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Tuesday, September 26, 2017

सल्तनत काल

सल्तनत काल में आने वाले वंशो को याद करने के लिए ट्रिक

गुल खिले तुम सायद लोगे

गुल - गुलाम वंश

खिले - खिलजी

तुम - तुगलक

सायद - सैय्यद

लोगे - लोदी

                        - गुलाम वंश -

गुलाम वंश की स्थापना 1206 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था। वह गौरी का गुलाम था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपना राज्यभिषेक 24 जून 1206ई. में किया था । ऐबक ने अपनी राजधानी लाहौर में बनाई थी । क़ुतुबमीनार की नीव  कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही डाली थी ।दिल्ली का कुवत उल इस्लाम मस्जिद एवं अजमेर का ढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण ऐबक ने कराया था ।

कुतुबुद्दीन एबक को लाख बख्श ( लाखों का दान करने वाला) भी कहा जाता था। प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय को ध्वस्त करने वाला ऐबक का सहायक सेनानायक बख्तियार खिलजी था ।

ऐबक की मृत्यु 1210 ईस्वी में चौगान खेलते समय घोड़े से गिरकर हो गई इससे लाहौर में दफनाया गया।

ऐबक का उत्तराधिकारी आरामशाह हुआ जिसने सिर्फ 8 महीने तक शासन किया आरामशाह की हत्या करके इल्तुतमिश 1211 ईस्वी में दिल्ली की गद्दी पर बैठा । इल्तुतमिश तुर्किस्तान का इल्बरी तुर्क एवं ऐबक  का गुलाम तथा दमाद था ।

यह ऐबक की मृत्यु के समय में बदायूं का गवर्नर था इल्तुतमिश लाहौर से राजधानी को स्थानांतरित कर के दिल्ली ले आया। इल्तुतमिस पहला शासक था जिसने 1229ई. में बगदाद के खलीफा से सुल्तान पद की वैधानिक उपाधि प्राप्त की थी ।

उसकी मृत्यु अप्रैल 1236 ई. में हो गई। इल्तुतमिश के बाद उसका पुत्र  रुक्नुद्दीन फिरोज गद्दी पर बैठा । यह अयोग्य शाशक था उसने अल्पकालीन शासन पर उसकी मां शाह तुरकान छाई रही । के अवांछित प्रभाव से परेशान होकर तुर्की अमीरों ने को रुक्नुद्दीन  को हटाकर रजिया को सिंहासन पर आसीन किया ।

इस प्रकार रजिया बेगम प्रथम मुस्लिम महिला थी जिसने शासन की बागडोर संभाली।
रजिया ने प्रदा प्रथा का त्याग कर तथा पुरुषों की तरह चोंगा( काबा) एवं कुलाह (टोपी) पहनकर दरबार में खुले मुंह से जाने लगी।

रजिया ने मलिक जमालउद्दीन याकूत को आमिर-ऐ-अखुर (घोड़े का सरदार )नियुक्त किया । गैर तुर्को को सामन्त बनाने के रसिया के प्रयासों से तुर्की अमीर विरुद्ध हो गए और उसे बंधी बनाकर दिल्ली की गद्दी पर मोइनुद्दीन बहरामशाह को को बैठा दिया ।

रजिया की शादी अल्तुनिया के साथ हुई उसने शादी के बाद रजिया को पुनः गद्दी प्राप्त करने का प्रयास किया लेकिन वह असफल रहा । रजिया की हत्या 1240 ई में डाकुओं द्वारा कैलाश के पास कर दी गई।

बहरामशाह को बंदी बनाकर उसकी हत्या मई 1242 ई में कर दी गई 
बहराम शाह के बाद दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन मसूद शाह 1242 ई में बना।

बलवन ने षड्यंत्र के द्वारा 1246 में अलाउद्दीन मसूद शाह सुल्तान पद से हटाकर नसीरुद्दीन मोहम्मद को सुल्तान बना दिया । नसीरुद्दीन मोहम्मद अहमद ऐसा सुल्तान था जो टोपी सी कर अपना जीवन निर्वाह करता था ।

बलवन ने अपनी पुत्री का विवाह नसीरुद्दीन मोहम्मद के साथ किया था बलवंत का वास्तविक नाम बहाउद्दीन था वह  इल्तुतमिश का गुलाम था ।

तुर्कान ए चिहलगानी का विनाश बलवन ने ही किया था बलवान 1206 ईस्वी में गयासुद्दीन बलबन के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा ।

वह मंगोल के आक्रमण से दिल्ली की रक्षा करने में सफल रहा ।

राज दरबार में सिजदा एवं पैबोस प्रथा की शुरुआत बलवन ने की थी।

बलवन ने फारसी रीति रिवाज पर आधारित नवरोज उत्सव को प्रारंभ कराया।

अपने विरोधियों के प्रति बलबन ने कठोर लौह  एवं रक्त की नीति अपनाई।

नसरुद्दीन मोहम्मद ने बलवान को उल्लू खां की उपाधि प्रदान किया ।

बलवन के दरबार में फारसी प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो एवं अमीर हसन रहते थे गुलाम वंश का अंतिम शासक समसुद्दीन कैमूर था

                - खिलजी वंश -

गुलाम वंश के शासन को समाप्त कर 13 जून 1290 ई में जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने खिलजी वंश की स्थापना की।

इसने किलोखरी को अपनी राजधानी बनाया। जलालुद्दीन की हत्या 1296 ई में उसके भतीजे एवं दामाद अलाउद्दीन खिलजी ने कड़ामानिकपुर (इलाहाबाद) में कर दी ।

22 अक्टूबर 1296 ई में अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना ।
अलाउद्दीन के बचपन का नाम अली तथा गुरसाय्प था।

अलाउद्दीन खिलजी ने सेना को नकद वेतन देने एवं स्थाई सेना की नीव रखी।
दिल्ली के शासको में अलाउद्दीन खिलजी के पास सबसे विशाल स्थाई थी।

घोड़ो को दागने एवं सैनिकों के हुलिया रखने की प्रथा की शुरुआत अलाउद्दीन खिलजी ने की।
अलाउद्दीन एवं राजस्व की दर को बढ़ाकर उपज का 1/2 कर दिया इसने ख्म्स (लूट का धन ) में सुल्तान का हिस्सा 1/4 के स्थान पर 3/4 भाग कर दिया।

इसने व्यापारियों में बेईमानी रोकने के लिए कम तोड़ने वाले व्यक्ति के शरीर से मांस काट लेने का आदेश दिया ।

इसने अपने शासनकाल में मूल्य नियंत्रण प्रणाली को दृढ़ता से लागू किया ।
दक्षिण भारत की विजय के लिए अलाउद्दीन ने मलिक काफूर को भेजा ।

जमायत खाना मस्जिद , अलाई दरवाजा , सीरी का किला तथा हजार खंभा महल का निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने कराया था।

दैवी अधिकार के सिद्धांत को अलाउद्दीन ने चलाया था ।
सिकंदर ए सानी की उपाधि से स्वयं को अलाउद्दीन खिलजी ने विभूषित किया ।
अलाउद्दीन ने मलिक की याकूब को दीवान ए रियासत नियुक्त किया था

अलाउद्दीन द्वारा नियुक्त परवाना नवीस नामक अधिकारी वस्तुओं की परमिट जारी करता था।
शाहना ए मंडी -जहां खदानों की बिक्री हेतु लाया जाता था ।

सराय - ए - अदल -  जहां वस्त्र शक्कर जड़ी बूटी मेवा दीपक का तेल व अन्य निर्मित वस्तुएं बिकने के लिए आती थी ।

अलाउद्दीन खिलजी की आर्थिक नीति की व्यापक जानकारी जियाउद्दीन बरनी की कृति तारीख ए फिरोजशाही से मिलती है ।

मुल्य नियंत्रण को सफल बनाने के लिए मुहतसिब  (सेंसर )एवं नाजिर (नापतोल अधिकारी) की महत्वपूर्ण भूमिका थी ।

राजस्व सुधार के अंतर्गत अलाउद्दीन ने सर्वप्रथम मिल्क, इनाम एवं वक्फ़ के अंतर्गत की गई भूमि को वापस लेकर इसे खालसा भूमि बदल दिया।

अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा लगाई जाने वाली दो नवीन कर - (1) चराई कर और (3) गढ़ी कर

गढ़ी कर , मकानो और झोपड़ियों पर लगाया जाता था ।चराइ कर दुधारू पशुओं पर लगाया गया था ।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु 5 जनवरी 1316ई में हो गयी ।कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी 1984 में दिल्ली के सिंहासन पर बैठा ।

उसे नग्न स्त्री पुरुष की संगत पसंद थी मुबारक खिलजी कभी-कभी राज दरबार में स्त्रियों का वस्त्र पहनकर आता था ।

बरनी के अनुसार मुबारक कभी-कभी मन होकर दरबारियों के बीच दौड़ा करता था ।
मुबारक खान खलीफा की उपाधि धारण की थी मुबारक के वजीर खुसरो खां ने 15 अप्रैल 1320 ईस्वी में इसकी हत्या कर दी और स्वयं दिल्ली के सिंहासन पर बैठा खुसरू खा ने पैगंबर के सेनापति की उपाधि धारण की।

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