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Tuesday, August 29, 2017

अल्प ज्ञान और आधुनिक शिक्षा द्वारा हमारी संस्कृति का लोप

बात उन दिनों की है जब मैंने 12th पास कर बीए में प्रवेश लिया था ।

मै हमेशा धर्म और अध्यात्म के किसी के बात का भी विरोध करने के लिए अपने तार्किक ज्ञान को लेकर बैठ जाता था । हमेशा अपने विज्ञान के तर्क को ढाल और अर्थशास्त्र के नियमो और उपयोगिता सिधान्त को अपना तलवार बना के रखता था।

बुजुर्गो को तवज्जो न देना और अपने को ज्यादा समझदार बताना आज के युवाओ का फैशन बना हुआ है स्वयं को अधिक जानकार साबित करने की पूजीवादी से भी अधिक प्रतिस्पर्धा रहती है

सायद दोष उस शिक्षा में ही है जहाँ आप भी you और तुम भी you ।
पर भाई यही तो समसदभाव है।

एक घटना जिसने मेरे सोचने का नजरिया बदल दिया - ( अब मै किसी बात के दोनों पहलुओ को खोजने लगा हूँ )

मै घर से इलाहबाद के लिए निकला था । फ़ैजाबाद स्टेशन पर जैसे तैसे टिकट लेकर ट्रेन में चढ़ा और एक जोर की सांस लेने के बाद सीट पर बैठ गया ।
अपनी बाए हाथ की कलाई घड़ी में टाइम देखते हुए न हक ही मुह से निकल गया - ये भारतीय रेल कभी समय पर नही चल सकती ।
दो चार लोग थे वो भी विदेशो की ट्रेन और भारत की ट्रेन की तुलना शुरु कर दिए । उनकी बातो का सिलसिला चल निकला ।

मै अपनी सीट पर आराम से बैठ गया और मोबाइल निकाल कर उसमे उंगलियों को इधर उधर फिराने लगा । वैसे भी मुझे अनजान व्यक्तियों से बात करने की जगह मोबाइल के साथ ही टाइम पास करने में ज्यादा अच्छा लगता है ।

कुछ समय ऐसे ही बीता तभी ट्रेन ने सीटी दी मन ही मन भगवान् को धन्यवाद दिया चलो कम से कम चली तो

( उसी भगवान को धन्यबाद दिया जिसे अपने तार्किक बातो में न होने का दावा करता हूँ )

तभी एक बुजुर्ग आता हुआ दिखाई दिया 50 ,52 साल का रहा होगा माथे पर तिलक और बदन पर पीताम्बर धारण किये हुए था।
लो ये भी आ गये मन में सोचते हुए न खिसकने का अदृढ़ निश्चय करते हुए मैंने मुह खिड़की की ओर कर लिया
मेरे सामने वाली सीट पर 4 लोग ही थे लडको ने नाक भौ सिकोड़ते हुए मौन विरोध के साथ बैठने की जगह दे दी । इसी के साथ ट्रेन भी चल चुकी थी ।
सारे लड़के अपनी मोबाइल में मस्त हो गये कोई सोशल  साईट तो कोई हेडफोन लगा के बैठा था ।।

मै भी fb पे लग गया
अब केवल दो बुगुर्ग थे एक मेरी सीट पे और एक बाबा जी वो भी अपने अंदाज में टाइम पास करने लगे मेरा मतलब आपस में बाते करने लगे ।
मै अपने में ही मस्त था लेकिन वे वजह मेरा ध्यान बीच बीच में उनकी बातो पर भी चला जाता था।

जैसा अक्सर होता है बाबा जी बोल रहे थे और मेरी सीट वाला बुजुर्ग सुन रहा था बस बीच बीच में हाँ हाँ और कभी नही बोल कर अपनी बात रख रहा था ।

मैं उनकी सारी बातो पर तो ध्यान नही दे रहा था पर कुछ न कुछ  बातो पर ध्यान चला ही जा रहा था

1. साल भर में कम से कम अपने महीने भर की कमाई का एक चौथाई धार्मिक कामो में लगाना चाहिए।

2. महीने में कम से कम एक बार यज्ञ हवन का अनुष्ठान जरुर करना चाहिए।

बाबा जी की ये बाते सुन कर बाबा जी मुझे किसी कम्पनी के एजेंट लग रहे थे जो कम्पनी के माल का प्रचार कर रहा है
वैसे से भी चन्दन मुंदन वाला आदमी मुझे हमेशा से लुटेरा ही लगता था  इसलिए उसकी हर बात मुझे बस लुटने की युक्ति ही लग रही थी।

मैंने भी उपयोगिता के प्रबल समर्थको की तरह बोल दिया हाँ बाबा जी यज्ञ और हवन करे , और घी , तिल , जौ , शहद , लौंग , नारियल , सक्कर , गुड को आग में जला दे ।
इससे तो अच्छा है किसी गरीब को ये चीजे दे दी जाये उसका पेट भरेगा , पुण्य मिलेगा और उसका लाभ होगा बाबा जी की फीस भी बच जाएगी ।

मेरी बात सुन कर बाबा जी मुस्कुराने लगे और बोले इतने थोड़े से चीजो को आप कितने लोगो में बाँट दोगे कितने लोगो का भला कर दोगे ??

कम से कम 2 लोगो का तो भला हो ही जायेगा जबकि यज्ञ और हवन से तो केवल एक लोग बस बाबा जी का भला होगा।

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि यज्ञ हवन की बात कर रहा हूँ पंडित और बाबा को बुलाने की तो मैंने बात ही नही की , आप हवन तो स्वयम कर सकते हो ।
और हवन से 2 नही 2000 लोगो का भला होगा ।

मैंने कहा हवन से वही भगवान आयेंगे 2000 लोगो का भला करने जो गजनी के आक्रमण में अपना भला नही कर पाए।
और आपके हवन से जी प्रदुषण होगा वो अलग धुँआ ही धुँआ चारो ओर होता है ।

वो मुस्कुराने लगे मुझे थोडा अजीब लगा मै अपलक उनको देखे जा रहा था, मुस्कुराने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा बेटा करते क्या हो तुम ?

स्टूडेंट हूँ इलाहबाद यूनिवर्सिटी का इकोनॉमिक्स , पोलिटिकल , अन्सिय्न्त हिस्ट्री सब्जेक्ट से बीए कर रहा हूँ फर्स्ट इयर का , मै एक सांस में बोल गया ।

बाबा जी ने मुस्कुराने लगे और बोले सब धुँआ प्रदुषण नही होता है  यज्ञ में 4 प्रकार के द्रव्य डाले जाते है

1.सुगन्धित

2.मिष्ट

3.पुष्टिकारक

4.रोगनाशक

और इन चीजो के जलने से जो धुँआ निकलता है उससे वातावरण शुद्ध होता है और रोग नाश होता है ।
और इसी के साथ सुलतानपुर स्टेशन आ गया और बाबा जी वहां उतर गये । मै भी फिर से fb में मस्त हो गया ।

इलाहाबाद पहुच कर मैंने नेट पे देखा तो अमेरिका , भारत समेत कई देशो में यज्ञ के धुएं और राख ( भभूत ) पर ढेर सारे शोध हो चुके है ।
और उनके परिणाम मुझे चौकाने वाले थे ।

इसकी बात मै अपने अगले पोस्ट "यज्ञ की वैज्ञानिकता "  में करूँगा ।

  अपना अमुल्य समय देने के लिए धन्यवाद।

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