा. साथ ही बेरोजगारी कम होगी. फिलहाल भारत के सभी पड़ोसी देश इसमें फंसते नजर आ रहे हैं. खासकर नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार इस चीनी जाल में फंसते नजर आ रहे हैं. पाकिस्तान ने तो पहले ही इसकी मंजूरी दे चुका है. भविष्य में चीन इन देशों में आर्थिक नियंत्रण करने के बाद सत्ता में भी दखल बढ़ाने में कामयाब हो सकेगा.
चीन और पाकिस्तान एक-दूसरे को अपने सबसे करीबी दोस्त मानते हैं. चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़ा रहता है. चाहे फिर आतंकवाद का मसला हो या फिर कूटनीतिक. आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित सूची में शामिल कराने की भारत की कोशिश पर चीन का अड़ंगा इस बात का उदाहरण हैं. ऐसे में यह परियोजना पाकिस्तान के लिए फायदेमंद साबित हो रही है. दुनिया में अलग-थलग पड़े पाकिस्तान अब चीन के रहमोकरम पर खुद को आगे बढ़ा पाएगा, जो भारत के लिए घातक है.
अमेरिका ने भी लिया यू-टर्न -
'वन बेल्ट, वन रूट' परियोजना शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार करने वाले अमेरिका ने भी यू-टर्न ले लिया है. अब उसने इस शिखर सम्मेलन में शामिल होने का फैसला लिया है. अमेरिकी फैसले से भारत पर भी इसमें शामिल होने का दबाव बढ़ गया है. चीन ने भारत पर दबाव बनाने के लिए ही अमेरिका को इसमें शामिल होने के लिए राजी किया है. फिलहाल देखना यह है कि भारत इसके लिए क्या कदम उठाता है?
चीन की मंशा -
चीन इस परियोजना के जरिए वैश्विक बाजार का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनना चाहता है. इसके पीछे चीन का एक और भी स्वार्थ छिपा हुआ है. हाल ही में विश्व में चीनी वस्तुओं की मांग में भारी गिरावट आई है. इससे चीन के सामने अपने सामान को बेचने के लिए बाजार की तलाश है. चीनी सामानों की सप्लाई कम होने से वहां मौजूदा समय में बेरोजगारी का स्तर भी काफी बढ़ा है, जो चीन के लिए सिरदर्द बना हुआ है. हाल ही में कई चीनी कंपनियों को करोड़ों कर्मचारियों को निकालना पड़ा है. ऐसे में चीन इस परियोजना के जरिए वैश्विक बाजार में अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है, जहां वह अपने ओवर प्रोडक्शन को आसानी से सप्लाई कर सकेगा. चीन की इस परियोजना से अमेरिका भी बेहद चिंतित है. वह चीन की इस परियोजना की काट नहीं ढूंढ़ पा रहा है.
वन बेल्ट, वन रोड के माध्यम से एशिया के साथ-साथ विश्व पर भी अपना अधिकार कायम करना|
दक्षिणी एशिया एवं हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को कम करना|
वस्तुतः इस परियोजना के द्वारा चीन सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय समझोंते करके, उन्हे आर्थिक सहायता एवं ऋण उपलब्ध कराकर उन पर मनमानी शर्तें थोपना चाहता है जिसके फलस्वरूप वह सदस्य देशों के बाज़ारों में अपना प्रभुत्व बना सके|
असल में पिछले काफी सालों से चीन के पास स्टील, सीमेंट, निर्माण साधन इत्यादि की सामग्री का आधिक्य हो गया है| अत: चीन इस परियोजना के माध्यम से इस सामग्री को भी खपाना चाहता है|
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